दाएँ हाथ के बल्लेबाज, दाएँ हाथ के मध्यम-तेज गेंदबाज, निकटवर्ती क्षेत्ररक्षक
विजय हजारे जिनके एक भाई, बेटा और दो भतीजे बड़ौदा के लिए खेले बहुत ही प्रतिभाशाली हरफनमौला क्रिकेटर थे। वे बड़ौदा की स्टेट आर्मी टीम के कप्तान धर्म से रोमन कैथोलिक और शेर का शिकार करने वाले शानदार शिकारी भी थे। बहुत ही साधारण कद, पतले-दुबले, लेकिन बेहद मजबूत कलाइयों वाले हजारे बहुत खराब स्टांस के बावजूद बेहद अच्छी टाइमिंग वाले आक्रामक बल्लेबाज थे, जिनके पसंदीदा शॉट हुक और कट हुआ करते थे। उनकी गेंदबाजी भी विविधता से परिपूर्ण होती थी, जिसमें मध्यम-तेज, तेज, घातक इनस्विंग, आउटस्विंग, इनकटर और आउटकटर हुआ करती थी। बाद में उन्होंने क्लैरी ग्रिमिट के प्रशिक्षण में प्रभावशाली लेग स्पिन करना भी सीखा। हालाँकि वह काफी शॉर्ट गेंदबाजी भी कर दिया करते थे।
24 वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार अपने बल्ले की प्रतिभा का लोहा मनवाया जब उन्होंने महाराष्ट्र के लिए बड़ौदा के विरुद्ध खेलते हुए 1939-40 में 316 का विशाल स्कोर खड़ा किया। 4 वर्ष पश्चात् उन्होंने हिंदू के विरुद्ध शेष भारत के लिए खेलते हुए 309 का व्यक्तिगत स्कोर दिया, जबकि पूरी टीम केवल 377 का स्कोर ही बना पाई।
1946-47 में इंग्लैंड का सफल दौरा पूरा कर लौटे विजय हजारे ने गुल मोहम्मद के साथ मिलकर बड़ौदा के लिए होलकर के विरुद्ध रणजी ट्रॉफी फाइनल में चौथे विकेट के लिए विशाल 577 रनों की भागीदारी की, जो लंबे समय तक किसी भी विकेट के लिए किसी भी श्रेणी के क्रिकेट में विश्व रिकॉर्ड के रूप में जाना जाता रहा। इसी मैच में उन्होंने होलकर की टीम को उखाड़ फेंकते हुए 85 रन देकर 6 विकेट भी लिए।
विजय हजारे 1946 से लेकर 1953 तक 30 टेस्ट मैचों के सफर में भारतीय टीम के एक मजबूत स्तंभ रहे, जिसमें से उन्होंने 14 में भारत की कप्तानी भी की। उनका टेस्ट औसत 47.75 का रहा, लेकिन 1952-53 में वेस्टइंडीज के विरुद्ध एक बेहद खराब सीरीज के उपरांत उन्हें अचानक ही कप्तान और खिलाड़ी दोनों के ही रूप में भारतीय टीम से अलग कर दिया गया, लेकिन तब तक वह भारतीय क्रिकेट में बल्लेबाजी के महान स्तंभ के रूप में अपनी पहचान स्थायी कर चुके थे।