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Last Modified: बुधवार, 23 अक्टूबर 2019 (10:06 IST)

दुनियाभर में नेताओं के ख़िलाफ़ क्यों बढ़ रहा ग़ुस्सा

दुनियाभर में नेताओं के ख़िलाफ़ क्यों बढ़ रहा ग़ुस्सा - Increasing anger against politicians
हाल के हफ़्तों में इराक़ से लेबनान और स्पेन से चिली तक सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन हुए हैं। ये सभी प्रदर्शन वजहों, तरीक़ों और लक्ष्यों के हिसाब से अलग-अलग हैं, लेकिन कुछ समानताएं हैं, जो उन्हें एकसाथ जोड़ती हैं।
 
एक-दूसरे से हज़ारों मील दूर होने के बावजूद विभिन्न देशों में इन प्रदर्शनों के कारण लगभग समान हैं और कुछ ने एक-दूसरे को प्रेरित भी किया है कि कैसे अपने प्रदर्शनों को व्यवस्थित चलाया जाए और अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ा जाए। यहां हम यहां कुछ मुद्दों पर नज़र डाल रहे हैं, जो सड़कों पर उतरने वाले प्रदर्शनकारियों को एक-दूसरे से जोड़ते हैं।
 
ग़ैर-बराबरी
 
प्रदर्शनकारियों में से कई ऐसे हैं जिन्होंने लंबे समय तक महसूस किया कि अपने देश की दौलत से वो लगभग बाहर कर दिए गए हैं। कई मामलों में महत्वपूर्ण सेवाओं की क़ीमतों में बढ़ोतरी ने बर्दाश्त की सीमा को पार कर दिया। इक्वाडोर में इस महीने तब विरोध प्रदर्शन शुरू हुए, जब सरकार ने घोषणा की कि वो अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ़) के साथ एक समझौते के कारण ईंधन पर 1 दशक से अधिक समय से दी जा रही सब्सिडी ख़त्म कर रही है ताकि सरकारी खर्च में कटौती की जा सके।
 
इस वजह से पेट्रोल की क़ीमतों में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई और कई लोगों का कहना है कि पेट्रोल अब इतना महंगा हो गया है कि ये उनकी ख़रीदने की क्षमता से बाहर चला गया है। देश में सक्रिय विभिन्न समूहों का कहना है कि इसके कारण सार्वजनिक परिवहन के किराए और खाद्य पदार्थों की लागत में वृद्धि होगी और ग्रामीण आबादी सबसे अधिक प्रभावित होगी।
 
प्रदर्शनकारियों ने राजमार्गों को बंद कर दिया, संसद पर हमला किया और सुरक्षा बलों के साथ उनकी भिड़ंत हुई। उनकी मांग की थी कि सरकार ईंधन सब्सिडी बहाल करे और सरकारी खर्चों में कटौती बंद हो। कई दिनों तक चले प्रदर्शनों के बाद सरकार झुकी और जिसके बाद विरोध प्रदर्शन थमे।
चिली में प्रदर्शन
 
परिवहन किराए में वृद्धि के कारण चिली में भी प्रदर्शन तेज हो गए। सरकार ने ईंधन की क़ीमतों में बढ़ोतरी और मुद्रा कमज़ोर होने का हवाला देते हुए बस और मेट्रो के किराए में बढ़ोतरी कर दी। लेकिन प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यह ग़रीबों को निचोड़ने का एक नया तरीक़ा है।
 
शुक्रवार को जब प्रदर्शनकारी सुरक्षा बलों से भिड़ गए तो राष्ट्रपति सेबेस्टियन पाइनिरा की एक तस्वीर आई जिसमें वे एक बढ़िया इतालवी रेस्तरां में भोजन कर रहे थे। कुछ लोगों ने इसे चिली के राजनीतिक कुलीनों और सड़कों पर रहने वाले लोगों के बीच अंतर का प्रतीक बताया। चिली दक्षिणी अमेरिका में सबसे अमीर देशों में से एक है लेकिन असमानता का उच्चतम स्तर भी यहां है, क्योंकि आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) में शामिल 36 देशों में आमदनी में असमानता सबसे अधिक है।
 
