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मकर संक्रांति पर कविता : मुस्कुराती पतंग

Makar sankranti 2020
डॉ. किसलय पंचोली
 
वह पहली
छत के दरवाजे की चौखट थामे
मांगती रही सदा 
उसके हिस्से का आकाश 
उड़ाने के लिए अपनी पतंग!
 
फकत मांगने से,
नहीं मिला कभी उसे 
उसके हिस्से का आकाश
और उड़ा न सकी वह 
आज तक अपनी कोई पतंग !
 
उस दूसरी ने 
कभी नहीं मांगा आकाश का कोना
बस तैयार किया मांजा 
चुनी पतंग, थमाई चकरी
और दी उछाल
आकाश की ओर अपनी पतंग !
 
तनिक हिचकोले खा 
अन्य पतंगों के पेंचों से बचती बचाती,
उड़ने लगी अच्छे से 
दूर नीले आकाश में 
उसकी गाती मुस्कुराती पतंग!
 
दूसरी ने पहली से कहा-
" मां आसमान सबका है 
यह सबक मैंने आप से ही सीखा है।" 
पहली हो गई निहाल
निहार कर नीले आकाश में 
बेटी की गाती, मुस्कुराती पतंग!
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