• Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. सनातन धर्म
  3. आलेख
  4. sixth sense technology
Written By
Last Updated : गुरुवार, 16 मार्च 2017 (12:08 IST)

छठी इंद्री को जाग्रत करने के 5 तरीके...

छठी इंद्री को जाग्रत करने के 5 तरीके...। sixth sense technology - sixth sense technology
छठी इंद्री को अंग्रेजी में सिक्स्थ सेंस कहते हैं। इसे परामनोविज्ञान का विषय भी माना जाता है। असल में यह संवेदी बोध का मामला है। छठी इंद्री के बारे में आपने बहुत सुना और पढ़ा होगा लेकिन यह क्या होती है, कहां होती है और कैसे इसे जाग्रत किया जा सकता है यह जानना भी जरूरी है। सिक्स्थ सेंस को जाग्रत करने के लिए वेद, उपनिषद, योग आदि हिन्दू ग्रंथों में अनेक उपाय बताए गए हैं। आओ जानते हैं इसे कैसे जाग्रत किया जाए और इसके जाग्रत करने का परिणाम क्या होगा।
कहां होती है छठी इंद्री : मस्तिष्क के भीतर कपाल के नीचे एक छिद्र है, उसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं, वहीं से सुषुन्मा रीढ़ से होती हुई मूलाधार तक गई है। सुषुन्मा नाड़ी जुड़ी है सहस्रकार से। इड़ा नाड़ी शरीर के बायीं तरफ स्थित है तथा पिंगला नाड़ी दायीं तरफ। दोनों के बीच स्थित है छठी इंद्री। यह इंद्री सभी में सुप्तावस्था में होती है। 
 
छठी इंद्री जाग्रत होने से क्या होता है?
व्यक्ति में भविष्य में झांकने की क्षमता का विकास होता है। अतीत में जाकर घटना की सच्चाई का पता लगाया जा सकता है। मीलों दूर बैठे व्यक्ति की बातें सुन सकते हैं। किसके मन में क्या विचार चल रहा है इसका शब्दश: पता लग जाता है। एक ही जगह बैठे हुए दुनिया की किसी भी जगह की जानकारी पल में ही हासिल की जा सकती है। छठी इंद्री प्राप्त व्यक्ति से कुछ भी छिपा नहीं रह सकता और इसकी क्षमताओं के विकास की संभावनाएं अनंत हैं।
 
यह इंद्री आपकी हर तरह की मदद करने के लिए तैयार है, बशर्ते आप इसके प्रति समर्पित हों। यह किसी के भी अतीत और भविष्य को जानने की क्षमता रखती है। आपके साथ घटने वाली घटनाओं के प्रति आपको सजग कर देगी, जिस कारण आप उक्त घटना को टालने के उपाय खोज लेंगे। इसके द्वारा मन की एकाग्रता, वाणी का प्रभाव व दृष्टि मात्र से उपासक अपने संकल्प को पूर्ण कर लेता है। इससे विचारों का संप्रेषण (टेलीपैथिक), दूसरे के मनोभावों को ज्ञात करना, अदृश्य वस्तु या आत्मा को देखना और दूरस्थ दृश्यों को जाना जा सकता है। इस इंद्री के पूर्णत: जाग्रत व्यक्ति स्वयं की ही नहीं दूसरों की बीमारी दूर करने की क्षमता भी हासिल कर सकता है।
 
क्या कहते हैं वैज्ञानिक : वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में स्पष्ट किया है कि छठी इंद्रिय की बात सिर्फ कल्पना नहीं, वास्तविकता है, जो हमें किसी घटित होने वाली घटना का पूर्वाभास कराती है। यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के रॉन रेसिक ने एक अध्ययन कर पाया कि छठी इंद्रिय के कारण ही हमें भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास होता है। रेसिक के अनुसार छठी इंद्रिय जैसी कोई भावना तो है और यह सिर्फ एक अहसास नहीं है। वास्तव में होशो-हवास में आया विचार या भावना है, जिसे हम देखने के साथ ही महसूस भी कर सकते हैं। और यह हमें घटित होने वाली बात से बचने के लिए प्रेरित करती है। करीब एक-तिहाई लोगों की छठी इंद्रिय काफी सक्रिय होती है।

