कोरोना वायरस के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन ने भारत में भी दस्तक दे दी है। गुरुवार को स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर बताया कि कर्नाटक में ओमिक्रॉन के दो मामलों की पुष्टि हुई है।
ओमिक्रॉन से संक्रमित एक व्यक्ति की उम्र 66 साल है और दूसरे की 46 साल। बीबीसी हिन्दी के सहयोगी पत्रकार इमरान क़ुरैशी से अधिकारियों ने बताया है कि एक मरीज़ दक्षिण अफ़्रीका से लौटे थे और 27 नवंबर से ही क्वॉरंटीन में थे। आइए ओमिक्रॉन के बारे में कुछ ज़रूरी बातें आपसे साझा करते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि ओमिक्रॉन पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा ख़तरा है। शुरुआती डेटा से पता चला है कि ओमिक्रॉन में व्यक्ति को संक्रमित करने की क्षमता ज़्यादा है और यह इम्युन सिस्टम पर भी भारी पड़ सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि ओमिक्रॉन के साथ अच्छी बात यह है कि इसका पता कुछ आरटी-पीसीआर टेस्ट से चल सकता है। इससे इसका पता लगाने में और फैलने से रोकने में मदद मिल सकती है। कई दूसरे वेरिएंट का पता लगाने के लिए जेनेटिक सिक्वेंस का सहारा लेना पड़ता है।
लेकिन कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि यह इतना सीधा मामला नहीं है। अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस से वैज्ञानिकों ने कहा है कि ज़्यादातर आरटीपीसीआर टेस्ट ओमिक्रॉन और दूसरे वेरिएंट में फ़र्क़ करने में सक्षम नहीं हैं।
जांच का विज्ञान
वैज्ञानिकों का कहना है कि आरटीपीसीआर टेस्ट से सिर्फ़ ये पता चलता है कि कोई व्यक्ति कोरोना संक्रमित है या नहीं, न कि वेरिएंट के बारे में पता चलता है। ऐसे में जीनोम सिक्वेंसिंग स्टडी ज़रूरी हो जाती है। लेकिन सभी संक्रमित सैंपल को जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए नहीं भेजा जा सकता है। यह प्रक्रिया धीमी, जटिल और महंगी होती है। आरटीसीआर टेस्ट से शरीर में वायरस की मौजूदगी का पता चलता है।
टेस्टिंग का विज्ञान समझने वालों की राय इस सवाल पर बँटी हुई है। सार्वजनिक और निजी लैब में किए जाने वाले ज़्यादातर टेस्ट में सार्स कोव- 2 संक्रमण का पता लगाया जा सकता है।
लेकिन ये पता नहीं लगाया जा सकता है कि संक्रमित व्यक्ति वायरस के किस वेरिएंट से संक्रमित है।
क्योंकि ये टेस्ट वायरस के उस हिस्से को तलाशते हैं, जिनमें ज़्यादा बदलाव नहीं होता है। वेरिएंट को म्युटेशन में अंतर के आधार पर तय किया जाता है।
ओमिक्रॉन के मामले में, ये अंतर स्पाइक प्रोटीन के म्युटेशन से जुड़ा है, जो कि वायरस का एक ऐसा हिस्सा होता जो कि बार-बार बदलता है ताकि वह ख़ुद को दवाइयों और रोग-प्रतिरोध कोशिकाओं से बचा सके।
इसी वजह से इसकी जाँच करना मुश्किल है। ऐसे में ज़्यादातर टेस्ट ये बताएंगे कि फलां व्यक्ति को कोरोना संक्रमण हुआ है लेकिन वह ये नहीं बताएंगे कि व्यक्ति ओमिक्रॉन वेरिएंट से संक्रमित है।
इसके लिए डॉक्टर को आपके सैंपल को एक लैब में भेजना होगा जो कि जेनेटिक सीक्वेंसिंग की मदद से ओमिक्रॉन जैसे जेनेटिक सिग्नेचर की तलाश कर सकती है।
थर्मो फिशर साइंटिफिक कंपनी की ओर से एक टेस्ट पेश किया गया, जो कि कोरोना संक्रमण की जांच करने के साथ-साथ टेस्ट करने वालों को ये संकेत दे सकता है कि वह जिस सैंपल की जांच कर रहे हैं, वह ओमिक्रॉन वेरिएंट से संक्रमित हो सकता है।
ये टेस्ट कोरोना वायरस के तीन हिस्सों पर निशाना साधता है। इनमें से दो हिस्से अपेक्षाकृत रूप से स्थिर हैं। वहीं, एक हिस्सा बदलाव वाला स्पाइक प्रोटीन क्षेत्र है।
