शनिवार, 21 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. व्रत-त्योहार
  3. अन्य त्योहार
  4. gopashtami festival
Written By

gopashtami festival : गोपाष्टमी क्यों मनाएं, जानिए पौराणिक महत्व

gopashtami festival : गोपाष्टमी क्यों मनाएं, जानिए पौराणिक महत्व - gopashtami festival
गौ अष्टमी के दिन गोवर्धन, गाय और बछड़े तथा गोपाल की पूजन का विधान है। शास्त्रों में कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन गायों को भोजन खिलाता है, उनकी सेवा करता है तथा सायं काल में गायों का पंचोपचार विधि से पूजन करता है तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। आज के दिन अगर श्यामा गाय को भोजन कराएं तो और भी अच्छा होता है।
 
गाय को हिन्दू मान्यताओं में बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। गाय को गोमाता भी कहा जाता है, गाय को मां का दर्जा दिया गया है। जिस प्रकार एक मां अपनी संतान को हर सुख देना चाहती है, उसी प्रकार गौ माता भी सेवा करने वाले जातकों को अपने कोमल हृदय में स्‍थान देती हैं और उनकी हर मनोकामना पूरी करती हैं।

ऐसी मान्‍यता है कि गोपाष्‍टमी के दिन गौ सेवा करने वाले व्‍यक्‍ति के जीवन में कभी कोई संकट नहीं आता।
 
गाय माता का दूध, घी, दही, छाछ और यहां तक कि उनका मूत्र भी स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक होता है। यह त्‍योहार हमें याद दिलाता है कि हम गौ माता के ऋणी हैं और हमें उनका सम्‍मान और सेवा करनी चाहिए। पौराणिक कथाओं में यह व्‍याख्‍या है कि किस तरह से भगवान कृष्‍ण ने अपनी बाल लीलाओं में गौ माता की सेवा की है।
 
आधुनिक युग में यदि हम गोपाष्टमी पर गौशाला के लिए दान करें और गायों की रक्षा के लिए प्रयत्न करें तो गोपाष्टमी का पर्व सार्थक होता है और उसका फल भी प्राप्त होता है। तनाव और प्रदूषण से भरे इस वातावरण में गाय की संभावित भूमिका समझ लेने के बाद गोधन की रक्षा में तत्परता से लगना चाहिए। तभी गोविंद-गोपाल की पूजा सार्थक होगी। गोपाष्टमी का उद्देश्य है, गौ-संवर्धन की ओर ध्यान आकृष्ट करना।
 
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन से भगवान श्री कृष्ण और बलराम ने गौ-चारण की लीला शुरू की थी। हिन्दू मान्यताओं में गोपाष्टमी का बहुत महत्व है। विशेषकर ब्रजवासियों और वैष्णवों के लिए ये दिन पर्व है। इस दिन सुख-समृद्धि में वृद्धि की कामना से बछड़े सहित गाय और गोविंद की पूजा करने का विधान है।
 
पौराणिक मान्यता के अनुसार, कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक भगवान श्रीकृष्ण ने गौ, गोप और गोपियों की रक्षा के लिए अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत धारण किया था। आठवें दिन देवराज इन्द्र का अहंकार भंग हुआ और श्रीकृष्ण की शरण में आए तथा क्षमायाचना की। तब कामधेनु ने कृष्ण जी का अभिषेक किया। तभी से कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जा रहा है।
 
इस दिन गौ माता की पूजा की जाती है। साथ ही श्री कृष्ण को तरह-तरह के भोग लगाए जाते हैं। भविष्य पुराण, स्कंद और ब्रह्मांड पुराण तथा महाभारत में भी गाय के अंग-प्रत्यंगों में देवी-देवताओं की स्थिति का जिक्र किया गया है। गाय पूजन से सभी देवी देवतागण प्रसन्न होते हैं और इससे सुख सौभाग्य की वृद्धि होती है। गाय हमें कई ऐसे पोषक तत्व देती है जो इंसान को स्वस्थ्य बनाने में मददगार हैं।
ये भी पढ़ें
गोपाष्टमी के दिन क्या करें : 10 काम की बातें