copyrighted to webdunia hindi
-अनिरुद्ध जोशी शतायु 

1.प्राणायम के अभ्यास से : प्राणायाम सबसे उत्तम उपाय इसलिए माना जाता है क्योंकि हमारी दोनों भौहों के बीच छठी इंद्री होती है। सुषुम्ना नाड़ी के जाग्रत होने से ही छठी इंद्री जाग्रत हो जाती है। यही छठी इंद्री है। आप अपनी छठी इंद्री को प्राणायम के माध्यम से छह माह में जाग्रत कर सकते हैं, लेकिन छह माह के लिए आपको दुनियादारी से अलग होना भी जरूरी है।
इड़ा नाड़ी शरीर के बायीं तरफ स्थित है तथा पिंगला नाड़ी दायीं तरफ अर्थात इड़ा नाड़ी में चंद्र स्वर और पिंगला नाड़ी में सूर्य स्वर स्थित रहता है। सुषुम्ना मध्य में स्थित है, अतः जब हमारी नाक के दोनों स्वर चलते हैं तो माना जाता है कि सुषम्ना नाड़ी सक्रिय है। इस सक्रियता से ही सिक्स्थ सेंस जाग्रत होता है। इसकी सक्रियता बढ़ाने के लिये निरंतर प्राणायाम करते रहना चाहिए। लेकिन शर्त यह कि उसी के साथ ही यम और नियम का पालन करना भी जरूरी है।
 
इड़ा, पिंगला और सुषुन्मा के अलावा पूरे शरीर में हजारों नाड़ियां होती हैं। उक्त सभी नाड़ियों का शुद्धि और सशक्तिकरण सिर्फ प्राणायाम और आसनों से ही होता है। शुद्धि और सशक्तिकरण के बाद ही उक्त नाड़ियों की शक्ति को जाग्रत किया जा सकता है।
 
प्राणायम अभ्यास का स्थान : अनुलोम और विलोम प्राणायम करें। अभ्यास के लिए सर्वप्रथम जरूरी है साफ और स्वच्छ वातावरण, जहां फेफड़ों में ताजी हवा भरी जा सके अन्यथा आगे नहीं बढ़ा जा सकता। शहर का वातावरण कुछ भी लाभदायक नहीं है, क्योंकि उसमें शोर, धूल, धुएँ के अलावा जहरीले पदार्थ और कार्बन डॉक्साइट निरंतर आपके शरीर और मन का क्षरण करती रहती है। स्वच्छ वातावरण में सभी तरह के प्राणायाम को नियमित करना आवश्यक है।

2. ध्यान के अभ्यास से : भृकुटी के मध्य निरंतर और नियमित ध्यान करते रहने से आज्ञाचक्र जाग्रत होने लगता है जो हमारे सिक्स्थ सेंस को बढ़ाता है।  कहते हैं कि गहरे ध्यान प्रयोग से यह स्वत: ही जाग्रत हो जाती है। प्रतिदिन 40 मिनट का ध्यान इसमें सहायक सिद्ध हो सकता है। 40 मिनट के ध्यान में आपको निर्विचार दशा के लक्ष्य को प्राप्त करना होता है। निर्विचार दशा का अर्थ होता है कि आपके मन और मस्तिष्क में ऐसे किसी भी प्रकार के विचार न हो जो आपको परेशान करते हों। मस्तिष्क को क्षति पहुंचाते हों।
हमारे मन और मस्तिष्क में एक साथ असंख्य कल्पना और विचार चलते रहते हैं। इससे मन-मस्तिष्क में कोलाहल-सा बना रहता है। हम नहीं चाहते हैं फिर भी यह चलता रहता है। आप लगातार सोच-सोचकर स्वयं को कम और कमजोर करते जा रहे हैं। ध्यान अनावश्यक कल्पना व विचारों को मन से हटाकर शुद्ध और निर्मल मौन में चले जाना है। जब आप यह स्थिति प्राप्त कर लेते हैं तो स्वत: ही आपकी छठी इंद्री जाग्रत हो जाती है।
 
कैसे करें ध्यान : भृकुटी पर ध्यान लगाकर निरंतर मध्य स्थित अँधेरे को देखते रहें और यह भी जानते रहें कि श्वास अंदर और बाहर हो रही है। मौन ध्यान और साधना मन और शरीर को मजबूत तो करती ही है, मध्य स्थित जो अँधेरा है वही काले से नीला और नीले से सफेद में बदलता जाता है। सभी के साथ अलग-अलग परिस्थितियां निर्मित हो सकती हैं।
 
