गांधी जयंती पर कविता : बापू से...
सुबोध श्रीवास्तव | गुरुवार,अक्टूबर 1,2020
तुम, सिर्फ एक दिन जीने के लिए क्यों जिए बापू और/ क्यों शहीद हुए?
तुम्हारे ही देश में-जहां देखा था
कोरोना पर दोहे: करें नमस्ते, मन पर छोड़ें छाप
सुबोध श्रीवास्तव | सोमवार,मार्च 23,2020
हाथ मिलाने की जगह,करें नमस्ते आप।
कविता : नहीं चाहिए चांद
सुबोध श्रीवास्तव | शुक्रवार,अगस्त 10,2018
मुझे नहीं चाहिए चांद/और न ही तमन्ना है कि सूरज कैद हो मेरी मुट्ठी में
वर्षा : एक शब्दचित्र
सुबोध श्रीवास्तव | बुधवार,अगस्त 8,2018
गली के नुक्कड़ पे बारिश की रिमझिम के बाद उस छोर से आती छोटी सी नदी में छपाक-छपाक करते
हिन्दी कविता : त्रासदी
सुबोध श्रीवास्तव | सोमवार,मई 21,2018
इसमें तुम्हारा दोष कतई नहीं है कि तुम आदमियत से हैवानियत की ओर मुड़ते
कविता : शिल्पकार
सुबोध श्रीवास्तव | शनिवार,मई 19,2018
तुम, सचमुच महान हो शिल्पकार- तुम्हारे हाथ नहीं दुलारते बच्चों को
हिन्दी कविता : बदला मौसम
सुबोध श्रीवास्तव | शनिवार,मई 19,2018
चिड़िया अब नहीं लाती दाना घोंसले में छिपे बच्चों के लिए जो, अब लगने लगे हैं
हिन्दी कविता : बंदूकें
सुबोध श्रीवास्तव | गुरुवार,अगस्त 17,2017
तुम्हें
भले ही भाती हों
अपने खेतों में खड़ी
बंदूकों की फसल
लेकिन -
हिन्दी कविता : पहाड़ के नाम
सुबोध श्रीवास्तव | गुरुवार,अगस्त 17,2017
तुमने प्रकृति का वरदहस्त पाकर पाया अपना अस्तित्व पहाड़ के रूप में और/ प्रस्तुत किया खुद को अपने स्वभाव की तरह।