भगवान शिव को प्रिय श्रावण मास में पड़ने वाले सभी मंगलवार को मंगला गौरी व्रत रखा किया है। यह व्रत सुख-सौभाग्य से जुडा होने के कारण इसे सुहागिन महिलाएं करती हैं।
इस व्रत-उपवास को करने का उद्देश्य व्रतधारी महिलाओं को अखंड सुहाग की प्राप्ति तथा संतान को सुखी जीवन की कामना करना है।
ऐसे करें मंगला गौरी व्रत?
* इस व्रत के दौरान ब्रह्म मुहूर्त में जल्दी उठें।
* नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ-सुथरे धुले हुए अथवा कोरे (नवीन) वस्त्र धारण कर व्रत करना चाहिए।
* मां मंगला गौरी (पार्वतीजी) का एक चित्र अथवा प्रतिमा लें।
* फिर- 'मम पुत्रापौत्रासौभाग्यवृद्धये श्रीमंगलागौरीप्रीत्यर्थं पंचवर्षपर्यन्तं मंगलागौरीव्रतमहं करिष्ये।’
इस मंत्र के साथ व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए।
व्रत संकल्प का अर्थ- ऐसा माना जाता है कि मैं अपने पति, पुत्र-पौत्रों, उनकी सौभाग्य वृद्धि एवं मंगला गौरी की कृपा प्राप्ति के लिए इस व्रत को करने का संकल्प लेती हूं।
तत्पश्चात मंगला गौरी के चित्र या प्रतिमा को एक चौकी पर सफेद फिर लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित किया जाता है। फिर उस प्रतिमा के सामने एक घी का दीपक (आटे से बनाया हुआ) जलाएं। दीपक ऐसा हो जिसमें 16 बत्तियां लगाई जा सकें।
* तत्पश्चात-
'कुंकुमागुरुलिप्तांगा सर्वाभरणभूषिताम्।
नीलकण्ठप्रियां गौरीं वन्देहं मंगलाह्वयाम्...।।'
यह मंत्र बोलते हुए माता मंगला गौरी का षोडशोपचार पूजन किया जाता है। माता के पूजन के पश्चात उनको (सभी वस्तुएं 16 की संख्या में होनी चाहिए) 16 मालाएं, लौंग, सुपारी, इलायची, फल, पान, लड्डू, सुहाग की सामग्री, 16 चूड़ियां तथा मिठाई चढ़ाई जाती है। इसके अलावा 5 प्रकार के सूखे मेवे, 7 प्रकार के अनाज-धान्य (जिसमें गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर) आदि होना चाहिए।
पूजन के बाद मंगला गौरी की कथा सुनी जाती है।
* इस व्रत में एक ही समय अन्न ग्रहण करके पूरे दिन मां पार्वती की आराधना की जाती है।