जसवंतसिंह की बहू ने खोला वसुंधरा के खिलाफ मोर्चा, बोलीं- वसुंधरा को हराना है...
राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में बगावत के स्वर उठने लगे हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंतसिंह के बेटे मानवेंद्रसिंह और बहू चित्रा सिंह ने भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। चित्रा ने कहा कि वसुंधरा सरकार को उखाड़ फेंकने का वक्त आ गया है।
खबरों के मुताबिक, राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले एक ओर जहां भाजपा राजस्थान में दोबारा सत्ता में वापसी के लिए जोरशोर से प्रचार में जुटी है, वहीं दूसरी ओर पार्टी में बगावत के स्वर भी उठने लगे हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह और बहू चित्रा सिंह ने भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
मानवेंद्र ने 22 सितंबर को भाजपा से अलग स्वाभिमान रैली का ऐलान किया है। सिंह का कहना है कि 22 सितंबर की इस रैली में ही उनकी आगे की राजनीतिक राह का फैसला होगा। स्वाभिमान रैली की तैयारियों की बागडोर चित्रा सिंह संभाल रही हैं। मानवेंद्र अभी प्रदेश की शिव विधानसभा सीट से विधायक हैं।
चित्रा सिंह ने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा, ये जो युद्ध है इसको अब खत्म करने का वक्त आ गया है। ये मौका ईश्वर ने अच्छा दे दिया है, आप लोग एकतारूपी शस्त्र को हाथों में उठा लें। वसुंधरा सरकार को गिराना है।
वैसे वसुंधरा और जसवंतसिंह की यह लड़ाई पुरानी है, लेकिन 2014 में जसवंत को लोकसभा टिकट नहीं मिलने के बाद ये लड़ाई खुलकर सामने आ गई थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नेता कर्नल सोना सिंह को भाजपा ने बाड़मेर से टिकट दिया था, जबकि जसवंतसिंह इस चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में थे। चुनाव में जसवंत को हराने के लिए मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने पूरी ताकत झोंक दी थी, जिससे बाड़मेर लोकसभा चुनाव में जसवंत को हार मिली थी।
बाद में अनुशासनहीनता के आरोप में उन्हें पार्टी से भी निष्कासित कर दिया गया। भाजपा और मानवेंद्र सिंह के बीच जारी खींचतान के मुद्दे पर जब पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष मदन सैनी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि पार्टी ने मुद्दों पर विचार के लिए मानवेंद्र से संपर्क किया है। उन्होंने कहा, बातचीत चल रही है। हमने उनसे पहले भी संपर्क किया था और जो भी मुद्दे हैं, उन पर बात करेंगे।
उल्लेखनीय है कि अटल बिहारी सरकार में विदेश मंत्री और वित्तमंत्री जैसे पदों पर रहे जसवंतसिंह लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे हैं। उस समय उनकी गिनती वाजपेयी के बाद दूसरे पंक्ति के शीर्ष नेताओं में होती थी।