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Last Updated : गुरुवार, 24 फ़रवरी 2022 (11:55 IST)

जानकी जयंती : मां सीता जन्म के अनजाने रहस्य

जानकी जयंती : मां सीता जन्म के अनजाने रहस्य | Sita Janaki Jayanti
फाल्गुन मास की अष्टमी क सीताष्टमी कहते हैं। 24 फरवरी 2022 को माता सीता की जयंती मनाई जाएगी जिसे जानकी जयंती भी कहते हैं।  फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को सीता जी प्रकट हुई थी। आओ जानते हैं माता सीता के अनजाने रहस्य।
 
 
1. राजा जनक की पुत्री : देवी सीता मिथिला के राजा जनक की ज्येष्ठ पुत्री थीं इसलिए उन्हें 'जानकी' भी कहा जाता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार मिथिला में पड़े भयंकर सूखे से राजा जनक बेहद परेशान हो गए थे, तब इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए उन्हें एक ऋषि ने यज्ञ करने और धरती पर हल चलाने का सुझाव दिया। उस ऋषि के सुझाव पर राजा जनक ने यज्ञ करवाया और उसके बाद राजा जनक धरती जोतने लगे।
 
तभी उन्हें धरती में से सोने की डलिया में मिट्टी में लिपटी हुई एक सुंदर कन्या मिली। उस कन्या को हाथों में लेकर राजा जनक ने उसे 'सीता' नाम दिया और उसे अपनी पुत्री के रूप में अपना लिया।
 
 
2. रावण की पुत्री : अद्भुत रामायण के अनुसार सीता रावण की बेटी थी। इस रामायण के अनुसार सीता का जन्म मंदोदरी के गर्भ से हुआ था। मंदोदरी रावण के डर से कुरक्षत्रे में आ गई और वहां उन्होंने इस कन्या को जन्म दिया फिर उसे भूमि में दबा दिया और फिर सरस्वती में स्नान करने के बाद वह पुन: लंक चली गई। यह भी कहा जाता है कि रावण को जब पला चला कि मेरी ही कन्या मेरी मृत्यु का कारण बनेगी तो वह उसे दूरस्थ भूमि में दबा देता है। परंतु यह सभी कथाएं काल्पनिक और आरोपित लगती हैं क्योंकि अद्भुत रामायण 14वीं सदी में लिखी गई थी अत: इसे अप्रमाणिक मानते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि भ्रम फैलने के उददेश्य से मध्यकाल में कई रामायण और पुराण लिखे गए थे। 
 
3. धरती की पुत्री : माता सीता असल में धरती की पुत्री थी। माता सीता के भाई मंगलदेव थे। सीता विवाह के समय एक प्रसंग आता है कि विवाह का मंत्रोच्चार चल रहा था और उसी बीच कन्या के भाई द्वारा की जाने वाली रस्म की बारी आई। इस रस्म में कन्या का भाई कन्या के आगे-आगे चलते हुए लावे का छिड़काव करता है। विवाह करवाने वाले पुरोहितजी ने जब इस प्रथा के लिए कन्या के भाई को बुलाने के लिए कहा तो वहां समस्या खड़ी हो गई, क्योंकि जनक का कोई पुत्र नहीं था। ऐसे में सभी एक दूसरे से विचार करने लगे। इसके चलते विवाह में विलंब होने लगा।
 
अपनी पुत्री के विवाह में इस प्रकार विलम्ब होता देखकर पृथ्वी माता भी दुखी हो गयी। तभी अकस्मात एक श्यामवर्ण का युवक उठा और इस रस्म को पूरा करने के लिए आकर खड़ा हो गया और कहने लगा कि मैं हूं इनका भाई। दरअसल, वह और कोई नहीं बल्कि स्वयं मंगलदेव थे जो वेश बदलकर नवग्रहों सहित श्रीराम का विवाह देखने को वहां उपस्थित थे। चूंकि माता सीता का जन्म पृथ्वी से हुआ था और मंगल भी पृथ्वी के पुत्र थे। इस नाते वे सीता माता के भाई भी लगते थे। इसी कारण पृथ्वी माता के संकेत से वे इस विधि को पूर्ण करने के लिए आगे आए।
 
 
अनजान व्यक्ति को इस रस्म को निभाने को आता देख कर राजा जनक दुविधा में पड़ गए। जिस व्यक्ति के कुल, गोत्र एवं परिवार का कुछ आता पता ना हो उसे वे कैसे अपनी पुत्री के भाई के रूप में स्वीकार कर सकते थे। उन्होंने मंगल से उनका परिचय, कुल एवं गोत्र पूछा।
 
राजा जनक के आपत्ति लिए जाने के बाद मंगलदेव ने कहा, 'हे राजन! मैं अकारण ही आपकी पुत्री के भाई का कर्तव्य पूर्ण करने को नहीं उठा हूं। मैं इस कार्य के सर्वथा योग्य हूं। अगर आपको कोई शंका हो तो आप महर्षि वशिष्ठ एवं विश्वामित्र से इस विषय में पूछ सकते हैं।'
 
 
ऐसी वाणी सुनकर राजा जनक ने महर्षि वशिष्ठ एवं विश्वामित्र से इस बारे में पूछा। दोनों ही ऋषि इस रहस्य को जानते थे अतः उन्होंने इसकी आज्ञा दे दी। इस प्रकार सभी की आज्ञा पाकर मंगलदेव ने माता सीता के भाई के रूप में सारी रस्में निभाई। हालांकि इस घटना का उल्लेख रामायण में बहुत कम ही मिलता है।