मंगलवार, 26 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. धर्म-दर्शन
  3. सिख धर्म
  4. Guru Tegh Bahadur and mata gujri
Written By

विश्व इतिहास में अद्वितीय है माता गुजरी की कहानी, जिन्होंने गुरु तेग बहादुर जी को भेजा था शहीदी देने के लिए

विश्व इतिहास में अद्वितीय है माता गुजरी की कहानी, जिन्होंने गुरु तेग बहादुर जी को भेजा था शहीदी देने के लिए। Tegh Bahadur and mata gujri - Guru Tegh Bahadur and mata gujri
इतिहास में अद्वितीय है माता गुजरी, जिन्होंने अपने पति गुरु तेग बहादुर जी को भेजा था धर्मरक्षा हेतु शहीदी के लिए
 
 
नारी शक्ति की प्रतीक, वात्सल्य, सेवा, परोपकार, त्याग, उत्सर्ग की शक्तिस्वरूपा माता गुजरी जी का जन्म करतारपुर (जालंधर) निवासी लालचंद व बिशन कौर जी के घर सन् 1627 में हुआ था। 8 वर्ष की आयु में उनका विवाह करतारपुर में श्री तेग बहादुर साहब के साथ हुआ। 
 
विवाह के कुछ समय पश्चात गुजरी जी ने करतारपुर में मुगल सेना के साथ युद्ध को अपनी आंखों से मकान की छत पर चढ़कर देखा। उन्होंने गुरु तेग बहादुर जी को लड़ते देखा और बड़ी दिलेरी से उनकी हौसला अफजाई कर अपनी हिम्मत एवं धैर्य का परिचय दिया। सन 1666 में पटना साहिब में उन्होंने दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी को जन्म दिया। 
 
अपने पति गुरु तेग बहादुर जी को हिम्मत एवं दिलेरी के साथ कश्मीर के पंडितों की पुकार सुन धर्मरक्षा हेतु शहीदी देने के लिए भेजने की जो हिम्मत माता जी ने दिखाई, वह विश्व इतिहास में अद्वितीय है। 
 
सन 1675 में पति की शहीदी के पश्चात उनके कटे पावन शीश, जो भाई जीता जी लेकर आए थे, के आगे माता गुजरी जी ने अपना सिर झुकाकर कहा, 'आपकी तो निभ गई, यही शक्ति देना कि मेरी भी निभ जाए।' 
 
सन् 1704 में आनंदपुर पर हमले के पश्चात आनंदपुर छोड़ते समय सरसा नदी पार करते हुए गुरु गोबिंद सिंह जी का पूरा परिवार बिछुड़ गया। माता जी और दो छोटे पोतें, गुरु गोबिंद सिंह जी एवं उनके दो बड़े भाइयों से अलग-अलग हो गए। सरसा नदी पार करते ही गुरु गोबिंद सिंह जी पर दुश्मनों की सेना ने हमला बोल दिया।
 
चमकौर साहब की गढ़ी के इस भयानक युद्ध में गुरु जी के दो बड़े साहबजादों ने शहादतें प्राप्त कीं। साहबजादा अजीत सिंह को 17 वर्ष एवं साहबजादा जुझार सिंह को 14 वर्ष की आयु में गुरु जी ने अपने हाथों से शस्त्र सजाकर मृत्यु का वरण करने के लिए धर्मयुद्ध भूमि में भेजा था।
 
सरसा नदी पर बिछुड़े माता गुजरी जी एवं छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह जी 7 वर्ष एवं साहबजादा फतह सिंह जी 5 वर्ष की आयु में गिरफ्तार कर लिए गए। 
 
उन्हें सरहंद के नवाब वजीर खां के समक्ष पेश कर ठंडे बुर्ज में कैद कर दिया गया और फिर कई दिन तक नवाब, काजी तथा अन्य अहलकार उन्हें अदालत में बुलाकर धर्म परिवर्तन के लिए कई प्रकार के लालच एवं धमकियां देते रहे।
 
दोनों साहबजादे गरजकर जवाब देते, 'हमारी लड़ाई अन्याय, अधर्म एवं जोर-जुल्म तथा जबर्दस्ती के खिलाफ है। हम तुम्हारे इस जुल्म के खिलाफ प्राण दे देंगे लेकिन झुकेंगे नहीं।' अततः 26 दिसंबर 1704 को वजीर खां ने उन्हें जिंदा चुनवा दिया। 
 
साहिबजादों की शहीदी के पश्चात बड़े धैर्य के साथ ईश्वर का शुक्राना करते हुए माता गुजरी जी ने अरदास की एवं 26 दिसंबर 1704 को प्राण त्याग दिए। आज भी माता गुजरी जी के इस दिलेरी और बहादुरी भरे काम का सभी शुक्राना अदा करते है।

ये भी पढ़ें
इसलिए लगाया जाता है मांग में सिंदूर, राज जानकर रह जाएंगे हैरान