मौन से मन की क्षमता का विकास होता जाता है जिससे काल्पनिक शक्ति और आभास करने की क्षमता बढ़ती है। इसी के माध्यम से पूर्वाभास और साथ ही इससे भविष्य के गर्भ में झाँकने की क्षमता भी बढ़ती है। यही सिक्स्थ सेंस के विकास की शुरुआत है।
 
अंतत: हमारे पीछे कोई चल रहा है या दरवाजे पर कोई खड़ा है, इस बात का हमें आभास होता है। यही आभास होने की क्षमता हमारी छठी इंद्री के होने की सूचना है। जब यह आभास होने की क्षमता बढ़ती है तो पूर्वाभास में बदल जाती है। मन की स्थिरता और उसकी शक्ति ही छठी इंद्री के विकास में सहायक सिद्ध होती है।

3.सेल्फ हिप्नोटिज्म से : मेस्मेरिज्म या हिप्नोटिज्म जैसी अनेक विद्याएं इस छठी इंद्री को जाग्रत करने का सरल और शॉर्टकट रास्ता है लेकिन इसके खतरे भी हैं। हिप्नोटिज्म को सम्मोहन कहते हैं। सम्मोहन विद्या को ही प्राचीन समय से 'प्राण विद्या' या 'त्रिकालविद्या' के नाम से पुकारा जाता रहा है। आत्म सम्मोहन को सेल्फ हिप्नोटिज्म कहते हैं। आत्म सम्मोहन की शक्ति प्राप्त करने के लिए अनेक तरीके इस्तेमाल किए जाते हैं। 
आदिम आत्म चेतन मन ही है सिक्स्थ सेंस : मन के कई स्तर होते हैं। उनमें से एक है आदिम आत्म चेतन मन। आदिम आत्म चेतन मन न तो विचार करता है और न ही निर्णय लेता है। उक्त मन का संबंध हमारे सूक्ष्म शरीर से होता है। यह मन हमें आने वाले खतरे का संकेत या उक्त खतरों से बचने के तरीके बताता है। रोग की पूर्व सूचना इस मन से ही प्राप्त होती है, किंतु व्यक्ति उसे समझ नहीं पाता है। यही सिक्स्थ सेंस है। अर्थात पूर्वाभास हो जाना।
 
यह मन लगातार हमारी रक्षा करता रहता है। हमें होने वाली बीमारी की यह मन छह माह पूर्व ही सूचना दे देता है और यदि हम बीमार हैं तो यह हमें स्वस्थ रखने का प्रयास करता है। बौद्धिकता और अहंकार के चलते हम उक्त मन की सुनी-अनसुनी कर देते हैं। उक्त मन को साधना ही आत्म सम्मोहन है।
 
सेल्फ हिप्नोटिज्म कैसे करें?
वैसे इस मन को साधने के बहुत से तरीके या विधियां हैं। लेकिन सीधा रास्ता है कि प्राणायम और प्रत्याहार से धारणा को को साधना। जब आपका मन स्थिर चित्त हो, एक ही दिशा में गमन करे और इसका अभ्यास गहराने लगे तब आप अपनी इंद्रियों में ऐसी शक्ति का अनुभव करने लगेंगे जिसको आम इंसान अनुभव नहीं कर सकता। इसको साधने के लिए त्राटक भी कर सकते हैं त्राटक भी कई प्रकार से किया जाता है। ध्यान, प्राणायाम और नेत्र त्राटक द्वारा आत्म सम्मोहन की शक्ति को जगाया जा सकता है। 
 
आत्म सम्मोहन की अवस्था में शरीर के जिस भी अंग में आपको रोग या दर्द हो आप अपना ध्यान वहाँ लगाकर वहाँ सकारात्मक ऊर्जा का संचारकर उसकी स्वयं ही चिकित्सा कर सकते हैं। लगातार उसके स्वस्थ होते जाने के बारे में आत्म सम्मोहन की अवस्था में कल्पना करने से उक्त स्थान पर रोग में लाभ मिलने लगता है। यह मन स्वत: ही बताता है कि उक्त रोग में कौन सी दवा या चिकित्सा लाभप्रद सिद्ध होगी और इसका इलाज कैसे किया जा सकता है।
 
