हिमाचल में जीत के बाद भी कांग्रेस को क्यों सता रहा मध्यप्रदेश जैसा डर?
हिमाचल में कांग्रेस ने पांच दशक का पुराना रिवाज बरकरार रखते हुए सत्ता में वापसी भले ही कर ली हो लेकिन मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर दिसंबर की कड़कड़ाती ठंड ने हिमाचल के सियासी पारा को गर्मा दिया है। दरअसल हिमाचल में कांग्रेस बिना मुख्यमंत्री चेहरे के चुनावी मैदान में उतरी थी और अब चुनाव में जीत हासिल करने के बाद उसके सामने मुख्यमंत्री चेहरे का चुनाव करने को लेकर पेंच फंस गया है।
हिमाचल में 68 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस ने 40 सीटों पर जीत हासिल की है वहीं सत्ता में काबिज रही भाजपा ने 25 सीटों पर जीत हासिल की है। कांग्रेस ने हिमाचल में भले ही स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया हो लेकिन उसके सामने अपने विधायकों को एकजुट रखने की चुनौती बन गई है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री जिनको केंद्रीय नेतृत्व ने हिमाचल प्रदेश में पर्यवेक्षक की जिम्मेदारी सौंपी है उनके एक बयान ने राज्य के चुनावी माहौल को और गर्मा बना दिया है। भूपेश बघेल ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी जिस तरह से 8 से 10 साल के राजनीति कर रही है उसमें किसी भी चीज से इंकार नहीं किया जा सकता। भूपेश बघेल का यह बयान ऐसे समय आय़ा है जो हिमाचल में चुनाव जीते कांग्रेस विधायकों को रायपुर शिफ्ट करने की बात चल रही है। भूपेघ बघेल ने हिमाचल में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर कहा कि कांग्रेस विधायक दल की बैठक में नए मुख्यमंत्री चेहरे का चुनाव होगा।
मुख्यमंत्री चेहरे को दो प्रमुख दावेदार?- हिमाचल में मुख्यमंत्री चेहरे के अगर दावेदारों की बात की जाए तो दो प्रमुख चेहरे सामने आते है। इनमें पहला नाम पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र की पत्नी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह का नाम सबसे आगे है। प्रतिभा सिंह जो वर्तमान में मंडी लोकसभा सीट से सांसद है वह वीरभद्र सिंह की विरासत के आधार पर अपना दावा मजबूत कर रही है। कांग्रेस जिसने वीरभद्र के चहेरे को अपने चुनावी अभियान में प्रमुखता से शामिल किया था उसके आधार पर प्रतिभा सिंह का दावा अधिक मजबूत हो रहा है।
प्रतिभा सिंह की दस जनपथ पर सीधी पैंठ मानी जाती है। हिमाचल में जीत के बाद प्रतिभा सिंह ने लोगों को धन्यवाद देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री कौन होगा इस फैसला विधायक दल की बैठक में होगा। मुख्यमंत्री की चेहरा मानी जा रही प्रतिभा सिंह मौजदू समय में सांसद है और उन्होंने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा था।
वहीं हिमाचल में कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री चेहरे के दूसरे प्रमुख दावेदार चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू का नाम आता है। हिमाचल में कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे सुखविंदर सिंह सुक्खू की पहचान कांग्रेस के दिग्गज नेता के तौर पर होती है थी। सुखविंदर सिंह सुक्खू को राहुल गांधी का करीबी माना जाता है। सुक्खू ने नादौन सीट से चौथी बार विधायक बनकर अपनी दावेदारी को और मजबूत किया है।
क्यों फंसा है पेंच?- हिमाचल में विधानसभा चुनाव की तारीखों के एलान से पहले ही मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर गतिरोध देख गया था। सुखविंदर सिंह सक्खू को हिमाचल में वीरभद्र सिंह के प्रतिदंदी के तौर पर देखा जाता था और माना जा रहा है कि अगर पार्टी प्रतिभा सिंह का नाम मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर आगे करती है तो उसका विरोध भी किया जाएगा। वहीं प्रतिभा सिंह के समर्थक चुनाव नजीतों के आने के बाद खुलकर सुखविंदर सिंह सक्खू की दावेदारी कर विरोध कर रहे है।
हिमाचल में कांग्रेस को मध्यप्रदेश जैसा डर!- हिमाचल में आज कांग्रेक की स्थिति ठीक वैसे ही जैसे 2018 में मध्यप्रदेश के चुनाव नतीजों के बाद हुई थी। चुनाव में पहले कांग्रेस हाईकमान ने कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर उनके कंधों पर प्रदेश की जिम्मेदारी थी, वहीं उस समय कांग्रेस में रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया को हईकमान ने कांग्रेस के चुनाव प्रचार समिति की कमान सौंपी थी और 15 महीने के बाद सिंधिया भाजपा के साथ चले गए थे और कांग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा था।
क्या है हिमाचल का रिवाज?- हिमाचल में कांग्रेस की जीत को कांग्रेस के लिए संजीवनी का तरह देखा जा रहा है। हिमाचल प्रदेश में पांच साल बाद सत्ता में वापसी कर कांग्रेस ने पांच दशक पुराना रिवाज बरकरार रखा है। दरअसल नब्बे के दशक से राज्य में बारी-बारी से कांग्रेस और भाजपा की सरकार बनती आई है। 1993-1998 तक राज्य में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी तो 1998-2003 तक भाजपा के प्रेम कुमार धूमल ने हिमाचल प्रदेश में सरकार बनाई। वहीं 2003 में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी करते हुए वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में फिर से राज्य में सरकार बनाई, तो अगले ही विधानसभा चुनाव 2007-2012 में भाजपा फिर से सत्ता में काबिज हुई। वहीं 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बड़ी जीत हासिल की और एक बार फिर वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे। वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सत्ता में वापसी की और जयराम ठाकुर राज्य के मुख्यमंत्री बने।