शनिवार, 21 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. व्रत-त्योहार
  3. महाशिवरात्रि
  4. Mahashivratri puja and Bilvapatra belpatra

महाशिवरात्रि : बिल्वप‍त्र की 13 आश्चर्यजनक महिमा और शुभ फल अवश्य पढ़ें

महाशिवरात्रि : बिल्वप‍त्र की 13 आश्चर्यजनक महिमा और शुभ फल अवश्य पढ़ें - Mahashivratri puja  and Bilvapatra belpatra
-डॉ. रामकृष्ण डी. तिवारी
 
शिव शुद्ध कल्याण का पर्याय हैं। शिव उपासना शैव संप्रदाय में विशेष रूप से होती है, लेकिन भगवान शंकर की शीघ्र प्रसन्न होने की प्रवृत्ति के कारण इनकी पूजा सभी आस्तिकजन अपनी लौकिक व पारलौकिक कामना की पूर्ति के लिए हमेशा करते हैं। प्रभु आशुतोष के पूजन में अभिषेक व बिल्वपत्र का प्रथम स्थान है। 
 
1. ऋषियों ने तो यह कहा है कि बिल्वपत्र भोले-भंडारी को चढ़ाना एवं 1 करोड़ कन्याओं के कन्यादान का फल एक समान है।
 
2. बेल का वृक्ष हमारे यहां संपूर्ण सिद्धियों का आश्रय स्थल है। इस वृक्ष के नीचे स्तोत्र पाठ या जप करने से उसके फल में अनंत गुना की वृद्धि के साथ ही शीघ्र सिद्धि की प्राप्ति होती है। 
 
3. इसके फल की समिधा से लक्ष्मी का आगमन होता है। बिल्वपत्र के सेवन से कर्ण सहित अनेक रोगों का शमन होता है। बिल्व पत्र सभी देवी-देवताओं को अर्पित करने का विधान शास्त्रों में वर्णित है।
 
4.  'न यजैद् बिल्व पत्रैश्च भास्करं दिवाकरं वृन्तहीने बिल्पपत्रे समर्पयेत' के अनुसार भगवान सूर्यनारायण को भी पूरी डंडी तोड़कर बिल्वपत्र अर्पित कर सकते हैं। यदि साधक स्वयं बिल्वपत्र तोड़ें तो उसे ऋषि आचारेन्दु के द्वारा बताए इस मंत्र का जप करना चाहिए-
 
'अमृतोद्भव श्री वृक्ष महादेयत्रिय सदा।
गृहणामि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात्।।'
 
5. लिंगपुराण में बिल्वपत्र को तोड़ने के लिए चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या, संक्रांति काल एवं सोमवार को निषिद्ध माना गया है। शिव या देवताओं को बिल्वपत्र प्रिय होने के कारण इसे समर्पित करने के लिए किसी भी दिन या काल जानने की आवश्यकता नहीं है। यह हमेशा उपयोग हेतु ग्राह्य है। 
 
6. जिस दिन तोड़ना निषिद्ध है उस दिन चढ़ाने के लिए साधक को एक दिन पूर्व ही तोड़ लेना चाहिए। बिल्वपत्र कभी बासी नहीं होते। ये कभी अशुद्ध भी नहीं होते हैं। इन्हें एक बार प्रयोग करने के पश्चात दूसरी बार धोकर प्रयोग में लाने की भी स्कन्द पुराण के इस श्लोक में आज्ञा है-
 
'‍अर्पितान्यपि बिल्वानि प्रक्षाल्यापि पुन: पुन:।
शंकरार्यर्पणियानि न नवानि यदि क्वाचित।।'
 
बिल्वपत्र के वे ही पत्र पूजार्थ उपयोगी हैं जिनके तीन पत्र या उससे अधिक पत्र एकसाथ संलग्न हों। त्रिसंख्या से न्यून पत्ती वाला बिल्वपत्र पूजन योग्य नहीं होता है। प्रभु को अर्पित करने के पूर्व बिल्वपत्र की डंडी की गांठ तोड़ देना चाहिए। सारदीपिका के 'स्युबिल्व पत्रमधो मुखम्' के अनुसार बिल्वपत्र को नीचे की ओर मुख करने (पत्र का चिकना भाग नीचे रहे) ही चढ़ाना चाहिए। पत्र की संख्या में विषम संख्या का ही विधान शास्त्रसम्मत है।
 