अन्य तरीके : कुछ लोग अंगूठे को आंखों की सीध में रखकर तो, कुछ लोग स्पाइरल (सम्मोहन चक्र), कुछ लोग घड़ी के पेंडुलम को हिलाते हुए, कुछ लोग लाल बल्ब को एकटक देखते हुए और कुछ लोग मोमबत्ती को एकटक देखते हुए भी उक्त साधना को करते हैं, लेकिन यह कितना सही है यह हम नहीं जानते।

4.त्राटक क्रिया से : त्राटक क्रिया से भी इस छठी इंद्री को जाग्रत कर सकते हैं। जितनी देर तक आप बिना पलक गिराए किसी एक बिंदु, क्रिस्टल बॉल, मोमबत्ती या घी के दीपक की ज्योति पर देख सकें देखते रहिए। इसके बाद आंखें बंद कर लें। कुछ समय तक इसका अभ्यास करें। इससे आप की एकाग्रता बढ़ेगी और धीरे धीरे छठी इंद्री जाग्रत होने लगेगी।
सावधानी : त्राटक के अभ्यास से आंखों और मस्तिष्क में गरमी बढ़ती है, इसलिए इस अभ्यास के तुरंत बाद नेती क्रिया का अभ्यास करना चाहिए। आंखों में किसी भी प्रकार की तकलीफ हो तो यह क्रिया ना करें। अधिक देर तक एक-सा करने पर आंखों से आंसू निकलने लगते हैं। ऐसा जब हो, तब आंखें झपकाकर अभ्यास छोड़ दें। यह क्रिया भी जानकार व्यक्ति से ही सीखनी चाहिए, क्योंकि इसके द्वारा आत्मसम्मोहन घटित हो सकता है।
 
त्राटक के अभ्यास से अनेक प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती है। सम्मोहन और स्तंभन क्रिया में त्राटक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह स्मृतिदोष भी दूर करता है और इससे दूरदृष्टि बढ़ती है।
 
 

5.खुद के आभास और बोध को बढ़ाएं : यदि हमें इस बात का आभास होता है कि हमारे पीछे कोई चल रहा है या दरवाजे पर कोई खड़ा है, तो यह क्षमता हमारी छठी इंद्री के होने की सूचना है। आंतरिक संकेत को सरल रूप में पूर्वाभास भी कहा जा सकता है। इस संकेत के माध्यम से कोई व्यक्ति किसी घटना के होने से पूर्व ही उसके बारे में जान लेता है अथवा किसी घटना के दौरान ही उसे इस बात का आभास हो जाता है कि इसका परिणाम क्या होने वाला है।
त्वरित निर्णय लेने वाले कई लोग, आग बुझाने वाले दल के सदस्य, इमरजेंसी मेडिकल स्टाफ, खिलाड़ियों, सैनिकों और जीवन-मृत्यु की परिस्थितियों में तत्काल निर्णय लेने वाले कई व्यक्तियों में छटी इंद्री आम लोगों की अपेक्षा ज्यादा जाग्रत रहती है। कोई उड़ता हुआ पक्षी अचानक यदि आपकी आंखों में घुसने लगे तो आप तुरंत ही बगैर सोचे ही अपनी आंखों को बचाने लग जाते हैं यह कार्य भी छटी इंद्री से ही होता है।
 
ऐसा कई बार देखा गया है कि कई लोगों ने अंतिम समय में अपनी बस, ट्रेन अथवा हवाई यात्रा को कैंसिल कर दिया और वे चमत्कारिक रूप से किसी दुर्घटना का शिकार होने से बच गए। जो लोग अपनी इस आत्मा की आवाज को नहीं सुना पाते वह पछताते हैं। घटनाओं पर पछताने की जगह व्यक्ति को अपनी पूर्वाभास की क्षमता को विकसित करना चाहिए ताकि पछतावे की कोई स्थिति उत्पन्न ही न हो।

यदि आप अपने इस अहसास या बोध पर गहराई से ध्यान देने लगेंगे तो आपको पता चलेगा कि आप पहले की अपेक्षा अब अच्छे से पूर्वाभाष करने लगे हैं। जैसे जैसे अभ्यास गहराएगा आपकी छठी इंद्री जाग्रत होने लगेगी। आप अपने  अहसास को बढ़ाते जाएं। जब यह आभास होने की क्षमता बढ़ती है तो पूर्वाभास में बदल जाती है। मन की यह स्थिरता और उसकी शक्ति ही छठी इंद्री के विकास में सहायक सिद्ध होती है।