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शरद पूर्णिमा पर कविता : चांदनी रातभर यूं ही रोती रही...

शरद पूर्णिमा पर कविता : चांदनी रातभर यूं ही रोती रही... - poem on chandni
चांदनी रातभर यूं ही रोती रही
उसको क्या है गिला तुमको खबर ही नहीं
हर गली ये कहानी कहने लगी
बेवफा हो तुम, बेवफा वो तो नहीं
चांदनी रातभर यूं ही रोती रही।


 
आंसुओं से लिखी दर्द से सिसकती कहानी के हर लफ्ज
अब गजल बन होंठों पर आने लगे
तुमसे मिलने की चाहत जो दिल में थी
दर्द बन आज गीतों में ढलने लगे।
चांदनी रातभर यूं ही रोती रही।
 
तुम मेरे गीतों की भाषा अगर समझ न सको
ये तुम्हारी है नाकामी हमारी तो नहीं
आंखों की हसरत जिंदगी भी तो तुम्हीं हो
ये एहसास न कर पाओ तो दर्द की खता तो नहीं
चांदनी रातभर यूं ही रोती रही।
 
यूं शिकवे-शिकायत का ये मौसम नहीं
फिर भी दिल ने कहा तो हम कहने लगे
तुम्हारा नाम लेकर हम मर भी जाएंगे
इस हकीकत में अब कोई गुंजाइश नहीं
चांदनी रातभर यूं ही रोती रही।
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