'युवा' जो अपने भविष्य को संवारने के लिए लगातार मेहनत करते हैं। अपने घर से दूर, अपने परिवार से दूर रहकर अपने काम को प्राथमिकता देते हैं। लेकिन कहीं-न-कहीं परिवार और अपनों का साथ न होना दु:खी तो करता ही है। लेकिन एक दौर ऐसा भी आया है, जब सभी को अपने घर जाना पड़ा। उन युवाओं को भी, जो अपने घर से दूर थे।
यह समय है लॉकडाउन का। इस वक्त कामकाजी युवा अपने घर में रहकर अपनों के साथ रहकर घर के सुख का पूरा लाभ उठा रहे हैं। ऐसे ही कुछ युवाओं से हमने बात की और उनसे जाना कि क्या वाकई कामकाजी युवाओं के लिए लॉकडाउन वरदान साबित हुआ? आइए जानते हैं उनकी राय...
शोभित रावत, जो कि CSC कियोस्क संचालक हैं, का कहना है कि लॉकडाउन के पहले जो जिंदगी थी, वो कहीं-न-कही दौड़-भागभरी जिंदगी थी और परिवार के साथ बहुत कम समय ही बिता पाते थे। पर लॉकडाउन के दौरान परिवार के साथ जो समय बिताने का अवसर मिला, वह वाकई बहुत अनमोल समय है और बचपन की गर्मी की छुट्टी की यादें भी ताजा हो गईं, साथ ही परिवार में बड़े-बुजुर्गों से कई प्रकार के जीवन से जुड़े अनुभव प्राप्त हुए।
काम की बात की जाए तो घर से रहकर ऑफिशियल काम करना भी एक अलग ही अनुभव रहा। हालांकि मोबाइल फोन, कम्प्यूटर, इंटरनेट या यूं कहें टेक्नोलॉजी की मदद से ऑफिशियल काम करने में बहुत मदद मिली। सबसे महत्वपूर्ण दिन का जो भी समय बचता था तो इस दौरान हमने बहुत से जरूरतमंद लोगों की मदद भी की।
नेहा सोनी (जर्नलिस्ट) बताती हैं कि हर चीज के दो पहलू होते हैं लेकिन यहां हम लॉकडाउन के उस पहलू को देखेंगे जिसने पूरी दुनिया की जिंदगी बदली है। कोरोना संकट और उससे निपटने के लिए तमाम कोशिशें की जा रही हैं। एक ओर पूरे देश में लॉकडाउन है तो दूसरी ओर कोरोना इलाज के लिए वैक्सीन के लिए भी नित नए-नए प्रयोग किए जा रहे हैं।
बहरहाल, देखा जाए तो इस लॉकडाउन ने हमें बहुत कुछ दिया है। बात अगर यूथ की जाए तो कामकाजी युवाओं के लिए भी यह वरदान बना। रोज की वही दिनचर्या का शिकार युवा चाहता था कि उसे थोड़ा वक्त मिले अपने लिए व अपनों के साथ गुजारने के लिए। इस लॉकडाउन में यह पर्याप्त समय हम सभी को मिल रहा है। न सिर्फ युवाओं को बल्कि हर एक उम्र और वर्ग आज अपने परिवार के साथ है। वे बताती हैं कि लॉकडाउन के वक्त एक ऐसा समय हम अपने परिवार और अपनों के साथ गुजार रहे हैं, जो सदियों तक हमें याद रहेगा। दूसरी बड़ी बात, मां-बाप को अक्सर शिकायत होती थी कि बेटी को खाना बनाते नहीं आता, वह कुछ सीखती नहीं है, घर के काम में हाथ नहीं बंटाती है। तो देखिए, आज वो बेटी हर एक काम कर रही है। रोज कुछ नया कर रही है चाहे खाने में नई-नई चीजें बनानी हो या घर के दूसरे काम।
