मोक्ष और मुक्ति में क्या है फर्क?
हर व्यक्ति अपने परिवार के मृतकों की मुक्ति या मोक्ष की कामना करता है। कई दफे मुक्ति और मोक्ष को एक ही मान लिया जाता है। सामान्यत: यह अर्थ निकाला जाता है कि जन्म-मरण से छुटकारा मिलना ही मुक्ति या मोक्ष है। आओ जानते हैं दोनों के बीच के फर्क को।
मुक्ति : जब कोई सामान्य व्यक्ति मरता है तो उसकी सद्गति के लिए श्राद्ध या तर्पण करते हैं। कहते हैं कि कर्मों के अनुसार व्यक्ति यदि पशु, पक्षी या प्रेत आदि बन गया है तो उससे मुक्त होकर वह पुन: मनुष्य योनी में आ जाए या देवलोक चला जाए। इसके लिए गया में श्राद्ध कर्म किया जाता है। अंतिम कर्म ब्रह्मकपाली में होता है। जैसे कोई रोग से मुक्ति हो जाए, कोई बुरी योनी से मुक्त हो जाए या कोई नरक से मुक्त हो जाए यही मुक्ति का अर्थ है परंतु मोक्ष इससे भी बढ़कर है।
मोक्ष : मोक्ष की धारणा वैदिक ऋषियों से आई है। भगवान बुद्ध को निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त करने के लिए अपना पूरा जीवन साधना में बिताना पड़ा। महावीर को कैवल्य (मोक्ष) प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या करनी पड़ी और ऋषियों को समाधि (मोक्ष) प्राप्त करने के लिए योग और ध्यान की कठिन साधनाओं को पार करना पड़ता है। अत: सिद्ध हुआ कि मोक्ष को प्राप्त करना बहुत ही कठिन है। मोक्ष प्राप्त करने से व्यक्ति जन्म मरण के चक्र से छुटकर भगवान के समान हो जाता है। मोक्ष मिलना आसान नहीं। दुनिया में सब कुछ आसानी से मिल सकता है, लेकिन खुद को पाना आसान नहीं। खुद को पाने का मतलब है कि सभी तरह के बंधनों से मुक्ति।
मौत के बाद नहीं मिलता है मोक्ष : यह आम धारणा है कि मरकर मिल जाती है मुक्ति। मरकर इस जन्म के कष्टों से मिल जाती होगी मुक्ति, लेकिन फिर से जन्म लेकर व्यक्ति को नए सांसारिक चक्र में पड़ना होता है। प्रभु की कृपा से व्यक्ति के कष्ट दूर हो सकते हैं, दूसरा जन्म मिल सकता है, लेकिन मोक्ष नहीं। मोक्ष के लिए व्यक्ति को खुद ही प्रयास करने होते हैं। प्रभु उन प्रयासों में सहयोग कर सकते हैं।
मोक्ष क्या है : मोक्ष एक ऐसी दशा है जिसे मनोदशा नहीं कह सकते। इस दशा में न मृत्यु का भय होता है न संसार की कोई चिंता। सिर्फ परम आनंद। परम होश। परम शक्तिशाली होने का अनुभव। मोक्ष समयातीत है जिसे समाधि कहा जाता है।
मोक्ष का अर्थ सिर्फ जन्म और मरण के बंधन से मुक्त हो जाना ही नहीं है। बहुत से भूत-प्रेत और देव आत्माएं हैं जो हजारों या सैकड़ों वर्षों तक जन्म नहीं लेती लेकिन उनमें वह सभी वृत्तियां विद्यमान रहती है जो मानव में होती है। भूख, प्यास, सत्य असत्य, धर्म अधर्म, न्याय अन्याय आदि। सिद्धि प्राप्त करना मोक्ष या समाधि प्राप्त करना नहीं है। यह ई्श्वर से साक्षात्कार करना भी नहीं है।
ध्यान को छोड़कर संसार में अभी तक ऐसा कोई मार्ग नहीं खोजा गया जिससे समाधि या मोक्ष पाया जा सके। लोग भक्ति की बात जरूर करते हैं लेकिन भक्ति भी ध्यान का एक प्रकार है। अब सवाल यह उठता है कि कौन सी और किस की भक्ति? यह खोजना जरूरी है। गीता में जिन मार्गो की चर्चा की गई है वह सभी मार्ग साक्षित्व ध्यान तक ले जाकर छोड़ देते हैं। योग के सभी आसन ध्यान लगाने के लिए होते हैं। धन्यवाद।