मंगलवार, 19 नवंबर 2024
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Chhath Puja : क्यों मनाया जाता है छठ पूजा का पर्व, जानिए विशेष महत्व

Chhath Puja : क्यों मनाया जाता है छठ पूजा का पर्व, जानिए विशेष महत्व - History of Chhath Puja
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धर्मशास्त्रों के अनुसार चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व को छठ पूजा, छठी माई पूजा, डाला छठ, सूर्य षष्ठी पूजा और छठ पर्व के नामों से भी जाना जाता है। मुख्य रूप से यह पर्व सूर्य देव की उपासना के लिए मनाया जाता है। ताकि परिवारजनों को उनका आशीर्वाद प्राप्त हो सके। 
 
इसके अलावा संतान के सुखद भविष्य के लिए भी इस व्रत को रखा जाता है। कहते है छठ पर्व का व्रत रखने से नि:संतानों को संतान भी प्राप्त हो जाती है। इसके अतिरिक्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भी छठ माई का व्रत रखा जाता है। यह महापर्व चार दिनों का होता है। जिसे नहाय खाय, लोहंडा या खरना, संध्या अर्ध्य और उषा अर्घ्य के रूप में मनाया जाता है। छठ पूजा पर्व वर्ष 2020 में 18 नवंबर से मनाया जा रहा है। 
 
नहाय-खाय- छठ पर्व के पहले दिन को नहाय खाय कहा जाता है। इस दिन घर की साफ़ सफाई करके छठ व्रती स्नान कर पवित्र तरीके से शाकाहारी भोजन ग्रहण कर छठ व्रत की शुरुवात करते हैं। इस दिन को कद्दू-भात भी कहा जाता है। इस दिन व्रत के दौरान चावल, चने की दाल और कद्दू (घिया, लौकी) की सब्जी को बड़े नियम-धर्म से बनाकर प्रसाद रूप में खाया जाता है।
 
लोहंडा या खरना- छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना या लोहंडा के नाम से जाना जाता है। छठ व्रती दिन भर उपवास करने के बाद शाम को भोजन करते हैं। जिसे खरना कहते हैं। खरना का प्रसाद चावल को गन्ने के रस में बनाकर या चावल को दूध में बनाकर और चावल का पिठ्ठा और चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। शाम के समय पूजा पाठ करने के बाद पहले छठ व्रती यह प्रसाद खाते हैं  उसके बाद घर के अन्य सदस्यों को प्रसाद के रूप में वही भोजन मिलता है।
 
पहला अर्घ्य- तीसरे दिन दिनभर घर में चहल पहल का माहौल रहता है। व्रत रखने वाले दिन भर डलिया और सूप में नानाप्रकार के फल, ठेकुआ, लडुआ (चावल का लड्डू), चीनी का सांचा इत्यादि को लेकर शाम को बहते हुए पानी (तालाब, नहर, नदी, इत्यादि) पर जाकर पानी में खड़े होकर सूर्य की पूजा करते हुए परिवार के सभी सदस्य अर्घ्य देते हैं। और फिर शाम को वापस घर आते हैं। रात में छठ माता के गीत आदि गाए जाते हैं।
 
सुबह का अर्घ्य- चौथे और अंतिम दिन छठ व्रती को सूर्य उगने के पहले ही फिर से उसी तालाब, नहर, नदी पर जाना होता है जहां वे तीसरे दिन गए थे। इस दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए भगवान् सूर्य से प्रार्थना की जाती है। परिवार के अन्य सदस्य भी व्रती के साथ सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं और फिर वापस अपने घर को आते हैं। यह व्रत 36 घंटे से भी अधिक समय के बाद समाप्त होता है। छठ व्रती चार दिनों का कठिन व्रत करके चौथे दिन पारण करते हैं और प्रसाद का आदान-प्रदान कर व्रत संपन्न करते हैं।