लड़कों की बात करें तो वे भी किसी से कम नहीं हैं। ज्यादातर समय काम और फिर बाहर रहने वाले लड़के भी आज घर में रहकर सरकार को तो समर्थन दे ही रहे हैं, साथ ही घर के सुख में भी आनंदित हो रहे हैं। माता-पिता भी खुश हैं कि जो वो चाहते थे, वह लॉकडाउन ने दिया। आज न दफ्तर जाने की चिंता, न ही बॉस की डांट का डर। ऊपर से सबसे अच्छी बात कि 'वर्क फ्रॉम होम' मिला है। आनंद के साथ काम भी हो रहे हैं।
कुल मिलाकर देखा जाए तो कोरोना के डर और लॉकडाउन ने हमारी जिंदगी को बदला है। वो सब हमें मिल रहा है, जो हम चाहते थे। फर्क सिर्फ इतना है कि तरीका बदला है। लेकिन जिस साथ और आत्मीय सुख की हम केवल कल्पना करते थे, उसे आज हम पा रहे हैं, वो भी सहपरिवार।
इस अच्छे वक्त को हमें खुलकर जीना चाहिए। इसमें सकारात्मक कार्यों को करें, नई-नई चीजें सीखें और वो सब करें जिसकी आप कल्पना करते थे। साथ ही शुक्रिया करें उस रब का, जो हमें अपनों के साथ रहने का वक्त दिया जिसे हम क्या हमारी सारी पीढ़ियां याद रखेंगी।
माया हिमांशु राठौर
माया हिमांशु राठौर, जो कि बैंकिंग प्रोफेशन में हैं, का कहना है कि लॉकडाउन के पहले हम सभी अपनी जिंदगी वअपने कामकाज में इतने ज्यादा व्यस्त थे कि परिवार के लिए समय निकाल पाना बहुत मुश्किल हो जाता था और ऐसे में रिश्तों में दरार जैसी समस्या भी आती है। लेकिन लॉकडाउन का सकारात्मक पक्ष यह है कि इस दौरान हम पूरा समय अपने परिवार को दे रहे हैं। सुबह के ब्रेकफास्ट से लेकर रात के डिनर तक हम साथ में समय बिता रहे हैं, आपसी मतभेद को सुलझा रहे हैं, जो कहीं-न-कहीं व्यस्त दिनचर्या की वजह से बढ़ता ही जा रहा था।
वे कहते हैं कि लॉकडाउन ने हमको मजबूत रिश्ते दिए। आज हम अपने परिवार के साथ एक अच्छा समय बिता रहे हैं। घर के बड़ों का पूरा ख्याल रख रहे, जो खुद को भी सुकून दे रहा है। इसलिए यह लॉकडाउन वाकई वरदान बनकर आया है, क्योंकि इससे पहले शायद ही किसी ने सोचा होगा कि इतना समय हम अपने परिवार के साथ बिता पाएंगे।
वे कहते हैं कि इस समय हम लॉकडाउन का पूरा फायदा उठाते हुए अपने परिवार के साथ बहुत अच्छा समय बिता रहे हैं। आज घर के कामों में घर का हर सदस्य मदद करता है और ऐसे में हम एक-दूसरे को और बेहतर तरीके से समझ पाते हैं। अब लगता है कि लॉकडाउन के बाद रिश्तों की यह मजबूती कमजोर नहीं पड़ेगी।
हर्षिता पाठक (HR)
वे बताती हैं कि लॉकडाउन के दौरान हमारे मन से यह शिकायत तो निकल गई कि हमें अपने परिवार के साथ समय नहीं मिल पाता, क्योंकि जब हम अपनी दिनचर्या में व्यस्त होते हैं तो हमें कहीं-न-कहीं यह बात परेशान जरूर करती है और हम कई बार परेशान भी होते हैं। लेकिन इस वक्त हमारी ये सारी शिकायतें खत्म हो गई हैं।
वे बताती हैं कि घर में रहकर अपनी मम्मी के साथ उनके काम में हाथ बंटाना खुशी देता है। रोज कुछ-न-कुछ नया सीख रहे हैं, घर के बड़ों के साथ समय बिता रहे हैं और उनके अनुभव हमें भी बहुत कुछ सिखा रहे हैं। इस समय के बारे में किसी ने कभी नहीं सोचा था कि कभी ऐसा भी होगा। मैं सिर्फ यहीं कहना चाहूंगी कि लॉकडाउन से परेशान होने के बजाय इस समय का भरपूर फायदा उठाएं।