शनिवार, 21 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. सनातन धर्म
  3. रामायण
  4. 5 most powerful Vanara of Ramayana period
Written By WD Feature Desk
Last Updated : मंगलवार, 3 सितम्बर 2024 (12:13 IST)

Ramayan: बजरंगबली को छोड़कर रामायण काल के 5 सबसे शक्तिशाली वानर

Ramayan: बजरंगबली को छोड़कर रामायण काल के 5 सबसे शक्तिशाली वानर - 5 most powerful Vanara of Ramayana period
Ramayan: भगवान श्रीराम ने वानर सेना के दम पर ही रावण की सेना को हरा कर लंका पर कब्जा कर लिया था। उस काल में कपि जाति के वानर रहते थे जो मनुष्य से कुछ भिन्न थे। इन वानरों में अपार शक्ति होती थी। इन वानरों में हनुमानजी सबसे शक्तिशाली हैं परंतु हम इन्हें छोड़कर अन्य 5 वानरों की बात कर रहे हैं। आओ जानते हैं कि और कौनसे वानर सबसे शक्तिशाली थे।
 
1. बाली : सुग्रीव का भाई, अंगद का पिता, अप्सरा तारा का पति और वानरश्रेष्ठ ऋक्ष का पुत्र बाली बहुत ही शक्तिशाली था। देवराज इंद्र का धर्मपुत्र और किष्किंधा का राजा बाली जिससे भी लड़ता था लड़ने वाला कितना ही शक्तिशाली हो उसकी आधी शक्ति बाली में समा जाती थी और लड़ने वाला कमजोर होकर मारा जाता था। रामायण के अनुसार बाली को उसके धर्मपिता इंद्र से एक स्वर्ण हार प्राप्त हुआ था। इसी हार की शक्ति के कारण बाली लगभग अजेय था। उसने कई युद्ध लड़े और सभी में वह जीता। 10 हजार हाथियों के बल वाले दुंदुभि का उसी ने वध कर दिया था। रावण को उसने बंदी बना लिया था। श्रीराम ने सुग्रीव की सहायता के लिए बाली को एक वृक्ष के पीछे छिपकर मार दिया था। जिसका बदला बाली ने द्वापर युग में लिया था।ALSO READ: रामायण और महाभारत के योद्धा अब कलयुग में क्या करेंगे?
 
2. सुग्रीव : वानरराज सुग्रीव सूर्य का पुत्र, बाली का भाई और अंगद का चाचा था। सुग्रीव की पत्नी का नाम रूमा था तो बाली की पत्नी वानर वैद्यराज सुषेण की पुत्री तारा थी। तारा एक अप्सरा थी। बाली ने एक घटना के बाद सुग्रीव को बहुत मारा। उसकी संपत्ति और स्त्री को हड़प लिया। सुग्रीव अपनी जान बचाने के लिए ऋष्यमूक पर्वत की एक कंदरा में जा छुपा। जहां पर बाली इसलिए नहीं आ सकता था क्योंकि यह मतंग ऋषि का क्षेत्र था। एक श्राप के चलते बाली वहां जाकर मारा जाता। ऋष्यमूक पर्वत पर्वत पर ही सुग्रीव की मुलाकात वानरराज केसरी से मुलाकात हुई। केसरी ने सुग्रीव की सहायता के लिए अपने पुत्र हनुमानजी को सुग्रीव के पास छोड़ दिया। हनुमानजी जब राम से मिले तो उन्होने राम को सुग्रीव से मिलाया। इस तरह इस पर्वन पर एक वानर सेना का गठन हुआ।
3. अंगद : सुग्रीव के भाई बाली या बालि के पुत्र अंगद की माता का नाम तारा था जो एक अप्सरा थीं। बाली के कहने पर ही अंगद ने सुग्रीव के साथ रहकर प्रभु श्रीराम की सेवा की। रावण ने भारी सभा में अंगद का अपमान किया तो अंगद ने भी रावण को खूब खरी खोटी सुनाई जिसके चलते रावण आगबबूला हो गया। तब अंगद ने कहा कि मैं प्राण की एक क्रिया निश्चित कर रहा हूं, यदि चरित्र की उज्ज्वलता है तो मेरा यह पग है इस पग को यदि कोई एक क्षण भी अपने स्थान से दूर कर देगा तो मैं उस समय में माता सीता को त्याग करके राम को अयोध्या ले जाऊंगा। अंगद ने प्राण की क्रिया की और उनका शरीर विशाल एवं बलिष्‍ठ बन गया। तब उन्होंने भूमि पर अपना पैर स्थिर कर दिया। राजसभा में कोई ऐसा बलिष्ठ नहीं था जो उसके पग को एक क्षण भर भी अपनी स्थिति से दूर कर सके। अंगद का पग जब एक क्षण भर दूर नहीं हुआ तो रावण उस समय स्वतः चला परन्तु रावण के आते ही उन्होंने कहा कि यह अधिराज है, अधिराजों से पग उठवाना सुन्दर नहीं है। उन्होंने अपने पग को अपनी स्थली में नियुक्त कर दिया और कहा कि हे रावण! तुम्हें मेरे चरणों को स्पर्श करना निरर्थक है। यदि तुम राम के चरणों को स्पर्श करो तो तुम्हारा कल्याण हो सकता है। रावण मौन होकर अपने स्थल पर विराजमान हो गया।
 
