मंगलवार, 19 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. पुस्तक-समीक्षा
  4. master plan
Written By
Last Updated : गुरुवार, 5 मार्च 2020 (11:56 IST)

तथाकथित विकास से पिसते निम्न मध्यम-वर्ग को दिखाता ‘मास्टर प्लान’

तथाकथित विकास से पिसते निम्न मध्यम-वर्ग को दिखाता ‘मास्टर प्लान’ - master plan
दिलबागसिंह विर्क

डायमंड बुक्स से प्रकाशित युवा लेखिका आरिफा एविस का उपन्यास ‘मास्टर प्लान’ दिल्ली को टोकियो में बदलने के एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार पर पड़ते प्रभाव को दिखाता है। दिल्ली टोकियो तो नहीं बन पाता है, लेकिन इससे हजारों परिवारों का जीवन अंधकारमय बन जाता है। लेखिका ने कथानक में एक मुस्लिम परिवार को चुना है, जो दर्जी के पुश्तैनी धंधे से जुड़ा है और तरक्की के लिए कानपुर से दिल्ली आता है। तरक्की करता भी है, लेकिन कभी कुदरत की मार तो कभी सरकार की मार उसे फिर पुरानी स्थिति में ले जाती है। कुदरत की मार तो परिवार झेल जाता है, लेकिन सरकार का पहला झटका इस घर के बड़े लड़के को पागल बना जाता है तथा दूसरा झटका दूसरे लड़के को भीतर तक हिला जाता है, नायिका की मां स्वर्ग सिधार जाती है और नई पीढ़ी के युवक से उसकी पढ़ाई छुड़वा लेती है। यह उपन्यास एक और झटके की खबर के साथ समाप्त होता है, जो निश्चित रूप से इस परिवार को प्रभावित करेगा।

उपन्यास के केंद्र में मुस्लिम परिवार है और इसके माध्यम से लेखिका ने मुस्लिम परिवार की कुरीतियों को दिखाया है। साम्प्रदायिक सौहार्द दिखाना भी लेखिका का प्रमुख उद्देश्य है। मुस्लिम परिवार को हिन्दू परिवारों से मदद मिलती है, हालांकि बदलते परिवेश की ओर भी इंगित किया गया है। तथाकथित नेता लड़कों के सामान्य झगड़े को सांप्रदायिक रंग देना चाहता है, लेकिन राम लाल की समझदारी उसे ऐसा करने से रोक देती है। यह उपन्यास गाय को लेकर फैली दहशत को दिखाता है, साथ ही उन परिस्थितियों का भी वर्णन करता है, जहां मिल-जुलकर रहने वाले हिन्दू-मुस्लिम परिवार भी एक-दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं। हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर जो दंगे होते हैं, उनके प्रभाव को दिखाया गया। हुसैन कहता है- ‘बेगम, दंगों में भी गरीब ही पिसा, उन्हीं का रोज़गार छूटा’

और यह स्पष्ट किया गया है कि यह सब राजनीति का विषय है-
‘मैंने तो अंजुम से न जाने कितनी बार कहा है, हिन्दू से नफरत या हिंदुओं का मुसलमानों से नफरत करना ये सब सियासी मसले हैं। तुमने देखा नहीं था राम बाबू को सियासी लोगों ने कितना भड़काया था’
दंगे की दहशत के कारण अंजुम नहीं चाहती कि उसका पति दिल्ली जाए- ‘देखिए, अब आप दिल्ली काम पर न जाओ। आप तो दिल्ली चले जाओगे पर यहां रहकर मेरा दिल घबराता रहेगा। वहां जाने के बाद आपकी न कोई चिट्ठी, न ही कोई खोज खबर बताने वाला। वक्त का क्या भरोसा आगे भी कोई दंगा फसाद हो गया तो फिर क्या होगा? मुझे सोचकर ही घबराहट होती है’
दंगे के बाद घबराहट का माहौल सामान्य बात है। दंगे भले हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर होते हैं, लेकिन सामान्यतः सब मिलकर रहते हैं। हुसैन कहते हैं-

‘बेशक देश में हिन्दू-मुस्लिम के दंगे हुए थे, लेकिन गरीब जनता धार्मिक पचड़ों में नहीं पड़ती, जिन्हें रोजी रोटी का जुगाड़ नहीं वो धार्मिक मामलों में क्या सुध लेंगे। ये हिन्दू-मुस्लिम तो लोगों को आपस में बांटने के लिए हैं। क़ुरआन छपती है, उनकी बाइंडिंग कोई हिन्दू कारीगर भी करता है’

