Chirag Paswan will contest assembly elections in Bihar: केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान ने बिहार की सियासी सरगर्मी को और तेज करते हुए सोमवार को स्पष्ट कर दिया कि वह आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में उतरेंगे। पासवान ने कहा कि उनकी उम्मीदवारी से उनकी पार्टी की स्थिति और 'स्ट्राइक रेट' को मजबूती मिलेगी। इस बयान ने बिहार की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है, खासकर तब जब 2020 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जद (यू) के खिलाफ बागी रुख अपनाया था, जिसके परिणामस्वरूप एनडीए को भारी नुकसान हुआ था।
'बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट' का नारा और रणनीतिक बदलाव : चिराग पासवान ने जोर दिया कि मैंने हमेशा कहा है कि मेरा राजनीतिक सफर बिहार और बिहारियों के लिए है। मेरा विजन 'बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट' है। तीसरी बार सांसद बनने के बाद मुझे यह स्पष्ट हुआ कि दिल्ली में रहकर बिहार के लिए वह काम नहीं हो सकता, जो मैं करना चाहता हूं। उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं से यह भी कहा कि वह जल्द ही बिहार की सक्रिय राजनीति में लौटना चाहते हैं। यह बयान इस बात का संकेत है कि पासवान अब केंद्र की राजनीति से हटकर बिहार में अपनी सियासी जमीन को और मजबूत करना चाहते हैं।
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने जद (यू) के खिलाफ बगावत कर अपनी अलग राह चुनी थी। उनकी पार्टी ने एनडीए से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ा, जिसके परिणामस्वरूप जद (यू) को कई सीटों पर नुकसान हुआ और नीतीश कुमार की पार्टी को 43 सीटों पर सिमटना पड़ा। हालांकि, पासवान की पार्टी को केवल एक सीट मिली थी, लेकिन उनके बागी तेवर ने बिहार की सियासत में उनकी प्रासंगिकता को बनाए रखा। इस बार, पासवान की रणनीति स्पष्ट रूप से अलग दिख रही है। उन्होंने बीजेपी की उस रणनीति का हवाला दिया, जिसमें राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को राज्य चुनावों में उतारा जाता है। उन्होंने कहा कि बीजेपी ने कई बार अपने सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारकर इसका लाभ उठाया है। यदि मेरी उम्मीदवारी से मेरी पार्टी को फायदा होता है, तो मैं निश्चित रूप से चुनाव लड़ूंगा।
मुख्यमंत्री पद पर क्या बोले चिराग : चिराग पासवान ने यह भी साफ किया कि उनकी नजर मुख्यमंत्री पद पर नहीं है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री पद के फिलहाल जगह खाली नहीं है। नीतीश कुमार जी चुनाव के बाद भी नेतृत्व करते रहेंगे। यह बयान एनडीए के भीतर एकता का संदेश देता है और 2020 के विवादों को पीछे छोड़ने की उनकी कोशिश को दर्शाता है।
पासवान की रणनीति का प्रभाव : चिराग पासवान का यह कदम बिहार की राजनीति में कई मायनों में महत्वपूर्ण है। पहला, उनकी सक्रिय भागीदारी से लोजपा (राम विलास) की दलित और गैर-दलित मतदाताओं के बीच पकड़ मजबूत हो सकती है। दूसरा, यह कदम एनडीए के भीतर उनकी स्थिति को और सशक्त कर सकता है, खासकर तब जब बीजेपी और जद (यू) के बीच सीट-बंटवारे को लेकर तनाव की अटकलें हैं। तीसरा, पासवान का 'बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट' का नारा युवाओं और क्षेत्रीय अस्मिता को केंद्र में लाकर राजद-कांग्रेस गठबंधन को चुनौती दे सकता है।
चुनौतियां भी कम नहीं : हालांकि, पासवान के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। 2020 में उनकी रणनीति ने उन्हें सियासी चर्चा में तो रखा, लेकिन सीटों के मामले में उनकी पार्टी को कोई खास सफलता नहीं मिली। इस बार, उनकी उम्मीदवारी और एनडीए के साथ गठबंधन में उनकी भूमिका उनकी पार्टी की साख और भविष्य को तय करेगी।
चिराग पासवान की बिहार विधानसभा चुनाव में उतरने की घोषणा न केवल उनकी पार्टी के लिए, बल्कि पूरे एनडीए गठबंधन के लिए एक रणनीतिक कदम है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वह अपनी "बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट" की सोच को मतदाताओं तक पहुंचा पाते हैं और 2020 की गलतियों से सबक लेकर बिहार की सियासत में नया अध्याय लिख पाते हैं। बिहार की जनता और सियासी पंडित अब इस सवाल का जवाब तलाश रहे हैं कि क्या चिराग पासवान बिहार की राजनीति में वह तूफान ला पाएंगे, जिसका दावा वह कर रहे हैं।