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Written By अवनीश कुमार
Last Modified: रविवार, 28 जून 2020 (18:07 IST)

ज्यादा फायदे के लिए किसानों को कब करनी चाहिए तिल की खेती, जानिए कृषि विशेषज्ञों की राय

ज्यादा फायदे के लिए किसानों को कब करनी चाहिए तिल की खेती, जानिए कृषि विशेषज्ञों की राय - Sesame Farming
लखनऊ। उत्तरप्रदेश में फसल बुवाई का समय आ रहा है। उत्तरप्रदेश में तिल की खेती बेहद अच्छी होती है और किसानों को फायदा भी मिलता है, लेकिन किसानों को ज्यादा फायदा मिल सके, इसके लिए किसानों को किस समय तिल की बुवाई करनी चाहिए।

चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर व वैज्ञानिकों ने वेबदुनिया के संवाददाता इस बारे में विशेष बातचीत की। अनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष डॉक्टर महकसिंह ने बताया कि खरीफ मौसम में तिलहनी फसलों के अंतर्गत तिल की खेती का महत्वपूर्ण स्थान है।

तिल की बुवाई का सर्वोत्तम समय जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के दूसरे पखवाड़े तक है। डॉक्टर महकसिंह ने बताया कि उत्तरप्रदेश में तिल का क्षेत्रफल 4,17,4 35 हेक्टेयर तथा उत्पादन 99 767 मीट्रिक टन है। डॉ. सिंह ने बताया कि पूरे देश में (राष्ट्रीय स्तर) पर तिल के उत्पादन में उत्तरप्रदेश की भागीदारी 25 प्रतिशत है।

तिल की तेल के महत्व के बारे में डॉक्टर सिंह ने बताया कि तिल में मौजूद लवण जैसे कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, जिंक और सेलेनियम आदि दिल की मांसपेशियों को सक्रिय रखने में मदद करते हैं। उन्होंने बताया कि तिल में डाइटरी प्रोटीन और एमिनो एसिड मौजूद होते हैं जो बच्चों की हड्डियों के विकास को बढ़ावा देते हैं तथा इसके तेल से त्वचा को जरूरी पोषण मिलता है।
 
किसानों का फायदा : अनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग के वैज्ञानिक डॉ डीके सिंह एवं डॉ. राजवीर सिंह ने बताया कि उत्तरप्रदेश में तिल की खेती हेतु नवीनतम प्रजातियां टाइप 78, शेखर, प्रगति, तरुण, आरटी 351 एवं आरटी 346 प्रमुख हैं।

वैज्ञानिकों ने बताया कि तिल का 3 से 4 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर आवश्यकता होती है। उन्होंने बताया कि जुलाई के द्वितीय पखवाड़े तक तिल की बुवाई हो जाने से उत्पादन अच्छा होता है। तिल की बुवाई करते समय पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेंटीमीटर अवश्य रखें।

विश्वविद्यालय के मीडिया प्रभारी डॉ. खलील खान ने बताया कि तिल की फसल हेतु 30 किलोग्राम नत्रजन 20 किलोग्राम फास्फोरस एवं 25 किलोग्राम गंधक (सल्फर) प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करने से किसान भाइयों को मात्रात्मक और गुणात्मक लाभ होता है।
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