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Written By अवनीश कुमार
Last Modified: लखनऊ/ कानपुर , गुरुवार, 18 मई 2017 (20:43 IST)

प्रधानमंत्रीजी, इलाज नहीं तो दे दें मौत!

प्रधानमंत्रीजी, इलाज नहीं तो दे दें मौत! - Prime Minister Narendra Modi
लखनऊ/ कानपुर। उत्तरप्रदेश के कानपुर में लाइलाज रोग से पीड़ित मां-बेटी अब हार चुकी है और कहीं से कोई सहारा न मिलते देख प्रधानमंत्री को खत लिख है और कहा कि अगर सरकार व केंद्र सरकार इलाज नहीं करा सकती तो उन्हें मारने की अनुमति दे दी, जिससे इस लाचार जिंदगी से छुटकारा मिल सके। 
 
प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तरप्रदेश के कानपुर के यशोदा नगर की रहने वाली 22 साल की अनामिका और उसकी मां शशि मस्क्युलर डिस्ट्रॉफी नाम की बीमारी से ग्रसित है। बेटी ने बताया कि 2002 में इसी रोग को देखते हुए पिता की हार्टअटैक से मौत हो गई। इसके बाद रिश्तेदारों से लेकर परिवारवालों ने नाता तोड़ लिया। उन्होंने बताया कि इसकी जानकारी 1995 में उस समय हुई जब मां को अचानक चलने-फिरने और काम करने में परेशानी होने लगी। हमारे डॉक्टर मुकुल ने टेस्ट कराने को कहा। रिपोर्ट में यह बीमारी निकली डॉक्टरों का कहना है कि इसका भारत में कोई इलाज नहीं है। 
 
बस एक फिजियोथैरेपी सहारा है, जिससे कुछ आराम मिल सकता है। उसी समय डॉक्टर ने मेरे अंदर भी इस बीमारी के होने के संकेत दे दिए थे। साथ ही कहा था कि आगे चलकर मुझे ज्यादा दिक्कत हो सकती है। पिता की मौत के बाद मां की बराबर देख-रेख करती रही। तभी 2006 के बाद मेरे अंदर भी बीमारी के लक्षण आने लगे। हाथ-पैर काम करना बंद हो गए। कॉलेज में सीढ़ियां चढ़ाना मुश्किल होने लगा। 
 
किसी तरह मैंने बीकॉम किया, लेकिन उसके बाद से मैं पूरी तरह से बिस्तर पर आ गई। कई डॉक्टर से इलाज कराया कुछ असर नहीं हुआ। पिता के देहांत के बाद घर की आर्थिक स्थिति चरमरा गई। आज ये हालात हैं कि रिश्तेदारों ने मुंह मोड़ लिया। अब हम मां-बेटी की हालत ये है कि बाथरूम तक जाने के लिए सहारा चाहिए, जिसमें पड़ोसी मदद करते हैं और वही खाना बनाकर देते हैं। अब इस जिल्लत भरी इस जिंदगी से परेशान होकर अनामिका ने 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर मदद की गुहार लगाई थी। लिखा था कि हमारे लिए इलेक्ट्रॉनिक बेड और व्हील चेयर के साथ नौकरी दी जाए ताकि हमें दूसरों पर निर्भर न रहना पड़े। 
 
खत का कोई जवाब आता न देख दोबारा खत लिखा जिसमें लिखा गया कि अगर मांग नहीं पूरी कर सकते तो इच्छामृत्यु की अनुमति दे दी जाए। इससे इस जिंदगी से छुटकारा मिल सके। अगस्त 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सुध ले ली। मुख्यमंत्री ने 5 अगस्त 2016 को विवेकाधीन कोष से 50 हजार रुपए की आर्थिक मदद दी, उसके बाद हमारी कोई सुध नहीं ली। हमारी आर्थिक स्थिति को देखते हुए डॉक्टर अभिषेक मिश्रा पिछले पांच साल से मुफ्त इलाज कर रहे हैं। दवाई तक का भी पैसा नहीं लेते।
 
न्यूरोलोजिस्ट डॉ. अजय सिंह के मुताबिक मस्कुलर डिस्ट्रोफी एक तरह की जेनेटिक (आनुवंशिक) बीमारी है, जो मरीज से उसकी संतान को हो जाती है। देश में प्रति दो हजार में से किसी एक को यह बीमारी होती है। अगर समय रहते मरीज का सही से इलाज शुरू न हो, तो उसकी मौत होने की आशंका बढ़ जाती हैं। मेल चाइल्ड में तो इस बीमारी की पहचान एक उम्र के बाद हो जाती है, लेकिन महिलाओं में शादी के बाद इसके बारे में जानकारी हो पाती है। जब तक महिलाओं में इस बीमारी का इलाज शुरू हो पाता है तब तक बहुत देर हो जाती है।
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