इक्वाडोर की तरह चिली सरकार ने विरोध प्रदर्शन को ख़त्म करने के लिए बढ़ा हुआ किराया वापस ले लिया। लेकिन विरोध जारी रहा और अब वे व्यापक मुद्दों को सामने रख रहे हैं। प्रदर्शन में शामिल एक छात्र ने समाचार एजेंसी रायटर्स से कहा, 'यह मेट्रो के किराए में बढ़ोतरी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन नहीं है बल्कि यह अत्याचार के ख़िलाफ़ कई वर्षों से पीड़ित लोगों का ग़ुस्सा है।'
 
लेबनान में उसी तरह का दंगा देखा गया है, जहां व्हाट्सएप कॉलिंग टैक्स लगाए जाने के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ, जो कि आर्थिक समस्याओं, असमानता और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों में तब्दील हो गया। यहां जैसे-जैसे कर्ज़ बढ़ता जा रहा है, अंतरराष्ट्रीय दाता एजेंसियों से धन प्राप्त करने के लिए सरकार ने आर्थिक सुधारों को लागू करना शुरू कर दिया है।
 
लेकिन आम नागरिकों को लगता है कि वे देश की आर्थिक नीति के चलते और बुरी हालत में जा रहे हैं और उनकी समस्याओं के लिए सरकार का कुप्रबंधन ज़िम्मेदार है। बेरूत के एक प्रदर्शनकारी अब्दुल्ला ने कहा, 'हम यहां व्हाट्सएप के लिए नहीं हैं, लेकिन हम यहां ईंधन, भोजन, रोटी, सब कुछ के लिए हैं।'
 
भ्रष्टाचार
 
इन अलग-लग प्रदर्शनों के केंद्र में सरकारी भ्रष्टाचार है और ग़ैरबराबरी के साथ इसका सीधा संबंध है। लेबनान में प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वे आर्थिक संकट से पीड़ित हैं जबकि देश के नेता अमीर बनने के लिए अपने पदों और शक्ति का फ़ायदा उठा रहे हैं। प्रदर्शनकारियों में एक 50 वर्षीय व्यक्ति रबाब ने कहा, 'मैंने यहां बहुत सारी चीज़ें देखी हैं लेकिन लेबनान में ऐसी भ्रष्ट सरकार नहीं देखी है।'
 
सरकार ने बीते सोमवार को नए सुधारों को लागू किया जिसमें राजनेताओं के वेतन में कटौती का प्रावधान भी किया गया ताकि लोगों को शांत कराया जा सके। इराक़ के लोग भी मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था को ख़त्म करना चाहते हैं, क्योंकि उनका कहना है कि इसने उन्हें निराश किया है।
 
यहां विवादों के मुख्य कारणों में से एक है सरकारी नियुक्तियां, जो योग्यता की बजाय जातीय या सांप्रदायिक आरक्षण के आधार पर की जाती हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इसने नेताओं को सार्वजनिक धन का दुरुपयोग करने की छूट दी है और इस तरह वे अपने और अपने समर्थकों का ही भला कर रहे हैं जबकि आम जनता तक लाभ नहीं पहुंच पा रहा है।
 
मिस्र में भी कथित सरकारी भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन शुरू हुए। सितंबर में ये प्रदर्शन तब शुरू हुए, जब स्पेन में रह रहे स्वनिर्वासित बिज़नेसमैन मोहम्मद अली ने अपील की। उन्होंने राष्ट्रपति अब्देल फ़तहब अल सीसी और सेना पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। सीसी और उनकी सरकार पर धन के कुप्रबंधन के उनके आरोपों पर वे मिस्रवासी भी उद्वेलित हुए जिन पर सार्वजनिक खर्चों में कटौती का असर नहीं पड़ा था।
 
राजनीतिक स्वतंत्रता
 
कुछ देशों में विरोध प्रदर्शन उस राजनीतिक व्यवस्था के ख़िलाफ़ थे जिससे लोग ख़ुद को फंसा हुआ पा रहे हैं। बीती गर्मियों में हांगकांग में एक बिल के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ जिसमें कुछ मामलों में संदिग्ध अपराधियों को चीन में स्थानांतरित करने का प्रावधान था। हांगकांग चीन का हिस्सा है, लेकिन लोगों को विशेष स्वतंत्रता है। लेकिन डर बढ़ रहा है कि बीजिंग उन पर अधिक नियंत्रण हासिल करना चाहता है।
 
