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Written By शकील अख़्तर
Last Updated : रविवार, 19 अप्रैल 2020 (11:36 IST)

Corona Lockdown में रमजान कैसे मनाएं मुसलमान...

Corona Lockdown में रमजान कैसे मनाएं मुसलमान... - ramadan in corona
लॉक डाउन में पवित्र रमज़ान का महीना घरों में ही इबादत के साथ गुज़रेगा। देश के प्रमुख मुस्लिम विद्वानों और उलेमाओं ने कोरोना महामारी के दौरान सामाजिक दूरी बनाये रखने और घरों में ही रहकर इबादत करने की अपील की है। सभी ने प्रशासन के निर्देशों का सख़्ती से पालन करने को कहा है। साथ ही कहा है, मेडिकल वर्कर्स पर पथराव या बदसुलूकी कहीं भी हो और किसी के भी द्वारा हो, निंदनीय है। ऐसे लोग गुमराह हैं। ये सभी धर्मों की विचारधारा और आस्था के ख़िलाफ़ है। राष्ट्रधर्म निभाते हुए सभी मुस्लिम संस्थाओं से प्रधानमंत्री राहत कोष में ज़क़ात का पैसा जमा कराये जाने की गुज़ारिश की गई है।
 
अपनी ग़लतियां करें तस्लीम: अखिल भारतीय इमाम संगठन के अध्यक्ष, नई दिल्ली के डॉ. इमाम उमेर अहमद इलियासी ने कहा, आज हमें अपनी कमियों को पहचानने की ज़रूरत है। आख़िर हमारी तहज़ीब, हमारा क़िरदार कहां हैं? उन्होंने इंदौर, गाज़ियाबाद के साथ ही हालिया मुरादाबाद की घटना पर अफ़सोस जताया और कहा जो लोग मेडिकल वर्कर्स पर हमले कर रहे हैं, बदसुलूकी कर रहे हैं, उनका यह आचरण सभ्य समाज और क़ानून के खिलाफ़ है। ऐसे लोग अपने मज़हब को ही बदनाम कर रहे हैं। उन्होंने मरकज़ के बचाव में आने वालों पर कहा, ‘हमें बचाव से भी पहले खुद अपनी ग़लतियों से सीखने की ज़रूरत है। दूसरों की चूक और भूलों की जगह अपनी ग़लतियों को पहले स्वीकार करने की ज़रूरत है।‘
 
घर में रहकर मनायें पवित्र रमज़ान : रमज़ान के महीने की रस्मों को लेकर डॉ.इलियासी ने कहा, चूंकि पूरे देश में लॉक डॉउन है, लिहाज़ा रमज़ान के महीने में भी सरकारी आदेशों का पालन करना ज़रूरी है। मस्जिदों की जगह घरों में ही नमाज़ पढ़ी जा सकती है। कुरान का पाठ किया जा सकता है। उन्होंने रात की नमाज़ के बाद कुरान पाठ पर केंद्रित तरावीह की नमाज़ के विषय में कहा, इस नमाज़ के लिये भी मस्जिदों में जाने की जरूरत नहीं। यह घर में ही अदा की जा सकती है।
 
ज़कात का पैसा प्रधानमंत्री कोष में दें : डॉ.इलियासी ने एक बड़ी बात भी कही। उन्होंने कहा, मैं देश की साढ़े पांच लाख मस्जिदों के इमामों से यह अपील करने जा रहा हूं कि वे इस बार ज़कात (अपनी कमाई में से 2.5 प्रतिशत ज़रूरतमंदों का हिस्सा) समाज के ग़रीब लोगों की मदद के लिये ज़रूर दें। मगर इसका एक हिस्सा हमें इस बार प्रधानमंत्री कोष में ज़रूर देना चाहिये।  मज़हब, ज़ात-पात से ऊपर उठकर एक हिंदुस्तानी के रूप में यह हमारा राष्ट्रधर्म है। उन्होंने समाज की कमियों को दूर करने के लिये समाज के ही लोगों को एकजुट होकर प्रयासों में जुट जाने की अपील की। साथ ही न्यूज़ चैनलों से लेकर सोशल मीडिया में नफ़रत का ज़हर फैलाये जाने को देश के लिये घातक बताया।
 
मुस्लिम देश भी सख़्ती से उठा रहे क़दम : इंटरनेशनल दारूल क़ज़ा के प्रेसिंडेंट क़ाज़ी ख़ालिद उस्मानी ने कहा, दुनिया के तमाम मुस्लिम देश अपने बाशिंदों को महफ़ूज़ रखने के लिये इस महामारी के खिलाफ़ कड़े क़दम उठा रहे हैं। ईरान से लेकर सऊदी अरब तक लॉक डाउन और सेफ़्टी के माकूल इंतज़ाम किये गये हैं। वे भी इस्लाम के मानने वाले हैं और सरकारी हिदायतों का सख़्ती से पालन कर रहे हैं। ईरान ने तो अपने लोगों से रमज़ान के महीने में अपने पड़ोसियों की ख़ास तौर पर मदद की अपील की है।
 
ज़ाहिर है कि भारत में क्वाऱटीन और लॉक डाउन इस बीमारी से बचाव की सबसे अहम और ज़रूरी तरकीब है। इसे रमज़ान के महीने में अपनाना ही होगा। उन्होंने कहा, हमें यह भी जानना चाहिये कि हमारा जिस्म ख़ुदा का दिया हुआ है, जान उस मालिक ने दी है। ऐसे में इस बीमारी के वक्त़  सावधानी न बरतना भी गुनाह है। आपको ख़ुदकुशी की भी इजाज़त नहीं। औरों की जान ख़तरे में डालना तो बहूत दूर की बात है। हमारा सबसे बड़ा मज़हब इंसानियत है। यही इस्लाम का पैग़ाम है।
 