7. बिल्वपत्र चढ़ाने के शुभ फल : शिवरात्रि, श्रावण, प्रदोष, ज्योतिर्लिंग, बाणर्लिंग में इसे भगवान रुद्र पर समर्पित करने से अनंत गुना फल मिलता है। किसी भी पूजन में या शिव पूजन में बिल्वपत्र का अनंत गुना फल मिलता है। किसी भी पूजन में या शिव पूजन में बिल्वपत्र का उपयोग अति आवश्यक एवं पापों का क्षय करने वाला होता है। 
 
8. यदि किसी कारणवश बिल्वपत्र उपलब्ध न हो तो स्वर्ण, रजत, ताम्र के बिल्वपत्र बनाकर भी पूजन कर सकते हैं। ऐसा करने का फल भी वनस्पतिजन्य बिल्वपत्र के समकक्ष है। 
 
9. यदि किसी संकल्प के नि‍मित्त बिल्वपत्र चढ़ाना हो तो प्रतिदिन समान संख्या में या वद्धि क्रम की संख्या में ही उपयोग करना चाहिए। अधिक संख्या के पश्चात न्यून संख्या में नहीं चढ़ाना चाहिए। 
 
10. पुराणों में उल्लेख है कि 10 स्वर्ण मुद्रा के दान के बराबर एक आक पुष्प के चढ़ाने से फल मिलता है। 1 हजार आक के फूल का फल एवं 1 कनेर के फूल के चढ़ाने का फल समान है। 1 हजार कनेर के पुष्प को चढ़ाने का फल एक बिल्व पत्र के चढ़ाने से मिल जाता है। 
 
11. इसके वृक्ष के दर्शन व स्पर्श से ही कई प्रकार के पापों का शमन हो जाता है तो इस वृक्ष को कटाने अथवा तोड़ने या उखाड़ने से लगने वाले पाप से केवल ब्रह्मा ही बचा सकते हैं। अत: किसी भी स्‍थिति में इस वृक्ष को नष्ट होने से बचाने के लिए प्रयत्नशील रहना आध्यात्मिक एवं पर्यावरण दोनों की दृष्टि से लाभकारी है।
 
12. बिल्वपत्र चढ़ाने के नियम : यदि बिल्वपत्र पर चंदन या अष्टगंध से ॐ, शिव पंचाक्षर मंत्र या शिव नाम लिखकर चढ़ाया जाता है तो फलस्वरूप व्यक्ति की दुर्लभ कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। कालिका पुराण के अनुसार चढ़े हुए बिल्व पत्र को सीधे हाथ के अंगूठे एवं तर्जनी (अंगूठे के पास की उंगली) से पकड़कर उतारना चाहिए। चढ़ाने के लिए सीधे हाथ की अनामिका (रिंग फिंगर) एवं अंगूठे का प्रयोग करना चाहिए।
 
13. तीन जन्मों के पापों के संहार के लिए त्रिनेत्ररूपी भगवान शिव को तीन पत्तियोंयुक्त बिल्व पत्र, जो सत्व-रज-तम का प्रतीक है, को इस मंत्र को बोलकर अर्पित करना चाहिए-
 
'त्रिदलं त्रिगुणाकरं त्रिनेत्र व त्रिधामुतम्।
त्रिजन्म पाप संहार बिल्व पत्रं शिवार्पणम्।।
 
शिव उपासना अर्थात मंगल की कामना की साधना के लिए यदि प्रत्येक शिवभक्त अर्थात कल्याण की आकांक्षा का प्रेमी यदि बेल पत्र के वृक्ष का रोपण एवं उसके पत्र का अर्पण करे तो देश की अनेक समस्याओं सहित पर्यावरण की समस्या से भी बहुत हद तक मुक्ति मिल सकती है। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। आवश्यकता मात्र ऐसे शिवभक्तों की है।