श्री राम रक्षा स्तोत्र एक बहुत ही शक्तिशाली और चमत्कारी प्रार्थना है। बुध कौशिक ऋषि (Budh koushik Rishi) द्वारा रचित श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ (ram raksha stotra) प्रभु श्री राम का स्तुति गान है। इसमें प्रभु श्री राम के अनेक नामों का गुणगान किया है। राम रक्षा स्त्रोत स्वयं एक रक्षा कवच है और इसका नित्य पाठ करने से अत्यधिक लाभ और शुभ फल जल्द ही मिलने लगते हैं। आइए यहां पढ़ें संपूर्ण पाठ (Shri Ram Rakshastotram) एवं जीवन में होने वाले 10 रहस्यमयी बदलाव-
				  																	
									  
	 
	राम रक्षा स्तोत्र का पाठ-Ram Raksha Stotram
	 
	विनियोगः
	 
	अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः। श्री सीतारामचंद्रो देवता । अनुष्टुप् छंदः। सीता शक्तिः। श्रीमान हनुमान् कीलकम् । श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः ।
				  
	 
	अथ ध्यानम्:
	 
	ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् । वामांकारूढसीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं नानालंकार दीप्तं दधतमुरुजटामंडलं रामचंद्रम ।
				  						
						
																							
									  
	 
	चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ।
	एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥1॥
				  																													
								 
 
 
  
														
																		 							
																		
									  
	ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
	जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमंडितम् ॥2॥
				  																	
									  
	सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरांतकम् ।
	स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥3॥
				  																	
									  
	रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
	शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ॥4॥
				  																	
									  
	कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती ।
	घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ॥5॥
				  																	
									  
	जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवंदितः ।
	स्कंधौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥6॥
				  																	
									  
	करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ।
	मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ॥7॥
				  																	
									  
	सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः ।
	उरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत् ॥8॥
				  																	
									  
	जानुनी सेतुकृत्पातु जंघे दशमुखान्तकः ।
	पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः ॥9॥
	एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत् ।
				  																	
									  
	स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥10॥
	पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः ।
	न दृष्टुमति शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ॥11॥
				  																	
									  
	रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन् ।
	नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥12॥
				  																	
									  
	जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाऽभिरक्षितम् ।
	यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥13॥
				  																	
									  
	वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।
	अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥14॥
	आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः ।
				  																	
									  
	तथा लिखितवान्प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ॥15॥
	आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम् ।
				  																	
									  
	अभिरामस्रिलोकानां रामः श्रीमान्स नः प्रभुः ॥16॥
	तरुणौ रूप सम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
				  																	
									  
	पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥17॥
	फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
				  																	
									  
	पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥18॥
	शरण्यौ सर्र्र्वसत्त्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
				  																	
									  
	रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥19॥
	आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशावक्षयाशुगनिषंगसंगिनौ ।
				  																	
									  
	रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम् ॥20॥
	सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
				  																	
									  
	गच्छन्मनोरथान्नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः ॥21॥
	रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
	काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः ॥22॥
				  																	
									  
	वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः ।
	जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः ॥23॥
	इत्येतानि जपन्नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयाऽन्वितः ।
				  																	
									  
	अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः ॥24॥
	रामं दूवार्दलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् ।
				  																	
									  
	स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नराः ॥25॥
	रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं
				  																	
									  
	काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम् ।
	राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्तिं
				  																	
									  
	वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥26॥
	रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे ।
				  																	
									  
	रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥27॥
	श्रीराम राम रघुनन्दनराम राम
	श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
				  																	
									  
	श्रीराम राम रणकर्कश राम राम
	श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥28॥
	श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि
				  																	
									  
	श्रीरामचन्द्रचरणौ वचंसा गृणामि ।
	श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि
	श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥29॥
				  																	
									  
	माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः
	स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः ।
	सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयलुर्नान्यं
				  																	
