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Written By WD Feature Desk
Last Updated : बुधवार, 12 फ़रवरी 2025 (18:50 IST)

अर्द्धनग्न होकर क्यों लगाई जाती है संगम में डुबकी, क्या है पौराणिक मान्यता

अर्द्धनग्न होकर क्यों लगाई जाती है संगम में डुबकी, क्या है पौराणिक मान्यता - Rules of Sangam Snan
Rules of Sangam Snan: भारत में नदियों को पवित्र माना जाता है और संगम का विशेष महत्व है। प्रयागराज के त्रिवेणी संगम में स्नान करना अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। शास्त्रों में संगम स्नान के महत्व के बारे में कई बातें बताई गई हैं। इस लेख में हम संगम स्नान के महत्व और शास्त्रों में वर्णित स्नान विधि के बारे में जानेंगे।

संगम स्नान का महत्व (Significance of Sangam Bath)
एक पौराणिक मान्यता के अनुसार, मां गंगा भगवान शिव, मां यमुना भगवान विष्णु और मां सरस्वती ब्रह्म देव के अधीन हैं। इस प्रकार संगम पर तीनों नदियों का संगम त्रिदेवों की संयुक्त उपस्थिति का प्रतीक है।
शास्त्रों के अनुसार मनुष्य के शरीर का मन भगवान विष्णु, नेत्र भगवान शिव और बुद्धि ब्रह्मा हैं। ऐसे में त्रिदेवों की कृपा पाने और शरीर के तीनों हिस्सों में त्रिदेवों का वास बनाए रखने के लिए संगम में स्नान का विशेष महत्व है।ALSO READ: Prayagraj kumbh 2025: यदि प्रयागराज कुंभ नहीं जा पा रहे हैं तो यहां जाएं तीर्थ का पुण्य प्राप्त करने

ऐसा माना जाता है कि संगम में स्नान करने से शरीर के तीनों अंग न सिर्फ सांसारिक तौर पर बल्कि आध्यात्मिक तौर पर भी जागृत रहते हैं। यह स्नान व्यक्ति को सन्मार्ग की ओर ले जाते हुए मोक्ष प्राप्त कराता है। संगम स्नान से मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि होती है। यह सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और नकारात्मक विचारों को दूर करता है।

स्नान की विधि (Bathing Ritual)

शास्त्रों में संगम में स्नान करने की एक विशेष विधि बताई गई है। पुरुषों के लिए अर्ध नग्न अवस्था में स्नान करने का विधान है, जिसमें उन्हें ऊपरी भाग को खुला रखना होता है और नीचे कोई भी एक वस्त्र धारण कर सकते हैं। महिलाओं के लिए सूती वस्त्र धारण कर स्नान करने का विधान है। शास्त्रों में महिलाओं द्वारा एक सूती वस्त्र धारण कर स्नान करना अर्ध नग्न अवस्था में होना ही माना गया है।

स्नान करते समय भगवान शिव, भगवान विष्णु और ब्रह्मा का ध्यान करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इन तीनों देवताओं का ध्यान करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। इसके साथ ही गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का भी स्मरण करना चाहिए।

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