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Written By WD Feature Desk
Last Updated : सोमवार, 18 नवंबर 2024 (10:43 IST)

गणाधिप संकष्टी चतुर्थी आज, जानें शुभ समय, महत्व और पूजा विधि

Sankashti Chaturthi 2024 : गणाधिप संकष्टी चतुर्थी आज, जानें शुभ समय, महत्व और पूजा विधि - Margashirsha Sankashti Chaturthi 2024,
Ganadhipa Sankashti Chaturthi 2024: वर्ष 2024 में नवंबर माह मे पड़ने वाली गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत आज, यानि 18 नवंबर, दिन सोमवार को पड़ रहा है। इस दिन श्री गणेश की पूजा-अर्चना की जाती है। आइए जानते हैं इस व्रत के बारे में जानकारी...
 
Highlights
  • गणाधिप संकष्टी चतुर्थी आज।
  • गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का मुहूर्त।
  • गणाधिप संकष्टी चतुर्थी पर पूजा विधि और महत्व जानें।
चतुर्थी पूजन के शुभ मुहूर्त कब है : 
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी :18 नवंबर 2024, सोमवार
चतुर्थी : 07:34 पी एम पर।
मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्थी का प्रारम्भ- 18 नवंबर 2024, 06:55 पी एम 
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी की समाप्ति- 19 नवंबर 05:28 पी एम पर।
 
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का महत्व : इस बार 18 नवंबर 2024 को मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी व्रत किया जा रहा है। इसे गणाधिप चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। अगहन मास की इस चतुर्थी का बहुत धार्मिक महत्व पुराणों में बताया गया है।

इस व्रत की महिमा भगवान श्री कृष्ण ने महाराज युधिष्ठर को बताते हुए कहा था कि आप भी इस व्रत को कीजिए। इस व्रत के प्रभाव से आप क्षण भर में अपने शत्रुओं को जीतकर संपूर्ण राज्य के अधिकारी बनेंगे। भगवान श्री कृष्ण के वचन सुनकर युधिष्ठर ने श्री गणेश चतुर्थी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से वे अपने शत्रुओं को जीत कर राज्य के अधिकारी बन गए। अत: इस व्रत को करने से शत्रुओं पर विजय पाई जा सकती हैं। इस दिन श्री गणेश जी का विधि-विधान के साथ पूजन करने और व्रत रखने से जीवन के सभी प्रकार के दुख दूर होते हैं। 
 
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी पर पूजन कैसे करें :

 इस व्रत के पौराणिक महत्व और पूजन विधि के अनुसार एक बार पार्वती जी ने श्री गणेश से पूछा कि अगहन कृष्ण चतुर्थी संकटा कहलाती है, उस दिन किस गणेश की पूजा किस रीति से करनी चाहिए? इस पर श्री गणेश ने कहा- हे हिमालयनंदनी! अगहन में पूर्वोक्त रीति से गजानन नामक गणेश की पूजा करनी चाहिए। पूजन के बाद अर्घ्य देना चाहिए। अपने शत्रु को वशीभूत करने हेतु जौ, तिल, चावल, चीनी और घृत का शाकला बनाकर हवन कराएं। दिन भर व्रत रखकर पूजन के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं। तत्पश्चात इसकी प्राचीन कथा सुनें या पढ़ें। 
 
मार्गशीर्ष मास गणेश चतुर्थी व्रत पूजन विधि : 
प्रात: काल उठकर नित्य कर्म से निवृत हो, शुद्ध हो कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। 
अगहन में पूर्वोक्त रीति से गजानन नामक गणेश की पूजा करनी चाहिए। 
श्री गणेश जी का पूजन पंचोपचार (धूप, दीप, नैवेद्य, अक्षत, फूल) विधि से करें। 
इसके बाद हाथ में जल तथा दूर्वा लेकर मन-ही-मन श्री गणेश का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प करें:- 'मम सर्वकर्मसिद्धये सिद्धिविनायक पूजनमहं करिष्ये'
अब कलश में जल भरकर उसमें थोड़ा गंगा जल मिलाएं। 
कलश में दूर्वा, सिक्के, साबुत हल्दी रखें। 
उसके बाद लाल कपड़े से कलश का मुख बांध दें। 
कलश पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें। पूरे दिन श्री गणेशजी के मंत्र का स्तवन करें। 
संध्या को दुबारा स्नान कर शुद्ध हो जाएं। श्री गणेश जी के सामने सभी पूजन सामग्री के साथ बैठ जाएं। 
विधि-विधान से गणेश जी का पूजन करें। 
वस्त्र अर्पित करें।
नैवेद्य के रूप में 10 लड्डु अर्पित करें। 
चंद्रमा के उदय होने पर चंद्रमा की पूजा कर अर्घ्य अर्पण करें। 
उसके बाद गणेश चतुर्थी की कथा सुनें अथवा सुनाएं। 
जौ, चावल, चीनी, तिल व घी से हवन करें। 
तत्पश्चात् गणेश जी की आरती करें। 
5 लड्डु प्रसाद के रूप में बांट दें और शेष 5 अगले दिन ब्राह्मण को दान में दें।
 
संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने वालों को रात्रि में चंद्रमा की पूजा अवश्य करना चाहिए, क्योंकि इसके बिना चतुर्थी व्रत पूर्ण नहीं माना होता है। इस दिन चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही पारण करके इस व्रत को पूर्ण किया जाता है। यह चतुर्थी व्रत, मनुष्य के सभी कष्ट दूर करके मनोकामना पूर्ण करते हैं। 
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