गुरुवार, 28 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. धर्म-दर्शन
  3. सिख धर्म
  4. Guru Ram Das
Written By

अमृतसर के संस्थापक और सिख धर्म के चतुर्थ गुरु, गुरु रामदास जी का प्रकाश पर्व

अमृतसर के संस्थापक और सिख धर्म के चतुर्थ गुरु, गुरु रामदास जी का प्रकाश पर्व। Guru Ram Das - Guru Ram Das
श्री गुरु रामदास साहेबजी का प्रकाश (जन्‍म) कार्तिक वदी 2, विक्रमी संवत् 1591 (24 सितंबर सन् 1534) को पिता हरदासजी के घर माता दयाजी की कोख से लाहौर (अब पाकिस्तान में) की चूना मंडी में हुआ था। श्री रामदासजी सिखों के चौथे गुरु थे। उनके जन्मदिवस को प्रकाश पर्व या गुरुपर्व भी कहा जाता है।

 
बाल्‍यकाल में आपको 'भाई जेठाजी' के नाम से बुलाया जाता था। छोटी उम्र में ही आपके माता-पिता का स्‍वर्गवास हो गया। इसके बाद बालक जेठा अपने नाना-नानी के पास बासरके गांव में आकर रहने लगे। कम उम्र में ही आपने जीविकोपार्जन प्रारंभ कर दिया था। 
 
कुछ सत्‍संगी लोगों के साथ बचपन में ही आपने गुरु अमरदासजी के दर्शन किए और आप उनकी सेवा में पहुंचे। आपकी सेवा से प्रसन्‍न होकर गुरु अमरदासजी ने अपनी बेटी भानीजी का विवाह भाई जेठाजी से करने का निर्णय लिया। आपका विवाह होने के बाद आप गुरु अमरदासजी की सेवा जमाई बनकर न करते हुए एक सिख की तरह तन-मन से करते रहे। 
 
गुरु अमरदासजी जानते थे कि जेठाजी गुरुगद्दी के लायक हैं, पर लोक-मर्यादा को ध्‍यान में रखते हुए आपने उनकी परीक्षा भी ली। उन्‍होंने अपने दोनों जमाइयों को 'थडा' बनाने का हुक्‍म दिया। शाम को वे उन दोनों जमाइयों द्वारा बनाए गए थडों को देखने आए। थडे देखकर उन्‍होंने कहा कि ये ठीक से नहीं बने हैं, इन्‍हें तोड़कर दोबारा बनाओ।

 
गुरु अमरदासजी का आदेश पाकर दोनों जमाइयों ने दोबारा थडे बनाए। गुरु साहेब ने दोबारा थडों को नापसंद कर दिया और उन्‍हें दुबारा से थडे बनाने का हुक्‍म दिया। इस हुक्‍म को पाकर दुबारा थडे बनाए गए। पर अब जब गुरु अमरदास साहेबजी ने इन्‍हें फिर से नापसंद किया और फिर से बनाने का आदेश दिया, तब उनके बड़े जमाई ने कहा- 'मैं इससे अच्‍छा थडा नहीं बना सकता'। पर भाई जेठाजी ने गुरु अमरदासजी का हुक्‍म मानते हुए दोबारा थडा बनाना शुरू किया। यहां से यह सिद्ध हो गया कि भाई जेठाजी ही गुरुगद्दी के लायक हैं। 
 
भाई जेठाजी (गुरु रामदास जी) को 1 सितंबर सन् 1574 ईस्‍वी में गोविंदवाल जिला अमृतसर में श्री गुरु अमरदासजी द्वारा गुरुगद्दी सौंपी गई। 16वीं शताब्दी में सिखों के चौथे गुरु रामदास ने एक तालाब के किनारे डेरा डाला जिसके पानी में अद्भुत शक्ति थी।

इसी कारण इस शहर का नाम अमृत+सर (अमृत का सरोवर) पड़ा। गुरु रामदास के पुत्र ने तालाब के मध्य एक मंदिर का निर्माण कराया, जो आज अमृतसर, स्वर्ण मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।
 
ये भी पढ़ें
करवा चौथ में महत्वपूर्ण है सरगी और बाया, ये दो तोहफे बनाते हैं रिश्ते को खास