न्यू यॉर्क। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सोमवार की रात मुलाकात हुई है और राष्ट्रपति बनने के बाद डोनाल्ड ट्रंप का विश्व के पहले नेता के साथ व्हाइट हाउस में यह डिनर था। इसे लेकर पूरे विश्व में चर्चा थी और दोनों नेताओं की मुलाकात के बाद वर्ल्ड मीडिया ने भी इस पर क्या प्रतिक्रिया दी।
पाकिस्तान के प्रमुख अंग्रेजी दैनिक डॉन ने लिखा कि व्हाइट हाउस इस बार मोदी के पहले के दौरे के वक्त जैसा नहीं दिखा। उसकी चमक भी पहले जैसी नहीं थी। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी जब पहली बार सितंबर 2014 में अमेरिका गए थे तो ओबामा खुद उन्हें मार्टिन लूथर किंग जूनियर मेमोरियल लेकर गए थे। इस बार वैसा कुछ नहीं दिखा। स्वाभाविक है कि पाकिस्तान के लोगों में मोदी- ट्रंप की मुलाकात एक खराब खबर थी।
चीन के सरकारी अखबार 'ग्लोबल टाइम्स' ने अपनी टिप्पणी में कहा कि अमेरिका ने भारत को सच्चा दोस्त बताया। इससे साफ है कि अमेरिका, बीजिंग पर निशाना साधने के लिए दिल्ली का इस्तेमाल करेगा। अमेरिका का अहम साथ बनने की ओर अग्रसर होने पर भारत गर्व कर सकता है, लेकिन यह अमेरिकी की ओर से एक ट्रैप है जिसके जरिए वह भारत का इस्तेमाल कर रहा है।
अमेरिका के एक और प्रसिद्ध दैनिक वाशिंगटन पोस्ट के लिखा है कि ट्रंप और मोदी के बीच फोन पर अच्छे संबंध रहे हैं। अब यह देखना होगा कि इस मुलाकात से क्या निकलता है? मुलाकात ऐतिहासिक होगा या सिर्फ एक रात की बात, यह तो वक्त ही बताएगा। दोनों ही नेता राष्ट्रवाद की लहर पर हैं और इस्लामिक कट्टरता से लेकर आतंकवाद के विरोधी हैं। इतना ही नहीं दोनों नेता चीन को आड़े हाथों भी लेते हैं।
सीएनएन की राय है कि डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और चीन को दोष देते हुए पेरिस समझौते से हाथ खींच लिया था लेकिन इसे देखते हुए दोनों देशों के राष्ट्रप्रमुख की यह मुलाकात काफी अहम है। ट्रंप प्रशासन इस मुलाकात को जिस तरह ऐतिहासिक बनाने की कोशिश कर रहा है, उसके भी दूरगामी परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
बीबीसी ने लिखा है कि नरेन्द्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने थे तो न्यूयॉर्क के मैडिसिन स्क्वॉयर पर 'मोदी-मोदी' के नारे लगे थे। अब वक्त बदल गया है। ट्रंप सरकार में वहां वैश्विक राजनीतिक स्टारडम के लिए जगह नहीं है।
बेहतर होगा कि हम सैयद सलाहुद्दीन के बारे में जान लें क्योंकि इस संगठन ने दो अन्य संगठनों के साथ मिलकर भारत को नष्ट करने की दिशा में सक्रिय हैं। उसके बारे में यह जानना रोचक होगा कि इससे पहले सैयद सलाहुद्दीन, कश्मीर राज्य में युसूफ शाह के नाम से जाना जाता था और उसकी कुछ राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं भी थीं, लेकिन जब वह विधानसभा चुनाव हार गया तो उसने आतंकवाद का दामन थाम लिया।
अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने सलाहुद्दीन को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित किया। सैयद सलाहुद्दीन 1990 से पहले कश्मीर में यूसुफ शाह के नाम से जाना जाता था। उसने वर्ष 1987 में मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के टिकट पर जम्मू-कश्मीर में विधानसभा का चुनाव भी लड़ा था। हालांकि, वह इस चुनाव में हार गया था।
उस समय के दौर में ऐसी ख़बरें भी आई थीं कि 1987 के विधानसभा चुनाव में जबरदस्त तरीके से धांधली की गई थी। अलगाववादी विचारधारा और पाकिस्तान का एजेंडा चलाने की वजह से सलाउद्दीन को जेल में बंद कर दिया गया था। लेकिन जब वह जेल से छूटा तो सुधरने की बजाए वह और ख़तरनाक हो चुका था।
नब्बे के दशक में 5 नवंबर 1990 को यूसुफ शाह, सैयद सलाहुद्दीन बन गया और सीमा पार करके, पाकिस्तान के मुजफ्फराबाद पहुंच गया जहां उनसे हिज़्बुल मुजाहिद्दीन नामक संगठन बनाकर जम्मू-कश्मीर में आंतकवादी गतिविधियों की शुरूआत कर दी।
उल्लेखनीय सैय्यद सलाउद्दीन वही आतंकी हैं, जिसने वर्ष 2012 में ये स्वीकार किया था, कि कश्मीर घाटी में लड़ाई के लिए पाकिस्तान हिजबुल मुजाहिद्दीन का समर्थन करता है। वह यह भी कह चुका है, कि अगर पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों का समर्थन नहीं किया, तो वह खुद पाकिस्तान पर हमला कर देगा।
अब तक सलाउद्दीन यही कहता रहा है कि वह कश्मीर को 'भारत के फौजियों की कब्रगाह' बना देगा।
पर सूत्रों का कहना है कि सलाउद्दीन को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी से पैसा मिलता है। आजकल सरकार ने उसे इस्लामाबाद में रहने की एक खास जगह भी दी हुई है। पहले वह कश्मीर को एक स्वतंत्र राज्य बनाने की मांग करता है लेकिन अब उसके समर्थक आतंकी जम्मू- कश्मीर को पाकिस्तान से मिलाने के लिए संघर्ष कर रहा है।