गांधी जयंती पर कविता : बापू से...
तुम,
सिर्फ एक दिन जीने के लिए
क्यों जिए बापू
और/ क्यों शहीद हुए?
तुम्हारे ही देश में-
जहां देखा था
तुमने
रामराज्य का स्वप्न,
तुम्हारी संतानें
राम को-
देखना भी नहीं चाहतीं।
तुम,
अहिंसा के पुजारी थे
और/ इसी रास्ते पे
चलने को कह गए थे
मगर
तुम्हारी ही प्रतिमूर्तियां
तुम्हारी शांत लाठी
भूखों-नंगों के सब्र पे
बरसा रही हैं/ अथक
जबकि
तुम तो शायद थक भी जाते होगे!
जब तुम्हारी संतानें
तुम्हारी ही समाधि पर
गोलियां बरसा रहीं हैं तो
उस दिन/ तुम
असहाय से-
'राम' कहकर क्यों चुप हो गए थे
बापू!
बस,
एक रोज जिंदा रहने को
क्यों तुम
उम्र भर जिए बापू?