मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भास्वर है। इनकी चार भुजाएं हैं। माताजी का दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है।
मां कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है।
मां को जो सच्चे मन से याद करता है उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं। जन्म-जन्मांतर के पापों को विनष्ट करने के लिए मां की शरणागत होकर उनकी पूजा-उपासना के लिए तत्पर होना चाहिए।
शक्ति पर्व शारदैय नवरात्रि के उपलक्ष्य में मां भगवती कात्यायनी का विशेष पूजन षष्ठी के दिन किया जाता है। यह खास तौर पर विवाह योग्य कन्याओं के लिए विशेष पूजन तथा मनोकामना पूर्ति का दिन माना जाता है।
भगवती योगमाया कात्यायनी मां देवियों में सर्वाधिक सुंदर है।
विवाह योग्य कन्याओं एवं विशेष रूप में जिनके विवाह में विलंब हो रहा हो, उनके लिए नवरात्रि की षष्ठी तिथि पर विशेष पूजन किया जाता है। इस दिन प्रातःकाल से ही मां भगवती का अर्चन एवं पूजन किया जाता है। देवी भक्तों का अनुभव है कि यदि कोई कन्या इस षष्ठी पूजन को पूर्ण विधि-विधान एवं श्रद्धा से कर लें तो उसका विवाह एक वर्ष के भीतर ही हो जाता है।
ज्योतिषाचार्य के अनुसार कोई भी विवाह योग्य कन्या यह पूजन कर सकती है। इसके लिए किसी विशेष अनुमति अथवा दान आदि का बंधन नहीं है। केवल श्रृंगार सामग्री एवं पूजन सामग्री से माता का पूजन फलदायी होता है।
चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥
कात्यायनी, महामाया महायोगीन्यधीश्वरी
नंद गोप सुतं देवी पति में कुरुते नम:
यह मंत्र बताता है कि भगवान कृष्ण जैसा पति पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा की थी। यह पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की गई थी। इसीलिए वह ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
इनका स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है। ये स्वर्ण के समान चमकीली हैं और भास्वर हैं। गोपियों द्वारा पढ़ा यह मंत्र विवाह के लिए अत्यंत असरकारी व लोकप्रिय है।
दुर्गा के इस रूप कात्यायनी को आयुर्वेद औषधि में कई नामों से जाना जाता है। जैसे- अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका माचिका भी कहते हैं। कात्यायनी कफ, पित्त, अधिक विकार एवं कंठ के रोग का नाश करती है।
- महिलाओं के विवाह से संबंध होने के कारण इनका संबंध बृहस्पति से भी है।
- दाम्पत्य जीवन से संबंध होने के कारण इनका आंशिक संबंध शुक्र से भी है।
- शुक्र और बृहस्पति, दोनों दैवीय और तेजस्वी ग्रह हैं, इसलिए माता का तेज भी अद्भुत और सम्पूर्ण है।
- माता का संबंध कृष्ण और उनकी गोपिकाओं से रहा है और ये ब्रज मंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं।