अपने में ही डूबा नन्हा बच्चा बना रहा है एक चित्र
इतना तल्लीन है कि
स्पीकरों पर चीख रही चौपाइयां
बाधा नहीं डाल रही उसके काम में
उसे कोई मतलब नहीं है इससे कि
कितने मारे गए तीर्थ स्थल की भगदड़ में
और कितनों को घोंप दिया गया है छुरा
वित्त मंत्रालय द्वारा
उसे पता नहीं है
कब अपना समर्थन वापिस ले लेंगे सांसद
और कब गिर जाएगी सरकार
घटनाओं और दुर्घटनाओं से बेखबर बच्चा
बना रहा है कोई नदी,
झील भी हो सकती है शायद
एक नाव-जिसे खै रहा है कोई धीरे-धीरे
किनारे पर बनाई है एक झोपड़ी
जिसकी खपरैल से निकल रहा धुंआ
महसूस की जा सकती है हवा में
सिके हुए अन्न की खुशबू
खजूर का एक पेड़ उगा है चित्र में
उड़ रहे हैं कुछ पक्षी स्वच्छंद
अटक गया है शायद आधा सूरज पहाडियों के बीच
देखिए जरा इधर तो
निकल पड़े हैं कुछ लोग कुदाली फावड़ा लिए
निकाल लाएंगे अब शायद सूरज को बाहर
पहाडियों को खोदते हुए
चढ़ जाएंगे खजूर के पेड़ के ऊपर
और बिखेर देंगे धरती पर मिठास के दाने
नन्हा बच्चा बना रहा है चित्र
जैसे बनती है जीवन की तस्वीर
दुनिया के कागज पर.....