इतना अधिक कोहरा है और सर्दी कितना तंग करेगी पता नहीं। हाथ सेंकने को लकड़ियां भी न बची हैं। डोने बाबा यह सोच रहे थे कि उनकी चिंताओं के बीच पड़ोस की बच्ची नीनी आ गई। उसके स्वरों ने उनकी चिंता में विघ्न उत्पन्न कर दिया था।
दरअसल, जब डोने बाबा सोचना शुरू करते तो उनकी दशा एकांत चिंतन करने वाले की भांति हो जाती थी। वह कभी व्यर्थ की सोचते तो कभी भविष्य न होते हुए भी भविष्य की।
डोने बाबा कभी किसी को अपने घर खेलने-कूदने को मना नहीं करते थे। नीनी के पापा भी यहां पर छोटेपन में खेला करते थे और आज नीनी।
नीनी लगभग 7 साल की हो आई है। डोने बाबा ने नीनी को आया देखा तो उससे बड़े प्यार से कहा आ गई हो, खेलो। नीनी खेलने लगी।
डोने बाबा को भूख लग रही थी। वैसे नीनी 12 बजे के लगभग उन्हें भोजन दे जाती है लेकिन आज भूख कुछ पहले ही लग आई थी। धैर्य टूट रहा था तो नीनी से कह बैठे, सुनो नीनी जाओ दूध ही ले आओ तब तक। नीनी घर गई और वापस आ गई।
थोड़ी देर बाद डोने बाबा ने नीनी को फिर आवाज दी तो नीनी ने बताया, दूध कहां रखा है अब?
डोने बाबा ने कहा, बिटिया हम तो कभी मांगते ही नहीं। आज भूखा था सो मांग लिया।
नीनी का उत्तर था तो क्या करूं? मां ने मना कर दिया। अब तो मुझे भी कुछ नहीं मिलेगा जिसे आपको खाने को दे सकूं।
डोने बाबा ने कहा, नहीं बिटिया तुम अपने खाने से मुझे कुछ मत देना, नहीं तो पाप लगेगा।
नीनी कहने लगी, बाबा पाप क्या होता है? यह कैसे लगता है?
डोने बाबा हंसने लगे।
नीनी पूछती रही लेकिन वह हूं कर देते, पर बताया नहीं।
थोड़ी देर में उस बूढ़े ने सोचा कि लाओ खुद जाकर देखूं तो बहुरिया कुछ खाने को जरूर देगी।
भूख बेकाबू हो रही थी। वह आग के पास से उठा और लड़खड़ाते हुए कदमों से लाठी के सहारे घर की ओर चल दिया।
नीनी बिटिया छपरिया में ही रहना, नहीं तो कोई कुछ उठा ले जाएगा।
नीनी चिल्लाई, बाबा क्यों चिंता करते हो? पापा कहते हैं कि बाबा व्यर्थ में चिंता करते हैं, यह नहीं कि खाएं-पिएं और मस्त रहें।
बूढ़ा बोला, अरे तुम्हारे पापा भी।
वह पड़ोस में बने घर के बाहर पहुंचकर चिल्लाया, अरे बहुरिया और फिर उसी लड़खड़ाती आवाज में दुबारा पुकारा, अरे ओ नीनी की मम्मी।
घर से बहुत सुन्दर स्त्री निकली। उसे आते देख बूढ़े के मुंह पर आशा की लकीरें स्पष्ट चमक उठीं।
वह कहने लगा, ले आओ कुछ खाने को आज भूख लगी है।
बहू बोली, जाओ जब बनेगा मिल जाएगा। यहां तक चले आए। अभी राह में गिर पड़ो फिर दवा कराते घूमें। तुम्हारे ये करम कोई न देखेगा। सब हम ही को दोष लगा देंगे। तुम तो ऐसा कहते हो, जैसे खाना मिलता ही न हो तुम्हें।
बूढ़ा गिड़गिड़ाते हुए उसी कांपती आवाज में धीरे से लाचारी के साथ बोला, भूख लगी थी।
बहू बोली, आज अब मुश्किल ही है कुछ बने।
बूढ़ा आंखों में आंसू भरकर वापस आ गया।
बूढ़े ने सोचा, एक प्रयास फिर करें।
वह बोला, जाओ बिटिया, देखो चार बताशे ही हों, ले आओ कुछ पेट में पड़ जाए।
नीनी ने बताया, बाबा आज भोजन समाप्त हो गया है। अब शायद ही कुछ मिले। और बाबा आप झोपड़ी में न रहकर घर में सबके साथ क्यों नहीं रहते? घर तो तुम्हारा ही बनवाया था।
डोने बाबा हंसे और बोले, अच्छा जाओ।
वह लड़की फिर निराश घर से वापस आ गई। बाबा बताशे कितने के मिलते हैं?
