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Written By Author गिरीश पांडेय
Last Modified: शनिवार, 15 अप्रैल 2023 (08:30 IST)

2018 में 2.5 लाख रुपए से शुरू गारमेंट का काम 60 लाख तक पहुंचा

2018 में 2.5 लाख रुपए से शुरू गारमेंट का काम 60 लाख तक पहुंचा - Garment work started from Rs 2.5 lakh in 2018 reached 60 lakh
वैश्विक महामारी कोरोना में तमाम जमे जमाए लोगों के पांव उखाड़ दिए। नए कारोबारियों की इसमें क्या बिसात? पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एक युवा का उदाहरण इसके ठीक उलट है। पूर्वांचल के सबसे बड़े पर्व मकर संक्रांति के पावन पर्व पर गुरु गोरक्षनाथ का आशीर्वाद लेकर मात्र 2.5 लाख रुपए की पूंजी से उन्होंने रेडीमेड गारमेंट्स की एक छोटी सी इकाई डाल दी। आज उनका कारोबार करीब 60 लाख रुपए तक पहुंच चुका है। बेहद कठिन चैलेंजेस के उस दौर के मद्देजर खुद के कारोबार का संभालना और बाद में उसे बढ़ाना, 'दिन दूना रात चौगुना' मुहावरे का जीवंत प्रमाण है।
 
2018 में 2.5 लाख रुपए से शुरू गारमेंट का काम आज करीब 60 लाख रुपए तक पहुंच गया है। दो साल के वैश्विक महामारी कोरोना के ब्रेक के बावजूद अखिलेश की यह उपलब्धि खुद में खास है। वह इसका श्रेय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा कारोबार खासकर हम जैसे छोटे कारोबारियों के लिए तैयार इकोसिस्टम को है।
 
बकौल अखिलेश। हमारे जैसे नए कारोबारी के लिए कोरोना का वह दो साल का कार्यकाल किसी दुःस्वप्न जैसा था। लॉकडाउन के कारण पूरी आपूर्ति चेन ठप थी। प्रोडक्शन लगभग शून्य पर आ गया। पर घर वालों के सपोर्ट और उनके अनुभव से संभल गया।
काम आया घर के बड़े लोगों का अनुभव : उल्लेखनीय है कि अखिल मूलरूप से संतकबीरनगर जिले के किठिउरी (हैसर बाजार) के रहने वाले हैं। संतकबीरनगर किसी जमाने में अपने हैंडलूम उत्पादों के लिए जाना जाता था। उनके बाबा स्वर्गीय झिनकू दुबे कोलकाता की एक नामचीन कंपनी में डिजाइन सेक्शन में काम कर चुके थे। चाचा शत्रुध्न दुबे दिल्ली के एक्सपोर्ट हाउस में प्रोडक्शन के हेड हैं।
 
कभी सिविल सर्विसेज की कर रहे थे तैयारी : ग्रेजुएशन के बाद सिविल सर्विसेज की तैयारी के लिए अखिल भी 2014 में दिल्ली चले गए। चाचा के यहां आना-जाना होता रहता था। बातचीत के दौरान उनको गारमेंट इंडस्ट्री की कुछ समझ हो गई। सिविल सेवा में सफलता नहीं मिली। लौटकर गोरखपुर आए तो सूरजकुंड में गारमेंट की एक यूनिट डाल दी। 2017 में सरकार बदल चुकी थी। अपने ही शहर के योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन चुके थे। यहां का होने के नाते मैं सांसद के रूप में टेक्सटाइल पार्क, फूडपार्क, बंद खाद कारखाने को फिर से चलाने के लिए उनके संघर्षों और प्रतिबद्धताओं से वाकिफ था। लिहाजा उद्योग जगत के बेहतरी की उम्मीद थी। उम्मीद के अनुसार कारोबार के लिए इकोसिस्टम भी बदलने लगा था।
 
ओडीओपी और गारमेंट पार्क की घोषणा से बढ़ा हौसला : मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर टेराकोटा के बाद रेडीमेड गारमेंट का गोरखपुर का दूसरा उत्पाद, फ्लैटेड फैक्ट्री और गारमेंट्स परके की घोषणा ने हौसला बढ़ाने का काम किया। खासकर गारमेंट्स पार्क यहां के लिए बड़ी उपलब्धि है। सो कोरोना के बाद भी उम्मीद के मुताबिक संभल गए। 
ऑनलाइन बाजार के जरिए पूरे देश में उपस्थिति : युवा होने के नाते वह तकनीक में भी दक्ष हैं। इसके नाते ऑनलाइन कारोबार के जरिए पूरा भारत ही उनके उत्पादों का बाजार है। पर सीधी आपूर्ति गोरखपुर, बस्ती, आजमगढ़ मंडल के कई जिलों में है। वाराणसी मंडल के कुछ जिलों के अलावा रक्सौल, बगहा, बेतिया तक भी हमारे उत्पाद जाते हैं। ओडीओपी के तहत अनुदान पर 25 लाख रुपए का लोन मिल चुका है। 
 
मेन्स वियर शर्ट, कुर्ता, सदरी, बॉक्सर, लोवर के उत्पादन पर उनका फोकस है। उत्पाद की जरूरत के अनुसार अहमदाबाद, भिवंडी आदि जगहों से कपड़ा आता है। पैकेजिंग के पैकेट दिल्ली से आते हैं। उनकी इकाई में 30 लोग काम करते हैं। जिनमें से 7 महिलाएं हैं। अखिलेश कारोबार के संबंध में किसी को सुझाव देने के लिए तत्पर हैं। 
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