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Last Updated : शनिवार, 22 जून 2024 (16:26 IST)

जर्मनी के भारतवंशी रोमा-सिंती अल्पसंख्यकों की पीड़ा

जर्मनी के भारतवंशी रोमा-सिंती अल्पसंख्यकों की पीड़ा - Germany Roma Sinti Discrimination
लोकसभा चुनावों के लिए भारत में जब मतदान चल रहा था, तब अन्य पश्चिमी देशों की तरह ही जर्मन मीडिया भी भारत की जी भरकर लानत-मलानत करने में व्यस्त था। यह दुर्भावना फैला रहा था कि भारत के अल्पसंख्यक और दलित 'भाजपा' के फ़ासिस्टी अत्याचारों से कराह रहे हैं। मुसलमानों का तो जीना हराम हो गया है। मानो जर्मनी में या पूरे यूरोप में कभी किसी अल्पसंख्यक समुदाय के साथ कोई भेदभाव या अत्याचार होता ही नहीं!
 
भारत के चुनाव परिणामों के 11 दिन बाद ही जर्मनी के सबसे पुराने अल्पसंख्यक समुदाय रोमा और सिंती लोगों की सामाजिक दशा के बारे में एक आधिकारिक रिपोर्ट पेश की गई। रोमा और सिंती उन भारतवंशियों को कहा जाता है, जो लगभग 1,000 वर्ष पूर्व उस समय मुख्यत: पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी भारत से यूरोप आने शुरू हुए थे, जब भारत पर इस्लामी आक्रमणकारियों के हमले होने लगे थे।
 
लगभग ढाई लाख रोमा और सिंती इस समय प्राय: बंजारों की तरह जर्मनी में रहते हैं। उनके रहने-सहने, शिक्षा-दीक्षा और काम-धंधे की स्थिति आज भी इतनी ख़राब है कि जर्मन समाज में उनके साथ होने वाले व्यवहार व भेदभाव के बारे में हर वर्ष एक रिपोर्ट तैयार की जाती है। 17 जून को प्रस्तुत नई रिपोर्ट एक आईना है कि वर्ष 2023 उनके लिए कैसा रहा? 
 
जर्मन पुलिस की निष्ठुरता : इस नई रिपोर्ट का कहना है कि जर्मनी के रोमा और सिंती अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव, धमकी या मारपीट जैसी हिंसा की घटनाएं 2023 में बहुत तेज़ी से बढ़ी हैं। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि इस बार ऐसी घटनाओं का संकलन पिछली बारों की अपेक्षा कहीं बेहतर ढंग से हुआ है। जो भी हो, स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।
 
इस बदतरी के लिए रोमा और सिंती लोगों के प्रति आम जर्मन जनता की भेदभावी मानसिकता ही ज़िम्मेदार नहीं है, पुलिस द्वारा उनकी शिकायतें अनसुनी करना, उन्हें ही दोष देना, उनके साथ ज़्यादती करना, धौंस-धमकी देना और अधिकारी वर्ग द्वारा इस सब पर आंखें मूंद लेना भी उत्तरदायी कारण हैं।
 
2023 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार स्वयं जर्मन पुलिस भी रोमा और सिंती अल्पसंख्यकों के प्रति कुछ कम दुर्भावनाग्रस्त नहीं है। पिछले साल उनके साथ हुए भेदभाव या दुर्व्यवहार के सभी दर्ज मामले दोगुने यानी 1,233 हो गए थे जबकि 2022 में 621 मामले दर्ज किए गए थे।
 
रिपोर्ट को तैयार करने वाले कार्यालय के प्रमुख सिलास क्राप्फ का हालांकि कहना है कि वास्तविक मामलों का अब भी केवल एक अंश ही दर्ज किया जा सका है। अपने साथ दुर्व्यवहार सहने के आदी रोमा और सिंती बहुत-सी बातें अपने तक ही रखते हैं।
 
शारीरिक हमले : रिपोर्ट तैयार करने वाले कार्यालय ने पंजीकृत घटनाओं को अलग-अलग श्रेणियों में बांटा है। 2023 में रोमा और सिंती लोगों के साथ 'गंभीर हिंसा' के 10 मामले दर्ज किए गए। 40 मामले उन पर हमले के, 46 धमकियों के और 27 मामले उनकी संपत्ति को क्षति पहुंचाने के थे। उदाहरण के तौर पर सिलास क्राप्फ ने बताया कि सिंती और रोमा लोगों की एक कब्रगाह को हिटलर के समय प्रचलित नाज़ियों वाले स्वस्तिक से चिन्हित किया गया था।
 
