शनिवार, 12 अप्रैल 2025
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. काव्य-संसार
  4. Hindi Kavita

कविता : अभी बहुत छोटी हूं मां

बेटी
मैं अभी बहुत छोटी हूं मां
अभी से न अस्तित्व पे चुनरी ओढ़ाओ
अभी उड़ने दो मुक्त
खोलो ये केश
कर आने दो पूरा कबड्डी का खेल..
अभी से न बांधो ये बोर ये बेंदा
वजनी बहुत है ये शीशफूल
अभी बेतहाशा भागूं नदी के किनारे 
चली आओ तुम भी
कि लहरों पर छोटी सी नैया चला लें...
 
ये नाक में नथ
बहुत चुभती है मां
सुकोमल है काया
अभी देर है मां 
कच्ची हैं पैरों की ये आहटें
थोड़ा ठहर जाओ
कि मुरझा न जाऊं पक्व होने से पहले...
 
ये हसली बहुत सुंदर है मां
मगर अभी भाता है स्कूल का तमगा
संभालो इसे अभी
अभी गले में फंदा लागे
अभी थोड़ा पढ़ लूं 
कि मुश्किलों को बूझने के सबक सीख लूं...
 
अभी से न सजाओ गहनों से मुझको
स्त्री हूं अभी से न ये जतलाओ
इंसान हूं ये अहसास तो कर लूं
सर उठाए रखने का प्रयास तो कर लूं...
 
अभी अपने आंगन में थोड़ा चहकने तो दो...
कि अपना हिस्सा समझ
अभी बस अंक में समेटो...