चिली और लेबनान के विरोध प्रदर्शनों की तरह हांगकांग के व्यापक विरोध के परिणामस्वरूप ये विवादास्पद बिल वापस आ गया, लेकिन विरोध प्रदर्शन जारी रहा। उनकी मांगों में अब अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता, पुलिस की बर्बरता के ख़िलाफ़ स्वतंत्र जांच और गिरफ़्तार लोगों की रिहाई और माफ़ी शामिल है।
 
उनकी रणनीति ने दुनिया के लगभग सभी राजनीतिक कार्यकर्ताओं को प्रभावित किया है। जेल में कैटेलोनिया अलगाववादी नेता के ख़िलाफ़ बार्सिलोना में हज़ारों लोगों ने प्रदर्शन किया।
 
अलगाववादियों को इस साल 14 अक्टूबर को राजद्रोह के आरोपों में उनकी भूमिका के लिए 14 अक्टूबर को सज़ा सुनाई गई थी जिसे स्पेन की एक अदालत ने अवैध घोषित किया था और फिर कैटेलोनिया की स्वतंत्रता घोषित की थी। दोषी ठहराए जाने के घंटों बाद बार्सिलोना में लोगों को लोकप्रिय एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग सेवा में एक संदेश मिला कि वो बार्सिलोना के एल प्रेटे हवाई अड्डे पर पहुंचें। यह हांगकांग के प्रदर्शनकारियों जैसी ही रणनीति थी।
 
स्थानीय मीडिया की ख़बरों के अनुसार, जब लोग हवाई अड्डे की ओर जा रहे थे, तो युवाओं का एक समूह चिल्लाया, 'हम हांगकांग की तरह करेंगे।' कैटालोनिया के प्रदर्शनकारी हांगकांग में बने इन्फ़ोग्राफिक्स को ये बताने के लिए वितरित कर रहे थे कि प्रदर्शनकारी कैसे पुलिस वॉटर कैनन और आंसू गैस से अपनी रक्षा कर सकते हैं। बार्सिलोना में एक प्रदर्शनकारी ने एएफ़पी को बताया, 'लोगों को सड़कों पर होने की ज़रूरत है, सभी विद्रोह वहीं शुरू होते हैं। हांगकांग का उदाहरण लें।'
 
जलवायु परिवर्तन
 
जितने प्रदर्शनों के बारे में आप सुनते हैं, निश्चित रूप से उन सबका संबंध पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से हैं। एक्सटिंक्शन (पृथ्वी के संकट के ख़िलाफ़) बग़ावती आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ता पूरी दुनिया के शहरों में प्रदर्शन कर रहे हैं। उनकी मांग है कि सरकारें तुरंत कार्रवाई करें।
 
संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्पेन, ऑस्ट्रिया, फ्रांस और न्यूजीलैंड में प्रदर्शन हुए हैं। इसमें शामिल होने वाले प्रदर्शनकारियों ने ख़ुद को सड़कों पर मानव श्रृंखला बनाई थी और शहर की व्यस्त सड़कों को जाम करने की कोशिश की। ऑस्ट्रेलियाई कार्यकर्ता जेन मोर्टन कहते हैं, 'जब तक हमारी सरकार जलवायु और पर्यावरण पर आपातकाल की घोषणा नहीं करती है, तब तक हमारे पास कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि हमें ही अपनी रक्षा के लिए ज़रूरी क़दम उठाने हैं।'
 
स्वीडन के एक 16 वर्षीय स्वीडिश कार्यकर्ता पर ग्रेटा थनबर्ग से प्रेरित होकर दुनियाभर में लोग साप्ताहिक स्कूल हड़ताल में हिस्सा ले रहे हैं। पिछले महीने छात्रों की अगुवाई में वैश्विक पर्यावरणीय हड़ताल में लाखों लोगों ने भाग लिया। परिणामस्वरूप मेलबोर्न से मुंबई, बर्लिन और न्यूयॉर्क तक रैलियां हुईं जबकि कुछ चंद लोगों ने प्रशांत द्वीप समूह में भी प्रदर्शन किया। एक प्लेकार्ड पर लिखा था, 'हम अपना सबक़ छोड़ रहे हैं ताकि हम आपको सबक़ सिखाएं।'
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