- एम इलियास खान (इस्लामाबाद)
पाकिस्तान के विवादास्पद पूर्व फौजी शासक परवेज़ मुशर्रफ ने एक नया टेलीविजन शो लॉन्च किया है। उनका शो समसामयिक मुद्दों पर आधारित है। हफ्ते में एक बार प्रसारित होने वाला मुशर्रफ का शो पिछले महीने पाकिस्तानी टीवी चैनल 'बोल' पर शुरू हुआ है।
अभी तक शो पर मुशर्रफ़ ने अमेरिका के साथ करीबी रिश्तों की हिमायत की है और नवाज़ शरीफ सरकार को आड़े हाथों लिया है। भारत भी उनके हमलों का निशाना बना है। लेकिन मुशर्रफ़ के इस कदम ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। लोग उनके मकसद के बारे में पूछ रहे हैं और पाकिस्तान में ये किस तरह से देखा जा रहा है।
मुशर्रफ का मकसद : रिटायरमेंट के बाद कई फ़ौजी अफ़सर सुरक्षा विशेषज्ञ के तौर पर काम करने लगते हैं। लेकिन ऐसा करने वाले वे फ़ौज के सबसे ऊंचे ओहदे वाले अधिकारी हैं। 2013 में भी जब उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी बनाई और आम चुनावों में हिस्सा लिया तब भी ऐसा पहली बार हुआ था कि कोई पाकिस्तानी फौजी जनरल सियासत में उतरा था।
लेकिन उनका चुनावी एजेंडा अधूरा रह गया। वे कानूनी पचड़ों में इस कदर उलझे कि उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई। आखिरकार वे देश छोड़कर साल भर के लिए दुबई चले गए। कई लोग ये मानते हैं कि टेलीविज़न पर मुशर्रफ़ का ये अवतार उनकी अधूरी सियासी ख्वाहिशों का नतीजा है।
मुशर्रफ का शो : इतवार को दिखाए जाने वाले इस शो का नाम है 'सबसे पहले पाकिस्तान विद प्रेसिडेंट मुशर्रफ।' जब जनरल सत्ता में थे तो ये उनका सबसे लोकप्रिय राजनीतिक नारा था। शेनाया सिद्दीकी इस शो की मेज़बानी कर रही हैं। दुबई में बैठे मुशर्रफ राजनीति, फौज, अर्थव्यवस्था और यहां तक कि मनोरंजन से जुड़े मुद्दों पर भी अपनी बात रख रहे हैं। टीवी पर ये फार्मूला नया नहीं है।
पत्रकार समसामयिक मुद्दों पर अपने विचार रखते टीवी पर दिखते रहते हैं लेकिन ऐसा पहली बार है कि एक फौजी जनरल ये कर रहा है। संपादकीय नज़रिए से बोल चैनल फौज समर्थक, भारत विरोधी और उदारवाद विरोधी न्यूज़ चैनल माना जाता है। सप्ताहांत के दौरान चैनल ने पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी को प्रोग्राम में बुलाने की बात कही। ज़रदारी ही वो शख्स थे जिन्होंने परवेज़ मुशर्रफ़ को सत्ता से बेदखल करने में सक्रिय भूमिका निभाई थी।
मुशर्रफ के 'बोल' : अभी तक इस शो की टॉप लाइन पाकिस्तान के कूटनीतिक संबंध और उसकी सुरक्षा चुनौतियां रही हैं। पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ़ ने पाकिस्तान की रणनीतिक अहमियत और अमेरिका के साथ अच्छे रिश्तों की ज़रूरत पर बात की है। उनका ये भी सुझाव है कि पाकिस्तान को इसराइल को अपना परमानेंट दुश्मन नहीं समझना चाहिए। बल्कि वो इसराइल को ऐसे देश के तौर पर देखे जिसके साथ फलीस्तीनी प्रशासन के मुद्दे पर मतभेद हैं।
भारत पर उन्होंने कहा कि भारत पाकिस्तान के लिए एक ऐसा खतरा है लेकिन जिसे फौज के ज़रिए नहीं हराया जा सकता। इस्लामी चरमपंथियों पर फौज की कार्रवाई को लेकर मुशर्रफ़ का कहना है कि टहनियां काटी जा रही हैं, तना नहीं। वे इसके लिए नवाज़ शरीफ़ की सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं। कई लोग ये सवाल कर सकते हैं कि जब मुशर्रफ़ खुद सत्ता में थे तो वे चरमपंथियों के साथ दोहरा गेम खेलते रहे थे।
मुशर्रफ की घर वापसी? : साल 2008 में उन्हें कुर्सी छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया गया था और वे एक तरह से निर्वासन में चले गए। 2013 में वापस लौटकर उन्होंने चुनावों में हिस्सा लिया। उन पर बेनजीर भुट्टो और एक बलूच कबायली नेता के कत्ल का इलज़ाम लगा। मुशर्रफ़ पर सत्ता में रहते हुए मुल्क से गद्दारी करने का भी मुकदमा चला। लेकिन फिर उन्हें अपना इलाज कराने के लिए दुबई जाने की छूट दे दी गई।
कई लोग ये मानते हैं कि पाकिस्तान की ताकतवर मिलिट्री इस्टैबलिशमेंट ने उनके पाकिस्तान से बाहर जाने का रास्ता बनाया था। हाल ही में एक बार फिर से सक्रिय राजनीति में उनकी वापसी की बात हो रही है। वे दूसरे राजनीतिक दलों से संभावित गठजोड़ पर भी चर्चा कर रहे हैं। उनके सहयोगियों का कहना है कि मुशर्रफ की जान को खतरा है और अगर उनकी सुरक्षा की गारंटी दी जाएगी तो वे मुल्क वापस लौटकर मुकदमों का सामना करने के लिए तैयार हैं।
क्या लोग उन्हें समर्थन देंगे? : पीछे मुड़कर 2013 की तरफ चलते हैं। मुशर्रफ को उम्मीद थी कि वे कुछ सीटें जीत पाने में कामयाब होंगे। खासकर मुल्क़ के उत्तरी इलाकों में जहां किए गए विकास कार्यों की वजह से वे लोकप्रिय भी थे। लेकिन चुनाव लड़ने के लिए उन्हें अयोग्य करार दिए जाने के फैसले और बाद में घर में ही नज़रबंद किए जाने की वजह से उनकी पार्टी पूरी तरह से निष्क्रिय हो गई।
ये अभी साफ नहीं है कि क्या पार्टी नेतृत्व की इसे फिर से सक्रिय करने की कोई योजना है। पार्टी का पक्ष जानने के लिए बीबीसी की कोशिशों का कोई नतीजा नहीं निकला है। पाकिस्तान में बहुत से लोगों का ये मानना है कि टीवी शो में आने पर रज़ामंदी देकर मुशर्रफ़ सियासत में वापसी का रास्ता तलाशना चाहते हैं। टेलीविज़न शो से मुशर्रफ़ को देश की मुख्यधारा में लौटने में कितनी मदद मिलेगी। इसका जवाब फिलहाल केवल वक्त के पास है।