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Last Modified: शनिवार, 20 अप्रैल 2019 (18:11 IST)

एमराल्ड हाइट्स इंटरनेशनल स्कूल में सोलर थर्मल तकनीक पर जिम्मी मेमोरियल लेक्चर

एमराल्ड हाइट्स इंटरनेशनल स्कूल में सोलर थर्मल तकनीक पर जिम्मी मेमोरियल लेक्चर - Jimmy Memorial Lectures Solar thermal Technologies for Sustainable Growth of India
श्रीमती जनक पलटा मगिलिगन ने एमरॉल्ड हाइट्स स्कूल पहुंचकर उस दौर की बात की जब उन्होंने पहली बार सोलर उर्जा पर काम शुरु किया था। यह दौर था 1985 का जब भारत सरकार ने सोलर कुकर को चलन में लाने के लिए जबरदस्त सबसिडी देने का फैसला किया। कुकर की कीमतें कम होने के बावजूद यह फेल हो गए क्योंकि लोग उन्हें ठीक से काम में नहीं ले पाए। इसी समय श्रीमती पलटा ने पैराबोलिक कुकर इस्तेमाल किए जिनसे सीधे सूर्य की रोशनी में खाना बन सकता था।  
 
इन कुकर के इस्तेमाल के लिए महिलाओं को ट्रेंड किया गया जो इतनी स्किलफुल हो गईं कि उन्होंने इस कुकर में नमकीन और बिस्किट बनाकर कमाई भी शुरू कर दी। इस तकनीक की कई खासियतें थीं जैसे खाने की न्यूटिशन वैल्यू बनी रहती थी, धुंए का कोई झंझट नहीं रहा और किसी तरह का प्रदूषण इसमें नहीं हुआ। महिलाओं को जंगल जैसी जगहों से लड़की इकट्ठी करने करने की जरूरत नहीं रही और उनके स्वास्थ्य में भी सुधार दर्ज हुआ।  
 
दीपक गाधिया ने सोलर फोटो वोल्टैक और सोलर थर्मल पैनल में अंतर बताया। सोलर ऊर्जा सूर्य की रोशनी या हीट को लेकर अपना काम करती है। सोलर फोटो वोल्टैक पैनल में सिलिकॉन सेल्स होते हैं जो सूर्य की रोशनी को बिजली में बदल देते हैं। उन्होंने कहा सूर्य की रोशनी से न सिर्फ प्राकृतिक ऊर्जा के स्त्रोत बचे रहेंगे बल्कि पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं होगा। आईआईटी मुंबई से ग्रेज्यूएट डॉक्टर अजय चांडक ने जोर देकर कहा अभी जिस तरह से शिक्षा दी जा रही है उसे बदला जाना चाहिए और छात्रों को ऐसे ढालना चाहिए कि वे जल्दी से नई तकनीक अपना लें।  
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