डोने ने जवाब दिया, अरे 5-10 रुपए के बहुत जादा और क्या?
वह बोली, मां ने भी यही कहा, बूढ़े की 5-10 रुपए खराब करने की इच्छा मचल पड़ी है। जाकर कह दो, कल तक भूख रोक लें।
बूढ़ा ठंड से भी सिकुड़ रहा था। उसने नीनी से लकड़ियां जलाने को कहा।
नीनी ने कहा, बाबा लकड़ियां जो थोड़ी बची थीं वह शाम को मां पापा से उठवा ले गई थीं। जो बची थीं, वह अब तक जली नहीं हैं।
नीनी ने इतना कहकर कहा, अच्छा बाबा अब घर जाती हूं शाम हो रही है।
बूढ़ा बिस्तर पर पहुंच गया था। भूखा रहना तो अब जैसे जब-तब का काम था।
नीनी बिस्तर पर लेट जाती है। वह बूढ़ा आदमी उसके पास आ गया।
नीनी चौंक पड़ी, बाबा तुम?
हां, बूढ़े ने कहा, अब मैं साथ ही रहूंगा। यह घर मेरा ही बनवाया है।
नीनी बहुत खुश थी। सब साथ थे। अब वह रोज बाबा से कहानियां सुन सकती थी।
बूढ़े ने कहा, तुम रोज मेरे उस घर में आना, जहां बाबा की झोपड़ी बनी है। जहां मैं पहले रहता था।
नीनी बोली, ठीक है।
नीनी की पूरी रात पलक झपकते बीत गई। बाबा परीलोक की कहानियां सुनाते रहे जिनमें कई जगह नीनी खुद भी थी।
सुबह नीनी ने आवाज दी, बाबा कहां हैं? घर में कोई न था।
फिर वह बाबा की झोपड़ी की ओर चली। उसने अपने दरवाजे पर से देखा कि बाबा के घर मां रो रही थी।
वह भागकर वहां गई तो देखा कि बाबा शांत से सिकुड़े हुए लेटे थे। वह जैसा उन्हें छोड़ गई थी वह उसी मुद्रा में थे।
मां सबसे अधिक रो रही थी। पापा की ओर देखकर मां कह रही थी, तुम क्यों रोते हो? देखो ऐसी मौत किसे मिलती है? न पड़े, न गिरे। कितने महान थे। तुम रोना मत और खुद जोर-जोर से रोए जा रही थी।
नीनी ने मां से कहा, मां हमको भगवान कभी बूढ़े तो नहीं बना देंगे। नीनी बुढ़ापे के नाम से भयभीत थी। उसे पाप-पुण्य और भोग की परिभाषाएं सब समझ आ रही थीं।
डोने बाबा शाम को समूह में बेटे के साथ अनोखी और पूर्ण यात्रा पर चल दिए। अब उनके ऊपर बताशे, ताल, मखाने जैसी बहुत सी चीजें लुटाई जा रही थीं। लेकिन डोने बाबा का दुनिया से मोहभंग हो चुका था। वह अब पूर्ण जितेन्द्रिय होने का प्रदर्शन कर रहे थे।