शनिवार, 12 अप्रैल 2025
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सर्प की बांबी की मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमा होती है अत्यंत शुभ, पढ़ें और भी आश्चर्यजनक जानकारी....

Ganesh Pratima Ganesh jee idol
प्रथम पूजित तथा मंगल कार्यों के विघ्न नाश हेतु सर्वत्र जिनका स्मरण किया जाता है। श्री गणेश की साधना से काम, क्रोध, लोभ, मोह, अभिमान इत्यादि अंतरशत्रु, जो अप्रकट हैं, उनका शमन होकर मोक्ष भी प्राप्त किया जा सकता है। बाहरी विघ्न तो यूं ही शांत हो जाते हैं। तंत्रशास्त्र में जिस प्रकार विभिन्न पदार्थों के शिवलिंग की अर्चना से विभिन्न फल प्राप्त किए जाते हैं, उसी प्रकार श्री गणेश की अलग-अलग प्रतिमाओं का अर्चन अलग-अलग फल देता है।
 
कोई भी प्रतिमा गुरु पुष्य या रवि पुष्य में बनाएं। 
 
रक्तचंदन की प्रतिमा विघ्न दूर कर ऐश्वर्य देती है। 
 
श्वेतार्क के मूल की प्रतिमा धन-संपदा देती है। 
 
निम्ब (नीम) काष्ठ की प्रतिमा से शत्रु नाश होता है। 
 
गुड़ की प्रतिमा से सौभाग्य वृद्धि होती है।
 
सर्प की बांबी की मिट्टी से बनी प्रतिमा अभीष्ट सिद्धि देती है। यह जानकारी दुर्लभ पुराणों में मिलती है। इस तरह निर्मित प्रतिमा अत्यंत शुभ और मंगलकारी होती है। बिना किसी तंत्र मंत्र क्रिया के यह सुरक्षा कवच का काम करती है। 
 
लवण की प्रतिमा से शत्रु नाश होता है। सेंधा नमक की प्रतिमा का प्रयोग मारण कर्म में किया जाता है। 
 
श्री गणेश के मुख्य वर्ण 4 हैं- श्वेत वर्ण, पीत वर्ण, नील वर्ण तथा सिन्दूर वर्ण। साधारणतया सिन्दूर वर्ण के गणेशजी पूजे जाते हैं।
 
गणेशजी की प्रतिमा अंगुष्ठ प्रमाण की बनाई जाती है तथा जैसे हनुमानजी को चोला चढ़ाते हैं, वैसे ही घी तथा सिन्दूर से गणेशजी को चोला चढ़ाया जाता है। कामनापूरक गणपति मंत्र निम्न है- 
 
(1) पुत्र प्राप्ति के लिए गणेश प्रतिमा चुनकर स्थापना कर पूर्वोक्त विधि से पूजन करें। स्मरण रहे, संकल्प जरूर लें। पश्चात श्री गुरुमंत्र की 4 माला, 'ॐ गं गणपतये नम:' की एक माला तथा 'ॐ गं गणपतये पुत्र वरदाय नम:' की यथाशक्ति जितने जप का संकल्प किया हो, पश्चात 'ॐ गं गणपतये नम:' की माला कर पुन: पूजन, आरती, क्षमा अपराध स्तोत्र इत्यादि पूर्ण करें। शांतिपाठ जरूर करें।
 
(2) शत्रु नाश के लिए निम्ब (नीम) वृक्ष की लकड़ी से गणेश प्रतिमा बनवाकर पूर्वोक्त रीति से पूजन कर मध्य में 'ॐ गं घ्रौं गं शत्रु विनाशाय नम:' जपें।
 
(3) विघ्न शांति के लिए अर्क वृक्ष की काष्ठ से पूर्वोक्त रीति से 'ॐ वक्रतुण्डाय हुं' जपें।
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