- मनीष शांडिल्य (पटना से)
''बढ़िया से रहोगे। किसी तरह की कोई चिंता मत करना। जैसा भी होगा यहाँ हम बाल-बच्चों को ठीक से रखेंगे।" पटना के दानापुर कैंट एरिया के कमलेश कुमार ने 29 मार्च को सैनिक बेटे सौरभ कुमार को वापस ड्यूटी पर भेजते हुए ऐसा ही कहा था। पटना के राजेंद्र नगर टर्मिनल पर सौरभ को छोड़ने गए कमलेश ने ऐसा कह कर बेटे की हिम्मत बढ़ाई थी।
लेकिन होली की छुट्टी के बाद ड्यूटी पर लौटते बेटे से कमलेश ने जो रस्मी तौर पर कहा था अब उसका ज़िम्मा उनके कंधों पर आ चुका है। सोमवार को छत्तीसगढ़ के सुकमा में नक्सली हमले में मारे गए सीआरपीएफ़ जवानों में एक बिहार के दानापुर के 26 साल के सौरभ कुमार भी थे। इस हमले में मारे गए 25 जवानों में छह बिहार के हैं।
सौरभ कुमार बिहार सरकार के कर्मचारी कमलेश के तीन बेटों में सबसे बड़े थे। सौरभ ने बारहवीं तक पढाई की थी और वे 2011 में सीआरपीएफ में भर्ती हुए थे। सेना या अर्ध-सैनिक बल में जाने वाले अपने परिवार के वे पहले शख्स थे।
सौरभ की पत्नी सदमे में : सोमवार के मुठभेड़ की ख़बर सौरभ के परिवार में सबसे पहले मायके में रह रहीं उनकी पत्नी प्रीति कुमारी को समाचार चैनल्स से मिली। उन्होंने इसके बाद जानकारी के लिए सीआरपीएफ़ के एक कमांडिंग अफ़सर को फ़ोन किया तो उन्हें कहा गया कि वे सौरभ के पिता से बात करने को कहें।
कमलेश अपने बेटे को खोने के बाद भी अपनी भावनाओं पर पूरा काबू रखते हुए घर पर आने वाले हर व्यक्ति से मिल रहे थे। मीडियाकर्मी बारी-बारी से आ रहे थे इसके बावजूद वे सभी से अपने बेटे की बातों को साझा कर रहे थे।
कमलेश ने बताया, "मुठभेड़ की खबर मिलने के बाद मैंने पत्नी के कहने पर सौरभ को फ़ोन भी लगाया मगर बउवा (सौरभ) ज़िंदा रहता तब न फ़ोन रिसीव करता"। कमलेश के मुताबिक रात क़रीब 10 बजे सीआरपीएफ़ ने सौरभ के मारे जाने की पुष्टि की। सौरव मुठभेड़ वाली जगह पर ही मारे गए थे। प्रीति की शादी 2014 में सौरव से हुई थी। बीते साल अक्तूबर में वह एक बच्चे की माँ बनी थीं। उनके सात महीने के बेटे का नाम प्रीतम है।
सबक नहीं लिया जाता : सौरभ के पिता के मुताबिक उन्होंने सौरव की मौत की ख़बर रात में बहू को नहीं बताई थी। प्रीति को बताया गया था कि सौरभ घायल हैं, लेकिन सुबह जब मीडिया वाले आने लगे तो प्रीति ने मान लिया कि सौरभ की मौत हो चुकी है। कमलेश के मुताबिक सीआरपीएफ़ में जाना सौरभ के लिए उनका पैशन पूरा होने जैसा था क्योंकि वह दानापुर की सैनिक छावनी के माहौल में पले-बढ़े थे और सैनिक ही बनना चाहते थे।
कमलेश ने बताया कि सौरव के कई दोस्तों की नौकरी भी सेना में हुई थी। इस कारण भी वह ऐसी नौकरी में जाना चाहते थे। कमलेश सोमवार की घटना को सरकार की असफलता मानते हैं। आगे ऐसे वारदात न हों, इसके लिए वे सुझाव देते हैं, "सरकार ठंडे दिमाग से बातचीत के ज़रिए इस मामले का हल निकाले। नक्सलियों को मुख्यधारा में लाए। उन्हें काम दे, उनके बाल-बच्चों को पढ़ाए। लोगों को काम मिलने लगेगा तो नक्सली नहीं न पैदा होंगे।"
सौरभ के छोटे भाई गौरव विशाल को दो साल बाद अपने भाई के साथ होली खेलने का मौका मिला था जो कि उनके अपने भाई के साथ अंतिम होली साबित हुई। गौरव बताते हैं कि उन दोनों ने दोस्तों के साथ बगल के मैदान में होली खेली थी। गौरव सोमवार की घटना के बाद गुस्से में हैं। वे कहते हैं, "अभी तो नेता बहुत बयानबाज़ी कर रहे हैं। दो-चार दिन गरम रहने के बाद मामला शांत हो जाएगा।''