ऐसे में अगर व्यक्ति कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन वेरिएंट से संक्रमित होगा तो टेस्ट के पहले दो हिस्से पॉज़िटिव मिलेंगे। कोरोना वायरस के अल्फ़ा वेरिएंट में भी यही लक्षण देखने को मिलता है।
लेकिन अगर व्यक्ति ओमिक्रॉन से संक्रमित होगा तो स्पाइक प्रोटीन क्षेत्र में निगेटिव मिलेगा।
इस समय दुनिया भर में संक्रमण के नए मामलों में से 99 फ़ीसद मामले डेल्टा वेरिएंट से जुड़े हैं। डेल्टा वेरिएंट में ये कमी नज़र नहीं आती। और थर्मो फिशर पीसीआर टेस्ट में तीनों क्षेत्रों से पॉज़िटिव संकेत मिलते हैं।
ऐसे में अगर टेस्ट के दौरान तीनों क्षेत्रों में पॉज़िटिव संकेत मिलते हैं तो उसके डेल्टा वेरिएंट होने की संभावना है।
बहुत मामूली लक्षण
वायरस का ये नए वेरिएंट सबसे पहले दक्षिण अफ़्रीका में पाए गए थे, जिसके बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन को इसकी जानकारी दी गई। संगठन ने फिर 24 नवंबर को इस दक्षिण अफ़्रीका को इस नए वेरिएंट की पुष्टि की और बयान जारी किया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पिछले सप्ताह कोरोना वायरस के इस नए वेरिएंट को "चिंता का विषय" बताते हुए इसका नाम ओमिक्रॉन रखा था।
संगठन ने एक बयान जारी कर कहा था कि इस वेरिएंट के बहुत सारे म्यूटेशन हो रहे हैं और शुरुआती संकेत यही मिल रहे हैं कि इससे दोबारा संक्रमित होने का ख़तरा है।
कोरोना के इस नए वेरिएंट का पता सबसे पहले दक्षिण अफ़्रीका की डॉक्टर एंजेलिक़ कोएत्ज़ी ने लगाया था। उन्होंने बीबीसी को बताया कि अभी तक तक वहाँ जिन लोगों में ये वेरिएंट मिला है उनमें कोविड के "बहुत मामूली लक्षण" नज़र आए हैं।
उन्होंने कहा, "ज़्यादातर मरीज़ बदन में दर्द और बहुत ज़्यादा थकावट की शिकायत कर रहे हैं। और मैं ये बात युवाओं के बारे में कर रही हूँ। मैं उन लोगों की बात नहीं कर रही जो अस्पताल जाकर भर्ती हो गए।"
हालाँकि, डॉक्टर कोएत्ज़ी ने साथ ही कहा कि ऐसे लोग जिन्हें ख़तरा ज़्यादा होता है, उन पर इस वेरिएंट के असर की गंभीरता का अनुमान लगाने में अभी समय लगेगा।
कितना ख़तरनाक
सभी म्यूटेशन का मतलब ये नहीं होता है कि वो बुरे होते हैं लेकिन ये देखना ज़रूरी है कि इसमें क्या-क्या म्यूटेशन हुए हैं।
लेकिन, चिंता इस बात की है ये वायरस चीन के वुहान में मिले मूल वायरस से मौलिक रूप से अलग है। इसका मतलब ये है कि उस मूल वायरस को ध्यान में रखकर बनाई गईं वैक्सीन इस वेरिएंट पर अप्रभावी भी हो सकती हैं।
दूसरे वेरिएंट में भी कुछ म्यूटेशन देखे गए हैं जिससे इस वेरिएंट में उनकी भूमिका के बारे में कुछ जानकारी मिल सकती है। जैसे एन501वाई कोरोना वायरस के लिए फैलना आसाना बनाता है। कुछ म्यूटेशन ऐसे होते हैं जो एंटबॉडी के लिए वायरस को पहचानना मुश्किल बना देते हैं और इससे वैक्सीन का प्रभाव कम हो जाता है। कुछ म्यूटेशन बिल्कुल अलग तरह के होते हैं।
दक्षिण अफ़्रीका में यूनिवर्सिटी ऑफ़ क्वाज़ुलु-नटाल में प्रोफ़ेसर रिचर्ड लेसल्स कहते हैं, "हमारी चिंता ये है कि इससे वायरस की एक से दूसरे व्यक्ति में फैलने की क्षमता बढ़ सकती है। ये प्रतिरक्षा प्रणाली के हिस्सों से भी बच सकता है।"
वेरिएंट्स के ऐसे उदाहरण भी हैं जो कागज पर तो डरवाने लगते थे लेकिन उनका कुछ खास असर नहीं हुआ। साल की शुरुआत में बीटा वेरिएंट चिंता का कारण बना था क्योंकि ये प्रतिरक्षा तंत्र से बच निकलने में ज़्यादा माहिर था।
लेकिन बाद में डेल्टा वेरिएंट पूरी दुनिया में फैल गया और बड़ी परेशानी का कारण बना। यूनिवर्सिटी ऑफ़ केम्ब्रिज के प्रोफ़ेसर रवि गुप्ता कहते हैं, "बीटा प्रतिरक्षा तंत्र से बच सकता था, डेल्टा वेरिएंट में संक्रामकता थी और प्रतिरक्षा तंत्र से बचने की थोड़ी क्षमता थी।"
कॉपीः अनंत प्रकाश