आदिवासी वोटर भाजपा की सियासत के केंद्र में आ गया है। आदिवासी महानायकों को याद करने के साथ भाजपा और भाजपा शासित राज्य इन दिनों आदिवासी से जुड़े धार्मिक और ऐतिहासित स्थलों पर बड़े-बड़े आयोजन कर रही है। आदिवासी समाज के लिए हो रहे इन आयोजनों का पूरा एक सियासी प्लान है। दरअसल भाजपा के नाक का सवाल बने गुजरात के साथ मध्यप्रदेश और राजस्थान में सत्ता में वापसी के लिए आदिवासी वोट बैंक भाजपा के लिए एक जरूरी सियासी मजबूरी बन गया है और भाजपा इसको साधने में कोई कोर कसर भी नहीं छोड़ रही है।
आदिवासी वोट बैंक को लुभाने के लिए मंगलवार को मध्य प्रदेश,राजस्थान और गुजरात की सीमा पर स्थित आदिवासी के प्रमुख तीर्थ स्थल स्थल मानगढ़ धाम पर एक भव्य कार्यक्रम किया गया। मानगढ़ को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा देने की चर्चा के बीच हुए भव्य कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ गुजरात, मध्यप्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्री भी शामिल हुए। पीएम मोदी के साथ तीन मुख्यमंत्रियों की मौजूदगी में हुए भव्य कार्यक्रम को गुजरात के साथ आने वाले समय में मध्यप्रदेश और राजस्थान में बड़े आदिवासी वोट बैंक को लुभाने की कोशिश से जोड़कर देखा जा रहा है।
दरअसल राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में स्थित मानगढ़ धाम आदिवासियों का प्रमुख तीर्थ स्थल है। कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव में हम सभी का मानगढ़ धाम आना प्रेरक है। मानगढ़ धाम जनजातीय वीर वीरांगनाओं के तप, त्याग, तपस्या और देशभक्ति का प्रतिबिंब है। यह गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के लोगों की साझी विरासत है। इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने आदिवासी महानायक बिरसा मुंडा को याद करने के साथ भाजपा सरकार में पिछले 8 वर्षों में आदिवासियों के लिए किए गए कामों को याद दिलाया।
मानगढ़ धाम के आयोजन का सियासी कनेक्शन?-आदिवासियों के प्रमुख तीर्थ स्थल मानगढ़ धाम पर हुए भव्य आयोजन में राजस्थान के साथ मध्यप्रदेश और गुजरात के बड़ी संख्या आदिवासी शामिल हुए। मानगढ़ धाम को आदिवासी समाज एक धर्मिक स्थल के रूप में पूजता है। दरअसल मानगढ़ में 1913 संत गोविंद गुरु के नेतृत्व में लगभग 1500 आदिवासियों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया था। आदिवासियों पर आजादी के आंदोलन में भाग लेने का आरोप लगाया गया और उनका सामूहिक नरसंहार किया गया था।
मानगढ़ धाम में मंगलवार को हुए आयोजन में जिन राज्यों के आदिवासी शामिल हुए वह राज्य इस समय चुनावी मोड में है। गुजरात में जहां कभी-कभी भी चुनावी घोषणा हो सकती है वहीं मध्यप्रदेश और राजस्थान में अगले साल चुनाव होने है।
आदिवासी रूठे तो गुजरात में फंसेगी भाजपा!-चुनावी राज्य गुजरात में करीब 15 फीसदी आबादी आदिवासियों की है,वहीं राज्य की 182 सदस्यीय विधानसभा में 27 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं। इसके साथ ही राज्य की 35 से 40 विधानसभा सीटों पर आदिवासी वोटर जीत-हार तय कर सकते है। अगर 2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखे तो इन 27 सीटों पर भाजपा सिर्फ 9 सीटें जीत पाई थी वहीं कांग्रेस ने 15 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
आदिवासी सीटों पर बड़ी हार के चलते ही राज्य में भाजपा में 100 के आंकड़े के नीचे सिमट गई थी। ऐसे में इस बार गुजरात में अगर आदिवासी वोटर भाजपा के साथ नहीं गया तो भाजपा के लिए सत्ता में वापसी का रास्ता कठिन हो जाएगा।
मध्यप्रदेश में आदिवासी तय करेंगे भाजपा का भविष्य!- मध्यप्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोटर भाजपा का भविष्य तय करेंगे। राज्य में विधानसभा की 230 सीटों में से 47 सीटें आदिवासियों (अनुसूचित जनजातियों) के लिए आरक्षित हैं। वहीं 90 से 100 सीटों पर आदिवासी वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाता है। 2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा 16 सीटों पर सिमट गई थी वहीं कांग्रेस ने भाजपा से लगभग दोगुनी यानी 30 सीटें जीतीं थी।
जिस आदिवासी वोट बैंक के बल पर भाजपा ने 2003 के विधानसभा चुनाव में सत्ता में वापसी की थी वह जब 2018 में उससे छिटका को भाजपा को पंद्रह साल बाद सत्ता से बाहर होना पड़ा था। ऐसे में अगले साल होने वाले चुनाव में भाजपा के लिए आदिवासी वोटर हासिल करना सबसे जरूरी मजबूरी बन गया है।
राजस्थान में आदिवासी ही कराएंगे सत्ता में वापसी!-2017 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान में सत्ता से बाहर होने वाली भाजपा को अगर सत्ता में वापसी करनी हो तो आदिवासी वोटर को साधना जरूरी होगा। राज्य की कुल 200 विधानसभा सीटों में से 25 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित है वहीं करीब एक दर्जन सीटों पर आदिवासी जीत हार में निर्णायक भूमिका निभाते है।
अगर 2018 के विधानसभा चुनाव की बात करे तो कांग्रेस ने आदिवासियों के लिए आरक्षित 25 सीटों से आधी से अधिक 13 सीटों पर जीत हासिल की थी वहीं भाजपा सिर्फ 8 सीटें जीत सकी थी। इस में जब राजस्थान में अगले साल विधानसभा चुनाव होने है तो भाजपा आदिवासी वोटरों को साधने के लिए कोई मौका नहीं छोड़ रही है।