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भगवान शनिदेव के बारे में 10 रहस्य, जानकर चौंक जाएंगे

Shani Dev | भगवान शनिदेव के बारे में 10 रहस्य, जानकर चौंक जाएंगे
अधिकतर लोग शनि भगवना से डरते हैं इसी कारण वे उनके मंदिर में उनकी आराधना करने जाते हैं। कई लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने शनिदेव और हनुमानजी दोनों की ही आराधना करते हैं। भगवान शनिदेव के बारे में वैसे तो सभी जानते हैं कि वे दंडनायक है। शनिदेव से सभी डरते हैं क्योंकि ज्योतिष अनुसार शनि की साढ़ेसाती और ढय्या के फेर में फंसे व्यक्ति की जिंदगी में तूफान खड़े हो जाते हैं। परंतु इसके अलावा भी शनिदेव के संबंध में बहुत कुछ जानता जरूरी है।
 
 
नीलांजनं समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌।छायामार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌॥
 
1. पुराण कहते हैं कि शनि को परमशक्ति परमपिता परमात्मा ने तीनों लोक का न्यायाधीश नियुक्त किया है। शनिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश को भी उनके किए की सजा देते हैं और ब्रह्मांड में स्थित तमाम अन्यों को भी शनि के कोप का शिकार होना पड़ता है। परंतु यह भी सच है कि हनुमानजी के आगे शनिेदेव की नहीं चलती है वे हनुमानजी को दिए वचनानुसार हनुमान भक्तों को सदा क्षमा करते रहते हैं।
 
2. पुराण कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार का अन्याय करता है तो वह शनि की वक्र दृष्टि से बच नहीं सकता। शराब पीने वाले, माँस खाने वाले, ब्याज लेने वाले, परस्त्री के साथ व्यभिचार करने वाले और ताकत के बल पर किसी के साथ अन्याय करने वाले का शनिदेव 100 जन्मों तक पीछा करते हैं।
 
3. शनिदेव के सिर पर स्वर्ण मुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र और इंद्रनीलमणि के समान। यह कौवे और कभी कभी गिद्ध पर सवार रहते हैं। इनके हाथों में धनुष, बाण, त्रिशूल रहते हैं। 
 
4. शनि को सूर्य का पुत्र माना जाता है। विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा विवस्वान् अर्थात सूर्य की पत्नी हुई। उसके गर्भ से सूर्य ने तीन संतानें उत्पन्न की। जिनमें एक कन्या और दो पुत्र थे। सबसे पहले प्रजापति श्राद्धदेव, जिन्हें वैवस्वत मनु कहते हैं, उत्पन्न हुए। तत्पश्चात यम और यमुना- ये जुड़वीं संतानें हुईं।  भगवान सूर्य की तूसरी पत्नी छाया थीं। छाया को संज्ञा की छाया ही माना जाता था। छाया से ही शनिदेव का जन्म हुआ था। सूर्य पुत्र कर्ण भी शनिदेव के भाई हैं। 
 
5. पुराणों में वैसे तो शनि के संबंध में कई विरोधाभासिक कथाएं मिलती है। ब्रह्मपुराण के अनुसार इनके पिता ने चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह कर दिया। इनकी पत्नी परम तेजस्विनी थी। एक रात वे पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से इनके पास पहुंचीं, पर ये विष्णु के ध्यान में निमग्न थे। पत्नी प्रतीक्षा करके थक गई। उनका ऋतुकाल निष्फल हो गया। इसलिए पत्नी ने क्रुद्ध होकर शनिदेव को शाप दे दिया कि आज से जिसे तुम देख लोगे, वह नष्ट हो जाएगा। लेकिन बाद में पत्नी को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ, किंतु शाप के प्रतीकार की शक्ति उसमें न थी, तभी से शनि देवता अपना सिर नीचा करके रहने लगे। क्योंकि ये नहीं चाहते थे कि इनके द्वारा किसी का अनिष्ट हो।
 
6. शनि की दृष्टी एक बार शिव पर पड़ी तो उनको बैल बनकर जंगल-जंगल भटकना पड़ा। रावण पर पड़ी तो उनको भी असहाय बनकर मौत की शरण में जाना पड़ा। यदि भगवान शनि किसी को क्रूध होकर देख लें तो समझों उसका बंटा ढाल। मात्र हनुमानजी ही एक ऐसे देवता हैं जिन पर शनि का कोई असर नहीं होता और वे अपने भक्तों को भी उनके असर से बचा लेते हैं। एक बार अहंकारी लंकापति रावण ने शनिदेव को कैद कर लिया और उन्हें लंका में एक जेल में डाल दिया। जब तक हनुमानजी लंका नहीं पहुचें तब तक शनिदेव उसी जेल में कैद रहे। जब हनुमान सीता मैया की खोज में लंका में आए तब मां जानकी को खोजते-खोजते उन्हें भगवान् शनि देव जेल में कैद मिले। हनुमानजी ने तब शनि भगवान को कैद से मुक्त करवाया। मुक्ति के बाद उन्होंने हनुनुमानजी का धन्यवाद दिया और उनके भक्तों पर विशेष कृपा बनाए रखने का वचन दिया।
 
7. शनिदेव के अन्य नाम : यमाग्रज, छायात्मज, नीलकाय, क्रुर कुशांग, कपिलाक्ष, अकैसुबन, असितसौरी और पंगु इत्यादि। 
 
8. शरीर में सभी नौ ग्रहों के तत्व मौजूद हैं। ग्रह और देव में फर्क होता है, लेकिन देवी या देवता ग्रहों के गृहपति माने गए हैं। इसीलिए प्राचीनकाल में सभी के कार्य नियुक्त कर दिए गए थे। मान्यता है कि सूर्य राजा, बुध मंत्री, मंगल सेनापति, शनि न्यायाधीश और राहु-केतु प्रशासक हैं। इसी प्रकार गुरु अच्छे मार्ग के प्रदर्शक, चंद्र माता और मन का प्रदर्शक, शुक्र है- पति के लिए पत्नी और पत्नी के लिए पति तथा वीर्य बल। जब समाज में कोई व्यक्ति अपराध करता है तो शनि के आदेश के तहत राहु और केतु उसे दंड देने के लिए सक्रिय हो जाते हैं। शनि की कोर्ट में दंड पहले दिया जाता है, बाद में मुकदमा इस बात के लिए चलता है कि आगे यदि इस व्यक्ति के चाल-चलन ठीक रहे तो दंड की अवधि बीतने के बाद इसे फिर से खुशहाल कर दिया जाए या नहीं।
 
9. शनिग्रह के दुष्प्रभाव से बचने के लिए सर्वप्रथम हनुमानजी की पूजा करें और फिर भगवान भैरव की उपासना करें। शनि की शांति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप भी कर सकते हैं। तिल, उड़द, भैंस, लोहा, तेल, काला वस्त्र, काली गौ, और जूता दान देना चाहिए। कौवे को प्रतिदिन रोटी खिलावे। छायादान करें, अर्थात कटोरी में थोड़ा-सा सरसो का तेल लेकर अपना चेहरा देखकर शनि मंदिर में अपने पापो की क्षमा माँगते हुए रख आएं। दांत साफ रखें। नशा न करें। पेट साफ रखें। अंधे-अपंगों, सेवकों और सफाईकर्मियों से अच्छा व्यवहार रखें। 
 
10. महाराष्ट्र का शिंगणापुर गांव का शनि मंदिर। मध्यप्रदेश के ग्वालियर के पास शनिश्चरा मंदिर। उत्तरप्रदेश के कोशी के पास कौकिला वन में सिद्ध शनि देव का मंदिर।
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