सोलिंगन शहर में उनके विरुद्ध आगज़नी की घटना हुई थी। फुटबॉल स्टेडियमों में रोमा-सिंती विरोधी नारे लगते हैं और दक्षिणपंथी राजनीतिक पार्टियां उनके प्रति हिंसा भड़काती हैं। अधिकांश मामले उनके अपमान, बहिष्कार और भेदभाव के होते हैं। रोजमर्रा की जिंदगी में उनके लिए अपमानजनक भाषा के 600 मामले दर्ज किए गए।
 
ऐसा ही एक उदाहरण एक शिक्षक का है। उसने एक रोमा छात्र को मेट्रिक की परीक्षा के लिए पंजीकृत करते समय कहा कि 'इतनी मेहनत क्यों कर रहे हो? लंबे समय तक तो पढ़ाई करोगे नहीं, शायद 1 ही महीने में शादी कर लोगे!' 502 अन्य घटनाएं भी ऐसे ही भेदभाव के बारे में हैं। उनमें से एक-चौथाई समाज अथवा युवा कल्याण कार्यालयों या पुलिस जैसे अधिकारियों से संबंधित थीं। 83 घटनाओं के लिए किसी न किसी प्रकार से स्वयं पुलिसकर्मी ही दोषी थे। वर्ष 2022 में पुलिस से संबंधित ऐसी 34 घटनाएं थीं।
 
पुलिस स्वयं एक समस्या है : जर्मनी की संघीय सरकार ने रोमा-सिंती बंजारों की दयनीय स्थिति में सुधार के लिए तुर्की मूल के मेहमत देमाग्युलर को, जो एक वकील हैं, अपना प्रभारी नियुक्त किया है। रोमा-सिंती बंजारों के साथ होने वाले दुराचारों की समस्या के लिए वे भी जर्मन पुलिस को एक बड़ा कारण मानते हैं।
 
2023 की रिपोर्ट के प्रस्तुतीकरण के अवसर पर उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में उल्लिखित घोर हिंसा की 10 घटनाओं में से 3 में पुलिस की आपत्तिजनक भूमिका रही है। एक ऐसे ही मामले में पुलिस के एक कुत्ते को एक ऐसे आदमी की तरफ छोड़ दिया गया जिसके हाथों में पहले से ही हथकड़ी लगी हुई थी और वह शरणार्थियों वाले एक मकान में फर्श पर बैठा हुआ था। कुत्ते ने उसे कई बार काटा। वह आदमी आज भी अपने घावों से उबर नहीं पाया है।
 
रिपोर्ट के अनुसार कई महिला और पुरुष पुलिसकर्मी ही नहीं, उनके अधिकारी भी मानते हैं कि रोमा और सिंती अपराधी प्रवृत्ति वाले लोग हैं इसलिए उनके साथ अपराधियों जैसा ही व्यवहार होना चाहिए। यहां तक कि हिंसा या भेदभाव के शिकार लोगों के साथ भी पुलिस का यही रवैया होता है। मेहमत देमाग्युलर ने ऐसे ही एक दूसरे प्रकरण का उदाहरण देते हुए बताया कि एक बंजारा पिता जब अपने बेटे के स्कूल में घोर दक्षिणपंथी और चरमपंथी नारों की शिकायत करने के लिए पुलिस स्टेशन गया तो उससे कहा गया कि 'क्या मैं देख सकता हूं कि आपके बारे में क्या कुछ दर्ज है?'
 
अधिकारियों पर भरोसा नहीं : पुलिस या तो उस पिता को किसी अपराधी से कम नहीं मान रही थी या पुलिस के लिए स्कूल में चल रही नारेबाज़ी में कोई बुराई नहीं थी। रोमा-सिंती लोगों से न्याय के सरकारी प्रभारी मेहमत देमाग्युलर का कहना है कि इन्हीं सब कारणों से प्रभावित लोग अंतत: अपने साथ पुलिस के दुर्व्यवहार की विधिवत शिकायत नहीं करते। वे जानते हैं कि अधिकारियों पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
 
