स्मृति आदित्य की किताब 'हथेलियों पर गुलाबी अक्षर' का विमोचन
कविता मेरे लिए मन के प्रबलतम भावों को कागज़ पर रख देना ही मात्र नहीं है
रख दो
इन कांपती हथेलियों पर
कुछ गुलाबी अक्षर
कुछ भीगी हुई नीली मात्राएं
बादामी होता जीवन का व्याकरण,
चाहती हूं कि
उग ही आए कोई कविता
अंकुरित हो जाए कोई भाव,
प्रस्फुटित हो जाए कोई विचार
फूटने लगे ललछौंही कोंपलें...
मेरी हथेली की ऊर्वरा शक्ति
सिर्फ जानते हो तुम
और तुम ही दे सकते हो
कोई रंगीन सी उगती हुई कविता
इस 'रंगहीन' वक्त में।
पत्रकार और कवयित्री स्मृति आदित्य की इस कविता के साथ उनकी पहली पुस्तक 'हथेलियों पर गुलाबी अक्षर' का विमोचन 12 अप्रैल को होटल अपना ऐवेन्यु में किया गया। वामा साहित्य मंच के बैनर तले आयोजित इस किताब को मप्र साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे ने लोकार्पित किया। चर्चाकार के रूप में साहित्यकार ज्योति जैन शामिल हुईं।
स्मृति ने कहा कि 'कविता मेरे लिए मन के प्रबलतम भावों को कागज़ पर रख देना ही मात्र नहीं है। मैं कविता को उड़ते बादलों के टुकड़ों से पानी की बूंदें हथेली पर पा लेने जैसा अहसास मानती हूं...गहरे अहसास से जुड़ी मेरी कविताएं पूरी होकर तृप्त अवस्था में बरसों रखी रहीं लेकिन कभी नहीं सोचा कि इन्हें पुस्तक के रूप में लाना है। आभासी पटल पर फाल्गुनी के नाम से खूब लिखा और यही मेरा मधुरतम सुख था कि उन्हें पढ़ा और स्वीकारा जा रहा है।'
सृजनबिम्ब प्रकाशन से आई स्मृति की इस किताब पर चर्चा करते हुए ज्योति जैन ने कहा कि जब एक स्त्री प्रेम करती है तो प्रेम में डूबती है, वह नाचती भी है गाती भी है। उसकी कविताओं में कभी मोर नाचता है तो कभी झरना बहता है। कभी वह चांद सी ठंडक देती है तो कभी सूर्य सी ऊर्जा बन जाती है। कभी कुमकुम के सिंदूरी रंग में रंग जाती है तो कभी पारिजात बन समर्पण भाव से बिछ जाती है। कभी अपने सपनों के इंद्रधनुषी रंग रंगोली में बिखेर देती है। कभी चिड़िया सी चहचहाती है, तो कभी चंचल नदी सी उछलकर निर्बाध बहती है। कभी सपनों की आकाशगंगा में विचरती है, तो कभी प्यार का अथाह समुद्र तलाशती है। कभी अपनी पूरी जिंदगी डेस्क पर लगाती है, तो कभी सब कुछ गृहस्थी में उलीच देती है।
मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. विकास दवे ने कहा कि स्मृति की कविताओं में मिलेजुले रंग हैं...भावनाएं हैं और रिश्ते को जी लेनी का अहसास है। खास बात कि पुस्तक त्रुटियों से मुक्त हैमुख्य अतिथि श्री विकास दवे ने कहा कि स्मृति की कविताओं के बिम्ब बेहद प्रभावी हैं। पंचतत्वों के सारे तत्वों का जिस तरह उन्होंने अपनी कविताओं में इस्तेमाल किया है वह बेहतरीन है। मां के प्रति उनके भाव और मां के उनके प्रति भाव जिस तरह से व्यक्त होते हैं उससे जाहिर होता है कि रिश्तों को लेकर भावनाओं की उनकी दृष्टि क्या है। उन्होंने कहा कि रिश्तों की इस बुनावट को स्मृति की कविताएं बखूबी रखती हैं। स्मृति के बिम्ब में स्नेह हर वृक्ष की छांव से जब तुलना पाता है तो वह हमारे बेहद करीब की बात कहता है। हथेलियों के गुलाबी अक्षर आपके और हमारे कहन से जुड़े हैं और यही उन्हें सफल बनाती है।
इससे पूर्व वामा साहित्य मंच की अध्यक्ष इंदु पाराशर ने स्वागत उद्बोधन दिया।
अतिथिद्वय सहित आर्टिस्ट सारंग क्षीरसागर का स्वागत मंजु मिश्रा, मंशा कनिक, प्रदीप कनिक, डॉ. भारती जोशी, प्रदीप व्यास,क्षितिज कनिक, डॉ. किसलय पंचोली ने किया। संचालन डॉ. अंजना चक्रपाणि मिश्र ने किया और सरस्वती वंदना संगीता परमार ने प्रस्तुत की। आभार आदित्य पांडे ने माना।इस अवसर पर कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।