Yogini Ekadashi 2022: प्रतिवर्ष आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को योगिनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 24 जून 2022 शुक्रवार को यह व्रत रखा जाएगा। आओ जानते हैं इस दिन के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व, मंत्र और कथा।
	 
				  																	
									  
	 
	योगिनी एकादशी के शुभ मुहूर्त (Yogini Ekadashi Shubha Muhurt) :
	1. तिथि : एकादशी तिथि 23 जून को रात 9 बजकर 41 मिनट से प्रारंभ होगी जो 24 जून को रात 11 बजकर 12 मिनट तक रहेगी। 
				  
	 
	2. अभिजीत मुहूर्त : सुबह 11:33 से 12:28 तक।
	 
	3. विजय मुहूर्त : दोपहर 02:18 से 03:12 तक।
	 
				  						
						
																							
									  
	4. गोधूलि मुहूर्त : शाम 06:38 से 07:02 तक।
	 
	5. सायाह्न संध्या मुहूर्त : शाम 06:52 से 07:54 तक।
	 
				  																													
								 
 
 
  
														
																		 							
																		
									  
	योगिनी एकादशी पूजा विधि (Yogini Ekadashi Puja Vidhi):
	 
	* एकादशी के दिन सुबह स्नानादि से निवृत होकर व्रत शुरू करने का संकल्प लें।
				  																	
									  
	 
	* तत्पश्चात पूजन के लिए मिट्टी का कलश स्थापित करें।
	 
	* उस कलश में पानी, अक्षत और मुद्रा रखकर उसके ऊपर एक दीया रखें तथा उसमें चावल डालें।
				  																	
									  
	 
	* अब उस दीये पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। ध्यान रखें कि पीतल की प्रतिमा हो तो अतिउत्तम।
				  																	
									  
	 
	* प्रतिमा को रोली अथवा सिंदूर का टीका लगाकर अक्षत चढ़ाएं।
	 
	* उसके बाद कलश के सामने शुद्ध देशी घी का दीप प्रज्ज्वलित करें।
				  																	
									  
	 
	* अब तुलसी पत्ते और फूल चढ़ाएं।
	 
	* फिर फल का प्रसाद चढ़ाकर भगवान श्रीविष्णु का विधि-विधान से पूजन करें।
				  																	
									  
	 
	* फिर एकादशी की कथा का पढ़ें अथवा श्रवण करें।
	 
	* अंत में श्रीहरि विष्णु जी की आरती करें।
				  																	
									  
	 
	मंत्र : 'ॐ नमो नारायण' या 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:' का 108 बार जाप करें।
				   
				  
	योगिनी एकादशी व्रत के नियम (Yogini Ekadashi Vrat Niyam):
	 
	* आषाढ़ कृष्ण एकादशी के एक दिन पूर्व यानी दशमी तिथि को रात्रि में एकादशी व्रत करने का संकल्प करना चाहिए।
				  																	
									  
	 
	* अगले दिन सुबह स्नानादि सभी क्रियाओं से निवृत्त होकर भगवान श्रीहरि विष्णु तथा लक्ष्मी नारायणजी के स्वरूप का ध्यान करते हुए शुद्ध घी का दीपक, नैवेद्य, धूप, पुष्प तथा फल आदि पूजन सामग्री लेकर पवित्र एवं सच्चे भाव से पूजा-अर्चना करना चाहिए।
				  																	
									  
	 
	* इस दिन गरीब, असहाय अथवा भूखे व्यक्ति को अन्न का दान, भोजन कराना चाहिए तथा प्यास से व्याकुल व्यक्ति को जल पिलाना चाहिए।
				  																	
									  
	 
	* रात्रि में विष्णु मंदिर में दीप दान करते हुए कीर्तन तथा जागरण करना चाहिए।
	 
				  																	
									  
	* एकादशी के अगले दिन द्वादशी तिथि को अपनी क्षमतानुसार ब्राह्मण तथा गरीबों को दान देकर पारणा करना शास्त्र सम्मत माना गया है।
				  																	
									  
	 
	* ध्यान रहें कि इस व्रत में पूरा दिन अन्न का सेवन निषेध है तथा केवल फलाहार करने का ही विधान है।
				  																	
									  
	 
	* दशमी से लेकर पारणा होने तक का समय सत्कर्म में बिताना चाहिए तथा ब्रह्मचार्य व्रत का पालन करना चाहिए।
				  																	
									  
	 
	महत्व : योगिनी एकादशी से समस्त पाप दूर हो जाते हैं और व्यक्ति पारिवारिक सुख पाता है। यह व्रत सभी उपद्रवों को शांत कर सुखी बनाता है। योगिनी एकादशी का व्रत करने से समृद्धि की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि इस व्रत को करने से 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। यह व्रत तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। इस व्रत को विधित रखने से सिद्धि और सफलता मिलती है। कहते हैं कि इस व्रत के प्रभाव से किसी के दिए हुए श्राप का निवारण हो जाता है। यह एकादशी समस्त आधि-व्याधियों को नष्ट कर सुंदर रुप, गुण और यश देने वाली कही गई है। वर्तमान समय में यह व्रत कल्पतरू के समान है तथा इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के सभी कष्टों दूर होते हैं तथा हर तरह के श्राप तथा समस्त पापों से मुक्ति दिलाकर यह व्रत पुण्यफल प्रदान करता है।
				  																	
									  
	 
	 
	योगिनी एकादशी व्रत की कथा (Yogini Ekadashi Vrat katha) : अलकापुरी के राजा यक्षराज कुबेर के यहां हेम नामक एक माली कार्य करता था। उस माली का कार्य प्रतिदिन भगवान शिव के पूजन हेतु मानसरोवर से फूल लाना था। एक दिन उसे अपनी पत्नी के साथ रमण करने के कारण फूल लाने में बहुत देर हो गई। वह कुबेर की सभा में विलंब से पहुंचा। इस बात से क्रोधित होकर कुबेर ने उसे कोढ़ी हो जाने का श्राप दे दिया। 
				  																	
									  
	 
	श्राप के प्रभाव से हेम माली इधर-उधर भटकता रहा और भटकते-भटकते वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा। ऋषि ने अपने योगबल से उसके दु:खी होने का कारण जान लिया। यह जानकर ऋषि ने उससे कहा कि योगिनी एकादशी का व्रत करो तो श्राप से मुक्ति मिल जाएगी। माली ने विधिवत रूप से योगिनी एकादशी का व्रत किया और व्रत के प्रभाव से हेम माली का कोढ़ समाप्त हो गया।