जर्मनी में रहने वाले भारतवंशी रोमा-सिंती बंजारों के साथ 2023 में हुए भेदभावों और दुर्व्यवहारों संबंधी रिपोर्ट के 17 जून को बर्लिन में प्रस्तुतीकरण के समय जर्मनी की सिंती-रोमा केंद्रीय परिषद के अध्यक्ष रोमानी रोज़े भी उपस्थित थे। जर्मनी के दक्षिणपंथ की ओर बढ़ते हुए झुकाव तथा रोमा-सिंती लोगों पर हमलों के लिए उन्होंने भी राजनेताओं की चुप्पी और अधिकारियों के पारंपरिक जिप्सीवाद को ज़िम्मेदार ठहराया।
 
उन्होंने मांग की कि रोमा-सिंती विरोधी सोच से भी उसी तरह लड़ा जाना चाहिए जिस तरह जर्मनी में यहूदी-विरोध से लड़ा जा रहा है। जर्मनी की पारिवारिक कल्याण मंत्री लीज़ा पाउस ने भी माना कि रोमा और सिंती लोगों की रोज़मर्रा जिंदगी बहुत दुखद है।
 
जर्मन मीडिया का दोगलापन : रिपोर्ट चूंकि यह दिखाती है कि जर्मनी के उन असली अल्पसंख्यकों की दुर्दशा, जो लगभग 500 वर्षों से जर्मनी में रह रहे हैं लेकिन आज भी कितने तिरस्कृत, उपेक्षित, अपमानित और दमित हैं, जर्मन मीडिया में वह स्थान नहीं पा सकी, जो स्थान मात्र 11 दिन पहले तक भारत में हो रहे चुनावों के बहाने से बीजेपी के कथित भेदभावों और अत्याचारों से पड़ित भारतीय अल्पसंख्यकों, अर्थात मुसलमानों और ईसाइयों की 'दारुण दशा' को मिल रहा था।
 
दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला जर्मनी मात्र ढाई लाख रोमा-सिंती अल्पसंख्यकों के साथ जो न्याय नहीं कर पा रहा है, उसके मीडिया और कई नेता भी आरोप लगाते हैं कि भारत अपने करोड़ों अल्पसंख्यकों के साथ अन्याय कर रहा है। जर्मनी ही नहीं, यूरोप के अन्य देशों में रहने वाले रोमा और सिंती भी जानते हैं कि उनके पूर्वज भारतीय थे। 
 
हिटलर के शासनकाल में घटिया नस्ल बताकर लगभग 5 लाख रोमा-सिंती लोगों को मार डाला गया। उस समय जर्मनी में केवल कुछेक हज़ार रोमा-सिंती ही छिप-छिपाकर अपनी जान बचा पाए थे। जर्मनी में इस समय रहने वाली रोमा-सिंती बिरादरी का एक बड़ा हिस्सा 1990 वाले दशक में पूर्वी यूरोप की कम्युनिस्ट सरकारों के पतन से मची उथलपुथल के समय शरणार्थी बनकर जर्मनी पहुंचा था।
 
यूरोपीय रोमा और सिंती बिरादरी का झंडा भी भारत के राष्ट्रीय झंडे जैसा ही है। उसके बीच में भी अशोक चक्र है। वे अपने लिए किसी अलग देश की मांग नहीं करते। जहां भी हैं, वहां के धर्म और नाम अपना लेते हैं। उनकी गिनती हिन्दी गिनती के शब्दों से बहुत मिलती-जुलती है। शरीर के अंगों के नाम और कई दूसरे नाम आदि भी पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी भारत की भाषाओं एवं बोलियों की याद दिलाते हैं।
 
भारत से अपेक्षा : जर्मन रोमा-सिंती परिषद के अध्यक्ष रोमानी रोज़े को लेकिन शिकायत है कि उन्हें भारत के लोगों और सरकारों ने भुला दिया है। भारत से वह सहयोग और समर्थन नहीं मिलता, जो उदाहरण के लिए विदेशों में लंबे समय से रहने वाले चीनियों को चीन की जनता और सरकारों से मिलता है।
 
बहुत कम ही लोग जानते हैं कि सिनेमा विदूषक चार्ली चैप्लिन, अमेरिकी गायक एल्विस प्रेस्ली, कलाकार पाब्लो पिकासो, इस समय की सबसे विख्यात रूसी ऑपेरा गायिका अना नेत्रेब्को और अमेरिकी फिल्म अभिनेत्री सल्मा हायेक रोमा-सिंती बिरादरी की हैं। इन सभी को और बहुत से दूसरे विख्यात लोगों को भी अपने जीवन में कभी न कभी रोमा-सिंती वाली अपनी असली पहचान छिपानी पड़ी है।
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)
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