शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. विधानसभा चुनाव 2017
  3. उत्तराखंड
  4. Uttarakhand election
Written By
Last Modified: देहरादून , गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017 (15:41 IST)

उत्तराखंड में भाजपा का कांग्रेसीकरण

उत्तराखंड में भाजपा का कांग्रेसीकरण - Uttarakhand election
देहरादून। उत्तराखंड के इस बार के विधानसभा की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यहां पर अब राजनीतिक लड़ाई परंपरागत विरोधियों में नहीं है। आमतौर पर यहां पर कांग्रेस और भाजपा का मुकाबला होता आया है लेकिन इस बार भाजपा का इतना अधिक कांग्रेसीकरण हो चुका है कि वास्तव में मुकाबला कांग्रेस बनाम कांग्रेस हो गया है। इस लड़ाई में कांग्रेस की ही जीत होगी।
 
सर्द मौसम के बावजूद पहाड़ों पर चुनावी गर्मी देखने को मिल रही है और ऐसे में कौन, कब, कहां पाला बदल ले, इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल हो गया है। इससे पहले भी देवभूमि में दलबदल का बहाव कांग्रेस से भाजपा की ओर रहा है। इतना ही नहीं, जिन कांग्रेसी नेताओं ने पार्टी छोड़ी है, उन्हें वरीयता के आधार पर भाजपा का टिकट दिया गया है। 
 
भाजपा में भी शायद इसी योग्यता की मांग सबसे ज्यादा है कि आप कांग्रेसी हैं या नहीं। आपकी योग्यता यही होनी चाहिए कि आपका नाम बड़ा हो, भले ही आप पुराने कांग्रेसी क्यों न हो? आपने बीजेपी और आरएसएस को अब तक कितना भी भला-बुरा क्यों ना कहा हो, केवल अपने विधानसभा क्षेत्र में आपकी जीत की संभावना हो तो बीजेपी गले लगाने में कोई आपत्ति नहीं होगी। 
 
फिलहाल भाजपा को भी इस बात से कोई मतलब नहीं कि अपनी पार्टी के पुराने कार्यकर्ता भले ही नाराज हो जाएं लेकिन एक भी संभावित विजेता कांग्रेसी, भाजपा के टिकट से वंचित न रहे। स्थिति यह है कि सारा जीवन कांग्रेस में गुजारने वाले और 3 बार यूपी और 1 बार उत्तराखंड के मुख्‍यमंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी भी भाजपा में शामिल हो गए। 
 
अब बुजुर्ग एनडी तिवारी बीजेपी के समर्थन में वोट मांगेंगे? खुद कांग्रेस के भीतर उनकी हालत क्या है? यह बात जगजाहिर है, लेकिन अब वे अपने बेटे रोहित शेखर को राजनीति में दीक्षित करना चाहते हैं। बीजेपी के दरवाजे पहुंचे 91 साल के एनडी तिवारी उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। उनके साथ यह खूबी भी रही है कि वे सियासत में जितने विख्यात रहे, उतने ही निजी जीवन में कुख्यात भी रहे हैं। 
 
आंध्रप्रदेश के राज्यपाल रहते तिवारी को लेकर कितनी ही बातें कही जाती रही हैं, उसका कोई हिसाब नहीं है। लेकिन चुनावी मौसम में बीजेपी को शायद इस बात का एहसास हुआ कि एनडी तिवारी राज्य में ब्राह्मणों के सबसे बड़े नेता हैं तभी तो कांग्रेस में किनारे लग चुके तिवारी को भाजपा ने गले लगा लिया। 
 
इसके पहले 16 जनवरी को उत्तराखंड कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष यशपाल आर्य ने हाथ छोड़कर कमल का साथ होने का फैसला किया। यशपाल आर्य अपने साथ-साथ अपने बेटे के लिए भी टिकट मांग रहे थे लेकिन जब कांग्रेस ने एक साथ पिता-पुत्र दोनों को टिकट देने की बात नहीं मानी तो उन्होंने पाला बदल लिया।
 
पार्टी में शामिल होने के दिन शाम को ही बीजेपी ने यशपाल आर्य को बाजपुर सुरक्षित और बेटे संजीव आर्य को नैनीताल सुरक्षित सीट से टिकट दे दिया। बीजेपी के भीतर कांग्रेसी नेताओं के आने का सिलसिला अचानक शुरू नहीं हुआ है। करीब 10 महीने पहले उत्तराखंड की हरीश रावत सरकार से बगावत कर चुके नेताओं को पहले बीजेपी ने अपने साथ शामिल कर लिया। 
 
बाद में इन्हें विधानसभा चुनाव के लिए मैदान में उतार दिया। बीजेपी की उत्तराखंड के लिए जारी पहली सूची में हरीश रावत सरकार में मंत्री रह चुके हरक सिंह रावत को कोटद्वार से टिकट दिया गया है जबकि पूर्व सांसद सतपाल महाराज को चौबातखल, कुंवर प्रणवेंद्र सिंह चैंपियन को खानपुर और पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के बेटे सौरभ बहुगुणा को सितारगंज से चुनाव मैदान में उतारा गया है।
 
कहना गलत न होगा कि ये सभी कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में शामिल हुए थे। भगवा ब्रिगेड की तरफ से उत्तराखंड में चुनाव जीतने को लेकर दावे किए जा रहे हैं लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच यह सवाल किया जाता रहा है कि क्या बीजेपी के पास अपनी ताकत इतनी कमजोर हो गई है कि कांग्रेसी उम्मीदवारों को अपने साथ लाकर अपनी जमीन मजबूत की जा रही है? 
 
पार्टी के भीतर दबी जुबान से चर्चा तो इसी बात की हो रही है कि उत्तराखंड में भाजपा का कांग्रेसीकरण हो गया है इसलिए कहा जा रहा है कि देवभूमि की लड़ाई में जीत तो ‘कांग्रेस’ की ही होगी। दलबदलुओं को अपने पाले में लाकर भाजपा ने इस बार लड़ाई को कांग्रेस बनाम कांग्रेस ही बना दिया है। 
ये भी पढ़ें
सोना चमका, चांदी की चमक फीकी