लघुकथा : सुंदरता
दो साल हो गए हमारी शादी को। बताओ मैं तुम्हें सबसे सुंदर कब लगी ?
अं.....चलो तुम ही बताओ। तुम्हारा रूप कब सबसे सुंदर लगा होगा मुझे ?
हमारी शादी की पहली साल गिरह पर ? जब मैं दूसरी बार दुल्हन की तरह तैयार हुई थी ?
नहीं.....तब नहीं ।
तो जब हम शिमला गए थे और मैं भीगे बालों में तुम्हारे करीब आई थी तब ?
ना...ना...तब भी नहीं।
अबकी बार तो बिलकुल सही बताउंगी। जब हमारी बिटिया परी आनेवाली थी और मेरा रूप निखर आया था तब ?
न....न...रहने दो तुम नहीं बता पाओगी। मैं ही बताता हूं। याद है जब हम शिमला में मंदिर की सीढ़ियों पर बैठे थे। तब एक बूढ़ी महिला को देख तुम्हें अपनी दादी की याद आ गई थी। तब दादी की दी हुई सीखों, हिदायतों के बारे में बताते हुए तुम इतना खो गई कि मुझे तुममें दादी का प्रतिरूप नजर आने लगा। सच.....तब इतनी सुंदर लगी तुम कि मैंने धीरे से तुम्हारे चरण छू लिए।