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Written By WD

मुसाफिर : गजल संग्रह

गजल संग्रह
डॉ बशीर बद्र को उर्दू का एक ऐसा शायर माना जाता है, जिसने कामयाबी की बुलंदियों को फतह कर बहुत लंबी दूरी तक लोगों के दिलों की धड़कन को अपनी शायरी में उतारा है। बशीर बद्र अपनी गजल की मुताहिद किताबों के साथ-साथ मुशायरों के भी मकबूल शायर हैं। मुसाफिर उनकी इस बुलंदी और शख्स‍ियत की नुमाइंदगी करती है। शुरूआत से अभी तक बशीर बद्र की गजल में एक नयापन मिलता है। उन्होंने बड़ी ही खूबसूरती और सलीके से शायरी और गजल को उर्दू के दायरे से निकालकर आम आदमी तक पहुंचाया है।
कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले लगोगे तपाक से 
ये नए मिजाज का शहर है जरा फासले से मिला करो 
 
डॉ. बशीर बद्र का गजल संग्रह मुसाफिर, नई और पुरानी गजलों के साथ-साथ नज्म और उनके बेहतरीन शेरों को संकलन है। मुसाफिर में न केवल उर्दू भाषा का  पारंपरिक प्रयोग है, बल्कि नई गजलों को भी शामिल किया गया है। इन नई गजलों में बद्र साहब ने ठेठ हिन्दी से लेकर अंग्रेजी के लफ्जों को भी भरपूर इस्तेमाल किया है - 
 
गीले-गीले मंदिरों में बाल खोले देवियां 
सोचती हैं उनके सूरल देवता कब आएंगे 
 
बिल्डिंगें लोग नहीं हैं जो कहीं भाग सके 
रोज इंसानों का सैलाब बढ़ा जाता है 
 
दुनिया भर में शहरों का कल्चर यक्सां 
आबादी तन्हाई बनती जाती है 
 
 
कभी उन्होंने अपनी जिंदगी में करीब से देखे हादसों पर लिखा, तो कभी जिंदगी के मौजूदा हालातों या कुछ तर्जुबों को शेरों की शक्ल में कागज पर उतारा। कई शेर और गजलें पढ़कर, जिंदगी के कभी अनछुए तो कभी भयावह पहलुओं को करीब से महसूस किया जा सकता है - 
 
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में 
तुम तरस नहीं खाते बस्ति‍यां जलाने में  
 
मुसाफिर में आगे बढ़ती दुनिया का लगातार पीछा करती, और उसके कुछ सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं को उजागर करती गजलें भी मिलती हैं। तो कहीं देशभक्ति‍ का जज्बा जिए आसमान में उड़ते परिंदों की फिक्र भी। कल्पना चावला पर बशीर बद्र की लिखी कुछ पंक्तियां :
 
कल्पना खो गई है तारों में 
अपनी बच्ची को ढूंढ लाऊं क्या 
आज संडे है कल भी छुट्टी है 
बासमानों में घूम आऊं क्या 
 
जख्म खाते रहो, मुस्कुराते रहो
अपनी अमरीका से दोस्ती हो गई 
 
मुतमइन हैं जरा अमीरों गरीब 
हर मुसीबत मिडिल क्लास हो गई है 
 
मोहब्बत भरी कलम से लिखी शायरी और तंज भरे लफ्ज भी उनकी कलम से निकले, जो कि बेहतरीन थे। अपनी गजलों में उन्होंने दीवानेपन को भी खूब जिया है, और गिले शि‍कवे भी जाहिर किए लेकिन उन्होंने खुशी या गम में अपनी कलम को कभी बांध कर नहीं रखा।

सोचा नहीं अच्छा बुरा, देखा सुना कुछ भी नहीं 
मांगा खुदा से रात-दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं 
 
वो सादगी, न करे कुछ भी तो अदा ही लगे 
वो भोलापन है के बेबाक की भी हया ही लगे 
 
पत्थर मुझे समझता है मिरा चाहने वाला 
मैं मोम हूं उसने मुझे छूकर नहीं देखा 
 
मुसाफिर में हर तरह और हर मुद्दे पर कोई बात लिखी मिलती है। उनकी गजलें अपने तर्जुबे से से कई अनकही लेकिन तथ्यपरक बातों को समझाती हैं
 
परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहता 
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता 
 
बशीर बद्र की कुछ गजलें और शेर एक बार कगज पर उतरकर ऐसे अमर हो गए, जैसे पूरी दुनिया उन्हें सालों से पहचानती हो। इनमें झलकती भावों की संजीदा अदाकारी काबिले तारीफ और सदा याद रखने लायक है...उनकी ऐसी ही कुछ गजलें सबसे ज्यादा पसंद की जाती हैं - 
 
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो 
न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए  
 
 मुसाफिर, बशीर बद्र की उम्दा और मकबूल गजलों का एक बेहतरीन संकलन है, जो अाम और खास इंसान के हर एहसास को बयां करती है। उनकी कलम की जादूगरी इतनी हर  दिल अजीज है, कि उसके बारे में राहत बद्र लिखती हैं - 
 
अल्लाह ने मेरे शौहर के सच इतने खूबसूरत बनाए हैं कि लोगों को झूठ लगते हैं ...
 
 
     पुस्तक  -  मुसाफिर,
       गजल -  बशाीर बद्र 
    संपादन  - सचिन चौधरी 
    
संकलन  -   सचिन चौधरी
      कीमत  - 195 रूपए 
 मंजुल पब्ल‍िशि‍ंग हाउस