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Govats Dwadashi 2021: दीपावली पूर्व गोवत्स द्वादशी पर होगा गौ पूजन, पढ़ें पूजन विधि, मुहूर्त, मंत्र एवं कथा

Govats Dwadashi 2021: दीपावली पूर्व गोवत्स द्वादशी पर होगा गौ पूजन, पढ़ें पूजन विधि, मुहूर्त, मंत्र एवं कथा - Govats Dwadashi 1 November 2021
इस वर्ष सोमवार, 1 नवंबर 2021 को गोवत्स द्वादशी (Govats Dwadashi 2021) मनाई जा रही है। हिंदू धर्म में गाय को बहुत ही पवित्र माना गया है। मान्यतानुसार गाय में देवताओं का वास होता है। अत: गोवत्स द्वादशी के दिन गाय की सेवा और पूजन करने से जीवन में शुभता का आगमन होकर हमें कई फायदे भी मिलते हैं। 
 
महत्व- दीपावली या कार्तिक अमावस्या से पूर्व कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को गोवत्स द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन गाय-बछड़ों का पूजन करने के साथ ही व्रत रखने की भी परंपरा है। इस दिन माताएं पुत्र की दीर्घायु की कामना से यह व्रत रखती हैं। मान्यता के अनुसार इस दिन गाय-बछड़े का पूजन करने से सभी देवताओं का आशीर्वाद मिलता है।


हिंदू धर्म में गौ माता में समस्त तीर्थों का मेल होने की बात कहीं गई है। गोवत्स द्वादशी के दिन पुत्रवती महिलाएं गाय व बछड़ों का पूजन करती हैं। यदि किसी के घर गाय-बछड़े न हो, तो वह दूसरे की गाय-बछड़े का पूजन करें। यदि घर के आसपास गाय-बछड़ा न मिले, तो गीली मिट्टी से गाय-बछड़े की मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा करें। उन पर दही, भीगा बाजरा, आटा, घी आदि चढ़ाकर कुमकुम से तिलक करें, तत्पश्चात दूध और चावल चढ़ाएं।

इस दिन गौ माता को चारा अवश्य ही खिलाएं, माना जाता है कि सारे यज्ञ करने से जो पुण्य मिलता है और सारे तीर्थ नहाने का जो फल प्राप्त होता है, वह फल गोवत्स द्वादशी के दिन गाय की सेवा, पूजन और चारा डालने मात्र से सहज ही प्राप्त हो जाता है। यह पर्व दीपावली की शुरुआत का प्रतीक भी है, क्योंकि यह त्योहार धनतेरस से एक दिन पहले बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। पंचांग मत-मतांतर के चलते यह पर्व 2 नवंबर को भी मनाए जाने की उम्मीद है। इसमें प्रदोषव्यापिनी तिथि ली जाती है। 
 
Govats Dwadashi पूजन विधि-
 
- गोवत्स द्वादशी के दिन व्रत करने वाली महिलाएं सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर धुले हुए एवं साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें।
 
- तत्पश्चात गाय (दूध देने वाली) को उसके बछड़ेसहित स्नान कराएं।
 
- अब दोनों को नया वस्त्र ओढा़एं।
 
- दोनों को फूलों की माला पहनाएं।
 
- गाय-बछड़े के माथे पर चंदन का तिलक लगाएं और उनके सींगों को सजाएं।
 
- अब तांबे के पात्र में अक्षत, तिल, जल, सुगंध तथा फूलों को मिला लें। अब इस 'क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते। सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:॥' मंत्र का उच्चारण करते हुए गौ प्रक्षालन करें।
 
- गौ माता के पैरों में लगी मिट्टी से अपने माथे पर तिलक लगाएं।
 
- गौ माता का पूजन करने के बाद बछ बारस की कथा सुनें।
 
- दिनभर व्रत रखकर रात्रि में अपने इष्ट तथा गौ माता की आरती करके भोजन ग्रहण करें।
 
- मोठ, बाजरा पर रुपया रखकर अपनी सास को दें।
 
- इस दिन गाय के दूध, दही व चावल का सेवन न करें। बाजरे की ठंडी रोटी खाएं।
 
मान्यतानुसार इस दिन योग्य संतान के लिए गाय माता की पूजा और व्रत किया जाता है।
 
Govats Dwadashi Katha गोवत्स द्वादशी कथा-
 
जनमानस में प्रचलित गोवत्स द्वादशी की पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में भारत में सुवर्णपुर नामक एक नगर था। वहां देवदानी नाम का राजा राज्य करता था। उसके पास एक गाय और एक भैंस थी। उनकी दो रानियां थीं, एक का नाम 'सीता' और दूसरी का नाम 'गीता' था। सीता को भैंस से बड़ा ही लगाव था। वह उससे बहुत नम्र व्यवहार करती थी और उसे अपनी सखी के समान प्यार करती थी।
 
 
राजा की दूसरी रानी गीता गाय से सखी-सहेली के समान और बछडे़ से पुत्र समान प्यार और व्यवहार करती थी। यह देखकर भैंस ने एक दिन रानी सीता से कहा- गाय-बछडा़ होने पर गीता रानी मुझसे ईर्ष्या करती है। इस पर सीता ने कहा- यदि ऐसी बात है, तब मैं सब ठीक कर लूंगी।
 
सीता ने उसी दिन गाय के बछडे़ को काट कर गेहूं की राशि में दबा दिया। इस घटना के बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं चलता। किंतु जब राजा भोजन करने बैठा तभी मांस और रक्त की वर्षा होने लगी। महल में चारों ओर रक्त तथा मांस दिखाई देने लगा। राजा की भोजन की थाली में भी मल-मूत्र आदि की बास आने लगी। यह सब देखकर राजा को बहुत चिंता हुई। 
 
उसी समय आकाशवाणी हुई- 'हे राजा! तेरी रानी ने गाय के बछडे़ को काटकर गेहूं की राशि में दबा दिया है। इसी कारण यह सब हो रहा है। कल 'गोवत्स द्वादशी' है। इसलिए कल अपनी भैंस को नगर से बाहर निकाल दीजिए और गाय तथा बछडे़ की पूजा करें। इस दिन आप गाय का दूध तथा कटे फलों का भोजन में त्याग करें। इससे आपकी रानी द्वारा किया गया पाप नष्ट हो जाएगा और बछडा़ भी जिंदा हो जाएगा। अत: तभी से गोवत्स द्वादशी के दिन गाय-बछड़े की पूजा करने का महत्व माना गया है तथा गाय और बछड़ों की सेवा की जाती है। 
 
गोवत्स द्वादशी पूजा मुहूर्त Govats Dwadashi Muhurat 
 
द्वादशी तिथि 1 नवंबर 2021, सोमवार को दोपहर 1.21 मिनट से शुरू होकर मंगलवार, 2 नवंबर को 11.31 मिनट पर समाप्त होगी। यदि आप गोवत्स द्वादशी का पूजन करना चाहते हैं, तो आप शाम 5.36 मिनट से रात 8.11 मिनट तक कर सकते हैं।

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