									  
	जाने नैव जाने न जाने ॥30॥
	दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।
	पुरतो मारुतिर्यस्य तं वंदे रघुनन्दनम् ॥31॥
				  																	
									  
	लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम ।
	कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥32॥
				  																	
									  
	मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
	वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥33॥
				  																	
									  
	कूजन्तं राम रामेति मधुरं मधुराक्षरम् ।
	आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥34॥
				  																	
									  
	आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम् ।
	लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥35॥
				  																	
									  
	भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम् ।
	तर्जनं यमदूतानां राम रामेति गर्जनम् ॥36॥
	रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रामेशं भजे
				  																	
									  
	रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः ।
	रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहं
				  																	
									  
	रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥37॥
	राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
	सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥38॥
				  																	
									  
	 
	॥ श्री बुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं सम्पूर्ण ॥
	 
	जीवन में होंगे ये 10 बदलाव-benefits of reading Rama Raksha Stotra
				  																	
									  
	 
	1. राम रक्षा स्तोत्र का नित्य पाठ करने वाले व्यक्ति के मन में सकारात्मक भाव का संचार होता है और उसके चारों और सुरक्षा का एक घेरा निर्मित हो जाता है।
				  																	
									  
	 
	2. मान्यतानुसार राम रक्षा स्तोत्र का नित्य पाठ करने से श्री हनुमान जी प्रसन्न होकर राम भक्तों की हर तरह से रक्षा करते हैं।
				  																	
									   
	3. कैसे करें सिद्ध- विधिवत रूप से राम रक्षा स्त्रोत का ग्यारह बार पाठ करने के दौरान एक कटोरी में सरसों के कुछ दानें लेकर उन्हें अंगुलियों से घुमाते रहने से वह सिद्ध हो जाते हैं। उक्त दानों को घर में उचित और पवित्र स्थान पर रख दें। यह दानें कोर्ट-कचहरी जाने के दौरान, यात्रा पर जाने के दौरान या किसी एकांत में सोने के दौरान यह दानें आपकी रक्षा करेंगे।
				  																	
									  
	 
	4. कैसे करें पानी को सिद्ध- पानी को सिद्ध करने के लिए राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करते हुए तांबे के बर्तन में पानी भरकर इसे अपने हाथ में पकड़ कर रखें और अपनी दृष्टि पानी में रखें। राम रक्षा स्तोत्रम् के ग्यारह बार किए जाने वाले पाठ से पानी को भी सरसों की तरह सिद्ध किया जा सकता है। इस पानी को औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इस पानी को रोगी को पिलाया जा सकता है। इससे ली जाने वाली औषधि का तेजी से प्रभाव होता है। 
				  																	
									  
	 
	5. राम रक्षा स्तोत्रम् का नित्य पाठ करने से भगवान शिव की भी कृपा प्राप्त होती है क्योंकि इस स्त्रोत की रचना बुध कौशिक ऋषि ने भगवान शंकर के कहने पर ही की थी। भगवान शंकर ने उन्हें इस स्त्रोत की रचना की प्रेरणा स्वप्न में दी थी।
				  																	
									  
	 
	6. नित्य राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से मनुष्य के मन से हर तरह का भय निकल जाता है और वह निर्भिक जीवन जीता है।
				  																	
									  
	 
	7. श्रीरामरक्षास्तोत्रम् के नित्य पाठ करने से मंगल ग्रह का कुप्रभाव भी समाप्त हो जाता है।
	 
				  																	
									  
	 
	8. इसका पाठ करने से प्रभु श्रीराम आपकी हर तरह से रक्षा करते हैं। अपने शरणागत की रक्षा करना उनका धर्म है।
				  																	
									  
	 
	9. राम रक्षा स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करने से व्यक्ति को दीर्घायु, संतान, शांति, विजयी, सुख और समृद्धि प्राप्त होती है।
				  																	
									  
	 
	10. जो व्यक्ति नित्य राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता रहता है वह आने वाली कई तरह की विपत्तियों से बच जाता है।
				  																	
									  
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