4. वानर द्वीत: द्वीत या द्विविद नाम का एक वानर भयंकर ही शक्तिशाली था। वानरों के राजा सुग्रीव के मन्त्री थे और मैन्द के भाई थे। लंबी उम्र के कारण यह महाभारत काल के भौमासुर यानी नरकासुर और प्रौंड कृष्‍ण का मित्र भी था। इनमें दस हजार हाथियों का बल था। यह किष्किन्धा की एक गुफा में अपने भाई के साथ रहता था। 
 
रामायण काल में यह वह रामजी की वानर सेना में था। दिन के युद्ध के बाद वह रात्रि में चुपचाप से लंका में प्रवेश कर जाता था। रात्रि में रावण शिवजी का आराधना करता था तो वह उस आराधना में खलल डालता था। रावण उससे बहुत परेशान हो गया। तो उसने श्रीराम को पत्र लिखकर कहा कि तुम्हारे यहां का वानर रात्रि में आकर मेरी शिव पूजा में विघ्न डालता है। जब शाम के बाद युद्ध समाप्त हो जाता है तो फिर यह उपद्रव क्यों? यह तो युद्ध के नियम के विरूद्ध है। क्राथ, दधीमुख, मैन्द आदि और भी कई शक्तिशाली वानर थे। 
 
यह पत्र पढ़कर रामजी सुग्रीव से कहते हैं कि पता करो कि वह वानर कौन है। फिर राम जी आंख बंद करते हैं तो उन्हें सब पता चल जाता है। रामजी ने उस वानर को बुलाकर समझाया कि अब रात्रि में लंका नहीं जाना है और उपद्रव नहीं करना है। लेकिन वह द्वीत माना ही नहीं। तब राम ने कहा कि इसे अब युद्ध नहीं लड़ना इसे किष्किंधा वापस भेज दो। उस वानर को युद्ध शिविर से निकाल दिया परंतु वह वानर किष्किंधा गया ही नहीं। उसने सुग्रीव और हनुमानजी से ही बेर पाल लिया। उसने समझा कि इन्होंने ही मेरी शिकायत की है। महाभारत काल में उसने बलराम और हनुमानजी से युद्ध किया था। बाद में बलरामजी ने उसका वध कर दिया था।ALSO READ: Ramayan : क्या मोहनजोदड़ो और रामायण काल एक ही था?
 
5. केसरी: हनुमानजी के पिता महान योद्धा 1,00000 से ज्यादा वानर सेना के साथ युद्ध कर रहे थे। उनकी पत्नी का नाम अंजनी था जोकि पूर्व जन्म में स्वर्ग की अप्सरा पुंजकास्थलि थीं। केसरी का राज्य बहुत शक्तिशाली राज्य था।
- Anirudh Joshi