कोरोना नहीं देता किसी को सेफ़ पैसेज : सहारनपुर यूपी के क़ाज़ी नदीम ने कहा, यूपी में भी शासन-प्रशासन के निर्देशों को मानते हुए ही लोग रमज़ान के महीने में इबादत करेंगे। उन्होंने कहा कि कुछ गुमराह हुए मुस्लिमों की यह सॉयकोलॉजी बन गई थी कि उन्हें इस बीमारी से कुछ नहीं होगा, कोई सेफ पैसेज मिल जायेगा। मगर अब उन्हें भी यह बात समझ में आ गई है। आज हमें वो हदीस भी याद आ रही है, जिसमें पैग़बर हज़रत मुहम्मद (स.) ने कहा था कि "जब किसी भी तरह की वबा (महामारी) फैल जाये तब आप जहां पर हो वहीं पर ठहर जाओ।"
 
उन्होंने यह भी कहा, आप अपने मज़हब का अगर पालन करते हैं तो किसी पर अहसान नहीं करते। यह बेहद पर्सनल चीज़ है। इसमें किसी भी तरह के दिखावे की ज़रूरत नहीं है। आज ज़रूरत जब घर में इबादत की है तो वही करना चाहिये। मस्जिद में फ़र्ज़ नमाज़ें 21 दिनों के लॉक डॉउन की तरह ही चल सकती हैं। जिसमें इमाम साहब, मुअज्ज़िन, ख़ादिम और एक-दो नमाज़ी शामिल हो सकते हैं।
 
क़ाज़ी नदीम ने यह भी कहा, यह एक दूसरे से फैलने वाली बीमारी है। छूने से या छींकने से या सोशल डिस्टेंसिंग ना रखने की वजह से दूसरे लोग भी संक्रमित हो सकते हैं। ऐसे में हमें बहुत ज़्यादा सावधान रहने की ज़रूरत है। नेक अमल और बेहतर क़िरदार ही हमें समाज में इज़्ज़त का हक़दार बना सकता है।
 
ज़ख़्मी इंदौर घरों में रहेगा बंद : देश के जिन शहरों में कोरोना ने गहरे घाव दिये हैं, उनमें मध्यप्रदेश का इंदौर शहर शीर्ष पर है। यहां भी मुस्लिम समाज के लोग अपने घरों में रहकर इबादत करेंगे। शहर काज़ी ईशरत अली ने कहा, शहर में मुस्लिम समाज के अलग-अलग इदारों से जुड़े लोगों की भी यही राय बनी है। यूपी में मौजूद सभी मरक़ज़ों से भी जल्द निर्देश आ जायेंगे। इनमें देवबंदी, बरेलवी शरीफ़, अहले हदीस और शिया समाज के मरकज़ शामिल हैं। मगर 21 दिन के लॉक डॉउन की तरह इंदौर की मस्जिदों में आम नमाज़ियों के जाने पर पाबंदी ही रहेगी। इस पर सभी मसलकों के प्रमुखों की एक राय है। रमज़ान के महीने में घर में रहकर ही समाज की महिलाएं और पुरूष रोज़े यानी उपवास करेंगे, साथ ही नमाज़ और इबादत में रहेंगे।
 
उन्होंने कहा कि कुछेक असामाजिक तत्वों द्वारा शर्मसार करने वाली घटनाओं से पूरा समाज दु:खी है। सभी प्रशासन के साथ खड़े हैं। मेडिकल टीम का ताली बजाकर इस्तक़बाल कर रहे हैं। उन्होंने कहा, यह पता लगाये जाने की ज़रूरत है कि आख़िर एयरपोर्ट का मुंह तक ना देखने वाली इंदौर की ग़रीब मुस्लिम बस्तियों में विदेशी कोरोना का वायरस कैसे पहुंचा ?
 
डॉ.इशरत ने कहा, मुस्लिम बस्तियों में हालात को बिगाड़ने का काम व्हाट्सएप वीडियोज़ और पोस्ट के ज़रिये भी हुआ। ऐसी पोस्ट में लोगों को यह कहकर गुमराह किया गया कि मेडिकल टीम के लोग कोरोना इन्फेक्शन वाले इंजेक्शन लगा रहे हैं। इसकी वजह से जान भी जा सकती है। मुस्लिमों के खिलाफ़ साज़िश हो रही है।
 
असल में यह काम फिरका परस्त तंज़ीमों ने किया। ऐसे लोग हमेशा से ही मुस्लिमों में डर का माहौल बनाकर आपस में बांटने और लोगों को गुमराह करने का काम करते आए हैं। मगर इससे हमेशा की तरह पूरे समाज को नुकसान पहुंचा। सांप्रदायिक सदभाव को भी गहरी चोट पहुंची। उन्होंने कहा, इंदौर में हालात बेहद गंभीर हैं। हम जल्द ही अपने प्यारे इंदौर को सेहतमंद और पहले की तरह खुशनुमा देखना चाहते हैं। 3 मई तक बढ़ाये लॉक डॉउन के बाद भी शहर के हालात एकदम दुरूस्त हो जायेंगे, कहना मुश्किल है। यह सब्र और इम्तेहान का वक़्त है। ऐसे में हम सभी को मस्जिदों में जाकर या सामूहिक तौर पर मज़हबी परंपराओं का पालन करने की जगह अब घर में रहकर ही इबादत करना ज़रूरी होगा। सभी की सुरक्षा और सेहत के लिये अपना नेक किरदार सामने लाने की ज़रूरत है।
 
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