चुनाव : व्यंग्य कविता
- डॉ.गिरीश एम. नागड़ा
हे नागरिकहे मेरे मुल्क के मालिक, तू ड़र मतहलचल मत करचल-विचल मत होउठकर आचल लाइन लगाफिर मुझे वोट देअब तू घर जालंबी चादर तानऔर आराम से सो जा। सुबह उठ, स्नान कर आँखे मूँद कर, ईश्वर का ध्यान करमधुर-मधुर सुर में मीठे-मीठे भजन गा। पानी छानकर पीउपासना व व्रत करअपना कर्मपूरी मेहनत और लगन से निभा। इधर-उधर मत देखचल-विचल मत होअपने आराध्य पर पूरा-पूरा विश्वास कर।आत्मा अमर है, शरीर नश्वर हैचिन्ता मत करहोनी को कौन टाल पाया हैआज तक।रोना तो कायरता हैसंतोषी नर सदा सुखीमुस्कुराहट ही जीवन है, धीरज मोटी बात हैकष्ट और दुख तो परीक्षा हैवैतरणी पार करने की शिक्षा है। ईर्षा व क्रोध मत करलालच बुरी बला हैसत्यमेव जयतेसच्चे मन से श्रम करखूब उत्पादन बढ़ाउत्पादन लक्ष्य को पूर्ण करराष्ट्र को ऊपर उठा संपूर्ण राष्ट्र तेरा हैतेरी ही संपति हैमै भी तेरा ही हूँ जो कुछ मेरा है,वह तेरा हैऔर जो तेरा है,वह मेरा है।
तू मालिक है, मै सेवक हूँतू है स्वामी, मै हूँ पहरेदारअब चल, डर मतमतदान केन्द्र आमेरे चुनाव चिन्ह को, खूब ध्यान से देखकोई भी शंका-कुशंका मत करक्या तेरा है क्या मेरा हैजग चार दिन का डेरा हैतू लगन से अपना कर्म करमेरे चुनाव चिह्न परध्यान से,प्रेम से, अपनी मोहर लगाकर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।अगले निर्वाचन पर अवश्य आनाऔर मुझे, अपना कीमती वोट देना भूल ना जाना, अवश्य आना।मुझे वोट दे दिया अब चल, परे हट, बाजू हो,जल्दी करदूसरे को आने दे, बुरा मत मानजरा हवा तो आने देठंडी-ठंडी, सुखद,प्यारी-प्यारीसत्ता की, धन की, पावर की, मधुर हवाजो मेरे महान वंश की आत्माओं कोअसीम शीतलता, शांति प्रदान करेगीतूझे भी तो उसका पुण्य मिलेगा नधन्यवाद लेकर,चल सीधा घर जाअब सर पर बैठेगा क्या मेरे बापचल श्याना बन, रास्ता नाप।अगले चुनाव से पहलेदिखाई भी मत देना मनहूस...।