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Last Updated : सोमवार, 11 मार्च 2024 (12:35 IST)

सुप्रीम कोर्ट ने क्‍यों रद्द की चुनावी बॉन्ड योजना, चंदे का हिसाब भी मांगा, क्‍या होते हैं चुनावी बॉन्ड?

electoral bond
  • क्‍या होते हैं चुनावी बॉन्‍ड, कौन खरीद सकता है
  • चुनावी बॉन्ड स्कीम असंवैधानिक, सुप्रीम कोर्ट ने रोकी योजना
  • गोपनीयता के प्रावधान को बताया RTI एक्ट का उल्लंघन
  • सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की संविधान पीठ ने सुनाया फैसला
Electoral Bond : Why did the Supreme Court cancel the electoral bond scheme? चुनावी बॉन्ड योजना पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को बहुत बड़ा झटका दिया है। देश की सर्वोच्च अदालत ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है। इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने पिछले पांच सालों के चंदे का हिसाब-किताब भी मांग लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को लेकर अपने तर्क दिए हैं। अगले दो महीनों के बाद देश में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में जाहिर है इससे चुनावों पर भी फर्क पड़ेगा।

क्‍या कहा सुप्रीम कोर्ट ने : अब निर्वाचन को बताना होगा कि पिछले पांच साल में किस पार्टी को किसने कितना चंदा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) से पूरी जानकारी जुटाकर इसे अपनी वेबसाइट पर साझा करे। शीर्ष अदालत के इस फैसले को उद्योग जगत के लिए भी बड़ा झटका माना जा रहा है।

क्‍यों सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड की योजना रद्द की
RTI एक्ट का उल्लंघन करती है चुनावी बॉन्ड की योजना: सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम में गोपनीय का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत सूचना का अधिकार कानून का उल्लंघन करता है। अब शीर्ष अदालत के फैसले के बाद पब्लिक को भी पता होगा कि किसने, किस पार्टी की फंडिंग की है। बता दें कि चार लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर चुनावी बॉन्ड स्कीम की वैधता को चुनौती दी थी। इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा फैसला दिया है।
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पिछले दरवाजे से रिश्वतखोरी को अनुमति नहीं : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दलों की फंडिंग करने वालों की पहचान गुप्त रहेगी तो इसमें रिश्वतखोरी का मामला बन सकता है। पीठ में शामिल जज जस्टिस गवई ने कहा कि पिछले दरवाजे से रिश्वत को कानूनी जामा पहनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि इस स्कीम को सत्ताधारी दल को फंडिंग के बदले में अनुचित लाभ लेने का जरिया बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। उन्होंने मतदाताओं के अधिकार की भी बात की।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा है?
  • स्टेट बैंक चुनावी बांड बेचना बंद करे
  • ये चुनावी बांड योजना बंद की जाती है
  • इसकी पूरी जानकारी वर्ष 2019 स्टेट बैंक को अपनी वेबसाइट पर जाहिर करनी होगी
  • ये वोटर का अधिकार है कि वो जाने कि चुनावी बांड में कहां से पैसा आया और किसने लगाया
  • इसकी जानकारी नहीं देना सूचना अधिकारों का भी उल्लंघन है
  • RTI एक्ट का उल्लंघन करती है चुनावी बॉन्ड की योजना
  • रिश्वतखोरी को कानूनी जामा पहनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती
  • दलों की फंडिंग करने वालों की पहचान गुप्त होगी तो रिश्वतखोरी का मामला बनेगा
ऐसे में जानना जरूरी है कि आखिर क्‍या होते हैं चुनावी बॉन्‍ड, कौन जुटा सकता है चुनावी बॉन्ड से फंड और कौन खरीद सकता है चुनावी बॉन्ड।

क्या है चुनावी बॉन्ड : चुनावी बॉन्ड एक वचन पत्र की तरह होता है जिसे भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से किसी भी भारतीय नागरिक या कंपनी द्वारा खरीदा जा सकता है। ये बॉन्ड अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को दान किए जा सकते हैं। बॉन्ड बैंक नोटों के समान होते हैं जो मांग पर वाहक को देय होते हैं। यह ब्याज मुक्त होते हैं।

SBI जारी करेगी चुनावी बॉन्ड: भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को बिक्री के 22वें चरण में एक अक्टूबर से 10 अक्टूबर, 2022 तक अपनी 29 अधिकृत शाखाओं के माध्यम से चुनावी बॉन्‍ड जारी करने और भुनाने के लिए अधिकृत किया गया है। अधिकृत एसबीआई शाखाओं में लखनऊ, शिमला, देहरादून, कोलकाता, गुवाहाटी, चेन्नई, पटना, नई दिल्ली, चंडीगढ़, श्रीनगर, गांधीनगर, भोपाल, रायपुर और मुंबई शामिल हैं।

कौन जुटा सकता है चुनावी बॉन्ड से फंड: राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत विभिन्न दलों को दिए गए नकद चंदे के विकल्प के रूप में चुनावी बॉन्ड लाया गया था। पिछले लोकसभा या राज्य विधानसभा चुनावों में कम से कम एक प्रतिशत मत प्राप्त करने वाले पंजीकृत राजनीतिक दल चुनावी बॉन्‍ड के जरिये कोष प्राप्त करने के लिए पात्र हैं।
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कौन खरीद सकता है चुनावी बॉन्ड: योजना के प्रावधानों के अनुसार चुनावी बॉन्‍ड वह व्यक्ति या इकाई खरीद सकता है, जो भारत का नागरिक है या भारत में गठित हुई हो।

कैसे जारी होते हैं चुनावी बॉन्ड: वर्ष 2018 में इसके शुरू होने के बाद हर साल करीब दो बार इसको जारी किया जाता है। अक्टूबर माह के शुरू में 11वें इलेक्टोरल बॉन्ड (चुनावी बॉन्ड) जारी किए गए। शुरू में उन्हें लेकर जहां ठंडा रुख दिखा था, वहीं इस साल चुनावों से पहले तक उनकी अच्छी खरीद हुई।

क्या बांड खरीदने वाले को होता है: चुनावी बांड खरीदकर किसी पार्टी को देने से ‘बांड खरीदने वाले’ को कोई फायदा नहीं होगा। न ही इस पैसे का कोई रिटर्न है। ये अमाउंट पॉलिटिकल पार्टियों को दिए जाने वाले दान की तरह है। इससे 80जीजी 80जीजीबी (ection 80 GG and Section 80 GGB) के तहत इनकमटैक्स में छूट मिलती है।
Written by Navin Rangiyal