धर्म के विषय में लेखिका ने विस्तार से लिखा है। अंजुम बहुत ज्यादा कट्टर है। हिंदुओं द्वारा दिया खाना वह नहीं खाती। वह कहती है-
‘मदद अपनी जगह है और खाना- पीना अपनी जगह’
कावड़ियों के वस्त्र तैयार करने में उसे परेशानी होती है, लेकिन वह गाय को हिन्दू मानने को तैयार नहीं है और इसे पालने की ज़िद करती है। इस्त्मे जाने के बाद उसका कट्टरपन बढ़ा है। वह बहू के साड़ी पहनने को पसंद नहीं करती। 
‘मुसलमान घरों की औरतें साड़ी नहीं बांधती पर शबीना बांधती है’
जब-जब विपत्ति आती है, परिवार अंधविश्वास की तरफ झुकता है, धर्म से ज्यादा जुड़ता है। परिवार में आशा आधुनिक ख़्यालों वाली है। उसकी पढ़ाई उसके विरोध की धार को तेज करती है। रफी भी शुरू में विरोधी है, वह संगीत को लेकर सवाल करता है – ‘पर अब्बू, मोहम्मद रफी भी तो गाते हैं, साहिर लुधियानवी गीत लिखते हैं और उस्ताद बिस्मिल्लाह खान शहनाई बजाते हैं और…’
रफी पढ़ नहीं पाता, शायद इसी कारण उसकी विरोधी प्रवृति धीरे-धीरे कुंद होती जाती है। वह धार्मिक लोगों के चंगुल में फंसता है, उन्हें पैसे देता है। आशा बताती है-
‘कुछ मोमिन भाइयों ने जो मस्जिद की तरफ से सुबह सुबह गश्त के लिए ले जाने के नाम पर आते थे। वो दीन के नाम पैसा लिया, साथ ही उन्होंने अपने खुद के खर्च के लिए एक लाख के करीब पैसा ले रखा था’
धर्म को लेकर एक समस्या इसके धर्म ग्रन्थों की भाषा है, जो आमजन की समझ से बाहर है। परिणामतः लोग इसकी व्याख्या के लिए धर्म के ठेकेदारों पर निर्भर करते हैं। इस उपन्यास में भी इस समस्या को उठाया गया है-
‘दीनी तालीम अरबी में हम पढ़ तो सकते हैं, लेकिन समझ नहीं सकते’
लेकिन आम आदमी धर्म के खोखलेपन से अनभिज्ञ हो ऐसा नहीं। कारखाने का दृश्य इसे साबित करता है-
‘सिर पर टोपी हो न हो पर हाथ में कपड़ा था जिसको सिलना था, पेट के लिए यही धर्म और ईमान था’
जब रफी संगीत सुनने की बात करता है तो कारीगर कहता है-
‘अगर गाना नहीं सुनेंगे तो कोई काम नहीं कर पायेगा’ मनहूसियत में कोई कितने घण्टे काम कर सकेगा। जब भूख लगेगी न ये सब दीन की बातें भूल जाओगे’

स्पष्ट है, गरीब के लिए रोजगार पहले है, धर्म बाद में।

उपन्यास का मुख्य विषय सरकार की नीतियों से परिवार की बर्बादी को दिखाना है। सरकार की मंशा पर रफी शुरू में ही सवाल उठाता है- ‘मुझे जानना है कि मास्टर प्लान में दिहाड़ी मजदूर, सिलाई मजदूर या रेडी-पटरी, खोमचे वालों के लिए भी कोई योजना है क्या?"

मास्टर प्लान की बात उपन्यास के दूसरे अध्याय में की गई। चुनाव के दौरान नेता इसकी घोषणा करते हैं। बारहवें अध्याय से इसका असर दिखता है। पहले सीलिंग के नाम से लोगों को उजाड़ा जाता है, फिर नोटबंदी से लोगों को परेशान किया जाता है और अंत में जीएसटी लागू हो जाती है। लेखिका ने सीलिंग का अर्थ भी स्पष्ट किया है-

‘रहने लायक जगह को रोजगार यानी व्यापार के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। अब उस जगह का व्यापारिक कामों में इस्तेमाल करना गैरकानूनी है। इसी वजह से पता नहीं कब किसका मकान सीलिंग की जद में आ जाये, सब घबराए हुए हैं’
उपन्‍यास में विन्यास को लेकर थोड़े सुधार की ज़रूरत है। हालांकि इन थोड़ी से कमियों के कारण इस उपन्यास के महत्त्वपूर्ण बिंदुओं को नकारा नहीं जा सकता। यह मौजूदा समय का दस्तावेज है। उस दौर में जब मीडिया चारण बनता जा रहा है यह सरकार की आलोचना का साहस भरा क़दम है, जिसकी तारीफ की जानी चाहिए।

पुस्तक- मास्टर प्लान
लेखिका- आरिफा एविस
प्रकाशक- डायमंड पॉकेट बुक्स
कीमत-150
पृष्ठ- 136

ये भी पढ़ें
अवश्य जानना चाहिए आधुनिक महिलाओं के ये 11 खास गुण, जानिए क्या आप भी हैं इसमें शामिल...