हिन्दी कविता : सीख ले मनवा
ममता भारद्वाज
मनवा तू क्यूं हो जाता विभोर।
क्यूं नही समझता जगत की डोर ।
यूं अकेले तन्हा रहना छोड़ दे मनवा ।
हर पल खुश रहना सीख ले मनवा।
कांटों पे चलना है जीवन अपना
बिना थके तुझको है चलना
तू इतना सोच विचार क्यूं करता मनवा ।
जग की रीत समझ ले मनवा ।
इस जग में भला कौन है अपना
सबका कर्म लेख है अपना
मनवा क्यूं हो जाता विभोर
अब तो समझ ले जगत की डोर।